रायबरेली में साइबर अपराधियों की गिरफ्तारी: स्लीपर सेल को फंडिंग का सनसनीखेज खुलासा
रायबरेली, 29 अप्रैल 2025: उत्तर प्रदेश के रायबरेली में साइबर अपराध के खिलाफ पुलिस की एक बड़ी कार्रवाई ने चौंकाने वाले तथ्यों को उजागर किया है। थाना डीह, साइबर थाना, और एसओजी/सर्विलांस टीम की संयुक्त कार्रवाई में चार साइबर अपराधियों को गिरफ्तार किया गया, जिनके तार न केवल अंतरराष्ट्रीय साइबर ठगी से जुड़े हैं, बल्कि स्लीपर सेल को फंडिंग करने जैसे गंभीर अपराधों से भी। जांच में पता चला कि ये अपराधी पाकिस्तान और दुबई से प्राप्त रकम को बिहार के युवाओं के बैंक खातों में जमा करा रहे थे, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को गंभीर खतरा पैदा हो गया है।
गिरोह का पर्दाफाश: साइबर ठगी का जाल
12 अप्रैल 2025 को रायबरेली पुलिस ने एक बड़े साइबर ठगी गिरोह का भंडाफाश किया। इस गिरोह के चार सदस्यों को गिरफ्तार किया गया, जो फर्जी दस्तावेजों के जरिए लोगों के नाम पर बैंक खाते खोलकर साइबर अपराध और ठगी की घटनाओं को अंजाम दे रहे थे। डाइनामाइट न्यूज़ के अनुसार, ये अपराधी पहले लोगों को झांसा देकर उनके नाम से फर्जी आधार कार्ड और अन्य दस्तावेज तैयार करते थे। इसके बाद, इन दस्तावेजों का उपयोग करके बैंक खाते खोले जाते थे, जिनका इस्तेमाल देशभर में साइबर ठगी के पैसों को ट्रांसफर करने और निकालने में किया जाता था।
गिरफ्तार अपराधियों के पास से पुलिस ने कई इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स, फर्जी दस्तावेज, और बैंक खातों से संबंधित जानकारी बरामद की। पूछताछ में अपराधियों ने स्वीकार किया कि वे एक बड़े अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क का हिस्सा हैं, जो दुबई और पाकिस्तान से संचालित होता है।
स्लीपर सेल को फंडिंग: राष्ट्रीय सुरक्षा पर सवाल
जांच के दौरान सबसे चौंकाने वाला खुलासा यह हुआ कि ये साइबर अपराधी स्लीपर सेल को फंडिंग करने में शामिल थे। अमर उजाला की एक रिपोर्ट के अनुसार, अपराधियों ने पाकिस्तान और दुबई से प्राप्त रकम को बिहार के युवाओं के बैंक खातों में जमा कराया। ये खाते ज्यादातर उन युवाओं के थे, जिन्हें छोटे-मोटे लालच देकर या धोखे में रखकर इस्तेमाल किया गया।
पुलिस सूत्रों के अनुसार, इस फंडिंग का उद्देश्य स्लीपर सेल को सक्रिय करना और संभावित आतंकी गतिविधियों को वित्तीय समर्थन प्रदान करना था। स्लीपर सेल, जो निष्क्रिय रहकर सही समय पर हमले की योजना बनाते हैं, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा हैं। इस खुलासे ने न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि बिहार और अन्य राज्यों की पुलिस को भी अलर्ट मोड पर ला दिया है।

बिहार के युवा: साइबर अपराधियों का आसान शिकार
जांच में यह भी सामने आया कि बिहार के युवा इस साइबर अपराध नेटवर्क का प्रमुख लक्ष्य थे। प्रभात खबर की एक रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में पिछले 11 महीनों में 35,677 किशोर साइबर ठगी के शिकार हुए हैं। साइबर अपराधी सोशल मीडिया और फर्जी नौकरी के ऑफर के जरिए युवाओं को अपने जाल में फंसाते हैं।
रायबरेली मामले में, अपराधियों ने बिहार के ग्रामीण और कम पढ़े-लिखे युवाओं को निशाना बनाया। इन युवाओं को 20-25 हजार रुपये का लालच देकर उनके नाम पर बैंक खाते खोले गए। इन खातों में दुबई और पाकिस्तान से मनी लॉन्ड्रिंग के जरिए पैसा ट्रांसफर किया जाता था, जिसे बाद में स्लीपर सेल या अन्य अवैध गतिविधियों के लिए इस्तेमाल किया जाता था।
