• October 22, 2025

गुम हो रही आंगन की गौरैया

 गुम हो रही आंगन की गौरैया

घरों को अपनी चीं..चीं की आवाज से चहकाने वाली गौरैया अब दिखाई नहीं देती। इस छोटे आकार वाले खूबसूरत पक्षी का कभी इंसान के घरों में बसेरा हुआ करता था और बच्चे बचपन से इसे देखते बड़े हुआ करते थे। लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। आधुनिकता की अंधी दौड़ के कारण गौरैया के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। स्थिति यह है कि इस पक्षी की संख्या लगातार कम होती जा रही है। कहीं-कहीं तो यह बिल्कुल दिखाई नहीं देती। गौरैया को बुद्धिमान चिड़िया माना जाता है। उसकी खासियत है कि वह परिस्थितियों के अनुरूप स्वयं को न सिर्फ ढाल लेती है बल्कि अपना घोंसला व भोजन भी उनके अनुकूल बना लेती है। इन्हीं विशेषताओं के कारण यह विश्व में सबसे ज्यादा पाई जाने वाली चहचहाती चिड़िया बन गई। गौरैया बहुत ही सामाजिक पक्षी है और ज्यादातर पूरे वर्ष झुंड में उड़ती है। एक झुंड 1.5-2 मील की दूरी तय करता है। लेकिन भोजन की तलाश में अक्सर वह 2-5 मील भी निकल जाती है।

गौरैया का प्रमुख आहार अनाज, जमीन पर बिखरे दाने व कीड़े-मकौड़े हैं। कीड़े खाने की आदत के चलते उसे किसानों का मित्र माना जाता है। पहले गौरैया जब अपने बच्चों को चुग्गा कराती थी तो हम बड़े ही कौतूहल से उसे देखते थे। लेकिन अब इसके दर्शन भी मुश्किल हो गए हैं। वह विलुप्त हो रही प्रजातियों की सूची में आ गई है। ग्रामीणों के मुताबिक गौरैया की आबादी में 70 से 80 फीसद तक की कमी आई है। अगर उसके संरक्षण के प्रयास नहीं किए गए तो हो सकता है कि गौरैया इतिहास बन जाए। इसके बाद भविष्य की पीढ़ियों को यह देखने को ही न मिले।

कभी खुले आंगन में फुदकने वाली यह चिड़िया, छप्परों में घोंसले बनाने वाली यह चिड़िया, बच्चों के हाथों से गिरे अनाज खाने वाली चिड़िया अब बंद जाली के आंगन व बंद दरवाजों की वजह से अपनी दस्तक नहीं दे पाती हमारे घरों में। गाहे-बगाहे अगर यह दाखिल भी हो जाती है तो छतों पर टंगे पंखों से टकरा कर दम तोड़ देती है। बड़ा दर्दनाक है यह सब जो इस अनियोजित विकास के दौर में हो रहा है। आधुनिकता व विकास के कारण हम अपने आसपास सदियों से रह रहे तमाम जीवों के लिए कब्रगाह तैयार करते जा रहे हैं। बिना यह सोचे कि इसके बिना यह धरती और हमारा पर्यावरण कैसा होगा।

गौरैया एक छोटी चिड़िया है। यह हल्की भूरे रंग या सफेद रंग में होती है। इसके शरीर पर छोटे-छोटे पंख और पीली चोंच व पैरों का रंग पीला होता है। नर गौरैया की पहचान उसके गले के पास काले धब्बे से होती है। 14 से 16 सेमी. लंबी यह चिड़िया मनुष्य के बनाए हुए घरों के आसपास रहना पसंद करती है। यह लगभग हर तरह की जलवायु पसंद करती है पर पहाड़ी स्थानों में यह कम दिखाई देती है। शहरों, कस्बों गावों और खेतों के आसपास यह बहुतायत से पाई जाती है। नर गौरैया के सिर का ऊपरी भाग, नीचे का भाग और गालों पर पर भूरे रंग का होता है। गला चोंच और आंखों पर काला रंग होता है और पैर भूरे होते हैं। मादा के सिर और गले पर भूरा रंग नहीं होता है। नर गौरैया को चिड़ा और मादा चिड़ी या चिड़िया भी कहते हैं।

पिछले कुछ वर्षो में शहरों में गौरैया की कम होती संख्या पर चिन्ता प्रकट की जा रही है। आधुनिक स्थापत्य की बहुमंजिली इमारतों में गौरैया को रहने के लिए पुराने घरों की तरह जगह नहीं मिल पाती। सुपर मार्केट संस्कृति के कारण पुरानी पंसारी की दुकानें घट रही हैं। इससे गौरैया को दाना नहीं मिल पाता है। इसके अतिरिक्त मोबाइल टावरों से निकले वाली तंरगों को भी गौरैया के लिए हानिकारक माना जा रहा है। ये तंरगें चिड़िया की दिशा खोजने वाली प्रणाली को प्रभावित कर रही है और उनके प्रजनन पर भी विपरीत असर पड़ रहा है जिसके परिणाम स्वरूप गौरैया तेजी से विलुप्त हो रही है।

गौरैया को घास के बीज काफी पसंद होते हैं जो शहर की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से मिल जाते हैं। ज्यादा तापमान गौरैया सहन नहीं कर सकती। प्रदूषण और विकिरण से शहरों का तापमान बढ़ रहा है। कबूतर को धार्मिक कारणों से ज्यादा महत्व दिया जाता है। चुग्गे वाली जगह कबूतर ज्यादा होते हैं। पर गौरैया के लिए इस प्रकार के इंतजाम नहीं हैं। खाना और घोंसले की तलाश में गौरैया शहर से दूर निकल जाती हैं और अपना नया आशियाना तलाश लेती हैं। इस साल विश्व गौरैया दिवस 20 मार्च को मनाया जा चुका है। इस साल इस दिवस का ध्येय वाक्य था-”गौरैया: उन्हें एक ट्वीट-मौका दें!”, ”आई लव स्पैरोज” और ”वी लव स्पैरोज”। इस दिवस का मुख्य लक्ष्य दुनिया भर में बढ़ते प्रदूषण और गौरैया संरक्षण के बारे में जागरुकता फैलाना है।

Digiqole Ad

Rama Niwash Pandey

https://ataltv.com/

Related Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *