सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग का हलफनामा: SIR पर बड़ा बयान, बिहार के बाद पूरे देश में होगी पुनरीक्षण प्रक्रिया
नई दिल्ली, 9 अक्टूबर 2025: सुप्रीम कोर्ट में बिहार मतदाता सूची विवाद पर सुनवाई से ठीक पहले चुनाव आयोग ने हलफनामा दाखिल कर कहा कि देश में वोट का अधिकार सिर्फ भारतीय नागरिकों को है। आयोग ने आधार को सिर्फ पहचान प्रमाण बताया, नागरिकता का नहीं। बिहार के बाद SIR (विशेष गहन पुनरीक्षण) पूरे देश में शुरू होगा। लेकिन कोर्ट ने 3.66 लाख हटाए नामों का विवरण मांगा। क्या यह प्रक्रिया पारदर्शी है या वोटरों को नुकसान पहुंचाएगी? आयोग का दावा और कोर्ट का रुख क्या कहता है? पूरी बहस आगे जानें।
हलफनामा दाखिल: सिर्फ नागरिकों को वोट, आधार पहचान प्रमाण
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे से साफ किया कि वोट का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत सिर्फ भारतीय नागरिकों को है। आयोग ने जोर दिया कि मतदाता सूची त्रुटिरहित बनाना उसका संवैधानिक कर्तव्य है, और SIR इसी उद्देश्य से। बिहार में 24 जून 2025 को शुरू SIR पर याचिकाओं में विपक्ष ने आरोप लगाया कि बिना नोटिस नाम हटाए गए। आयोग ने जवाब दिया कि 30 अगस्त को ड्राफ्ट लिस्ट प्रकाशित हुई, जिसमें 7.24 करोड़ वोटर थे। 1 अगस्त से 1 सितंबर तक दावे-आपत्तियां ली गईं। अंतिम लिस्ट 30 सितंबर को आई, जिसमें 21 लाख नए नाम जुड़े—ज्यादातर युवा वोटर। लेकिन 3.66 लाख नाम हटे, जिनमें मृत, डुप्लिकेट या माइग्रेशन केस प्रमुख। आयोग ने कहा कि कोई अपील नहीं आई, सभी पार्टियां संतुष्ट। कोर्ट ने 7 अक्टूबर को सुनवाई में आयोग से विवरण मांगा, क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने कहा कि हटाए नामों को नोटिस नहीं मिला। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, ‘पारदर्शिता जरूरी, लेकिन ECI का विशेषाधिकार।’ यह हलफनामा SIR को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने का संकेत देता।
बिहार SIR विवाद: 3.66 लाख नाम हटे, लेकिन कोई अपील नहीं
बिहार SIR जून 2025 में शुरू हुआ, जो 2003 के बाद पहली गहन जांच थी। ड्राफ्ट लिस्ट में 65 लाख नाम हटे, लेकिन अंतिम में 3.66 लाख। आयोग ने कोर्ट को बताया कि हटाए नामों में स्थायी माइग्रेशन प्रमुख कारण—जून 24, 2025 की बेस लिस्ट से तुलना में। याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण ने कहा, ‘हटाए नामों की लिस्ट प्रकाशित करो, नोटिस नहीं मिला।’ आयोग ने जवाब दिया कि सभी पार्टियां संतुष्ट, कोई अपील नहीं। जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने कहा, ‘ड्राफ्ट और फाइनल लिस्ट की तुलना से कन्फ्यूजन—जुड़े नाम पुराने हटाए हैं या नए?’ कोर्ट ने 9 अक्टूबर को सुनवाई तय की। RJD, कांग्रेस, माकपा जैसे दलों ने आरोप लगाया कि मुस्लिम बहुल इलाकों में नाम हटाए। आयोग ने आधार को ’12वीं दस्तावेज’ माना, लेकिन नागरिकता प्रमाण नहीं। यह विवाद लोकतंत्र पर सवाल खड़ा कर रहा—क्या SIR वोटरों को वंचित कर रहा? आयोग का दावा: प्रक्रिया पारदर्शी, अपील का मौका दिया।
राष्ट्रीय SIR का ऐलान: 2026 तक पूरे देश में, पारदर्शिता पर जोर
हलफनामे में आयोग ने कहा कि बिहार SIR सफल रहा, अब 2026 तक पूरे देश में शुरू होगा। मतदाता सूची को त्रुटिरहित बनाने का संवैधानिक अधिकार ECI का। कोर्ट ने कहा, ‘ECI का विशेषाधिकार, लेकिन हस्तक्षेप न करें।’ याचिकाकर्ताओं ने मांगा कि नाम हटाने से पहले सुनवाई हो। आयोग ने स्पष्ट किया: नोटिस, सुनवाई और कारणयुक्त आदेश अनिवार्य। 21 लाख जुड़े नाम नए युवा हैं, हटाए नामों पर कोई शिकायत नहीं। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, ‘अनधिकृत निवासी अपील से डरेंगे, 100 लोगों की लिस्ट दो।’ कोर्ट ने 9 अक्टूबर को विवरण मांगा। यह SIR राष्ट्रीय स्तर पर लोकतंत्र की मजबूती लाएगा, लेकिन विपक्ष का डर: गरीब-प्रवासी प्रभावित। आयोग ने पारदर्शिता का वादा किया, जो चुनावी प्रक्रिया को मजबूत करेगा।