दुबई और पाकिस्तान का कनेक्शन
आज तक की एक रिपोर्ट के अनुसार, साइबर अपराधों का एक बड़ा नेटवर्क दुबई से संचालित हो रहा है, जिसमें पाकिस्तान और बांग्लादेश के अपराधी भी शामिल हैं। सूरत में 111 करोड़ रुपये के साइबर फ्रॉड मामले में भी इसी तरह का अंतरराष्ट्रीय कनेक्शन सामने आया था, जहां चीनी गैंग के लिए बैंक खाते उपलब्ध कराए गए थे।
रायबरेली मामले में, पुलिस ने पाया कि दुबई में बैठे मास्टरमाइंड स्थानीय एजेंटों के जरिए फर्जी खातों का संचालन करते थे। पाकिस्तान से फंडिंग का स्रोत आतंकी संगठनों से जुड़ा हो सकता है, जिसकी जांच अब राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और अन्य केंद्रीय एजेंसियों के साथ मिलकर की जा रही है।
पुलिस की कार्रवाई और बरामदगी
रायबरेली पुलिस ने इस मामले में त्वरित कार्रवाई करते हुए चार मुख्य आरोपियों को गिरफ्तार किया। उनके पास से बरामद सामान में शामिल हैं:
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कई फर्जी आधार कार्ड और अन्य पहचान पत्र
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मोबाइल फोन, लैपटॉप, और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण
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बैंक खातों की जानकारी और एटीएम कार्ड
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साइबर ठगी से प्राप्त रकम के लेन-देन के दस्तावेज
पुलिस ने इन खातों को फ्रीज कर दिया है और बैंकों से संपर्क कर लेन-देन की पूरी जानकारी मांगी है। इसके अलावा, बिहार पुलिस के साथ समन्वय स्थापित कर उन युवाओं की पहचान की जा रही है, जिनके खाते इस अपराध में इस्तेमाल हुए।
सामाजिक और राष्ट्रीय निहितार्थ
यह मामला केवल साइबर ठगी तक सीमित नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा एक गंभीर मुद्दा है। स्लीपर सेल को फंडिंग का खुलासा यह दर्शाता है कि साइबर अपराध अब केवल आर्थिक नुकसान तक सीमित नहीं हैं, बल्कि आतंकवाद और अस्थिरता फैलाने का हथियार बन चुके हैं।
बिहार में साइबर ठगी के बढ़ते मामलों ने भी चिंता बढ़ा दी है। नवभारत टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, सीतामढ़ी और अन्य जिलों में साइबर वित्तीय फ्रॉड की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। गृह विभाग ने विधानसभा में स्वीकार किया कि अपराधी फ्रॉड के पैसे बैंकों में रखते हैं, और इसके खिलाफ कार्रवाई के लिए आरबीआई को लिखा गया है।
आगे की राह
रायबरेली पुलिस इस मामले की गहराई से जांच कर रही है। केंद्रीय एजेंसियों के साथ मिलकर अंतरराष्ट्रीय कनेक्शन की तह तक जाने की कोशिश की जा रही है। साथ ही, बिहार और उत्तर प्रदेश पुलिस ने संयुक्त रूप से एक विशेष टास्क फोर्स गठित की है, जो साइबर अपराध और स्लीपर सेल की फंडिंग पर नजर रखेगी।
जनसत्ता की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि साइबर अपराधी इतने शातिर हो गए हैं कि राज्य पुलिस अकेले इनसे निपटने में सक्षम नहीं है। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग और तकनीकी संसाधनों की जरूरत है।
जागरूकता की जरूरत
पुलिस और साइबर विशेषज्ञों ने लोगों से अपील की है कि वे अनजान कॉल, लिंक, या ऑफर पर भरोसा न करें। खासकर युवाओं को सोशल मीडिया और व्हाट्सएप पर आने वाले लुभावने ऑफर से सावधान रहने की सलाह दी गई है। साइबर ठगी की शिकायत के लिए 1930 पर कॉल करने या नजदीकी साइबर थाने में शिकायत दर्ज करने की सलाह दी गई है।
