• July 2, 2025

सीएसए उद्यान महाविद्यालय के अधिष्ठाता प्रो. विवेक त्रिपाठी: जैव उत्प्रेरक के साथ आर्गेनिक फल उत्पादन में अग्रणी

कानपुर, 1 मई 2025: चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) के उद्यान महाविद्यालय के अधिष्ठाता संकाय प्रोफेसर विवेक त्रिपाठी पिछले दो वर्षों से आर्गेनिक खेती के माध्यम से फल उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। उनकी यह पहल न केवल पर्यावरण-अनुकूल कृषि को बढ़ावा दे रही है, बल्कि किसानों और छात्रों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन रही है। प्रो. त्रिपाठी ने अपने प्रयोगों में जैव उत्प्रेरकों (बायोकैटलिस्ट्स) का उपयोग करके रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर निर्भरता को कम किया है, जिससे फलों की गुणवत्ता और मिट्टी का स्वास्थ्य दोनों में सुधार हुआ है।
आर्गेनिक खेती में प्रो. त्रिपाठी का योगदान
प्रो. विवेक त्रिपाठी, जो सीएसए विश्वविद्यालय के उद्यान विज्ञान विभाग में एक प्रतिष्ठित प्रोफेसर और अधिष्ठाता हैं, ने पिछले दो वर्षों से आर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई नवाचार किए हैं। उनके नेतृत्व में उद्यान महाविद्यालय ने फल उत्पादन में जैविक पद्धतियों को अपनाया है, जिसमें आम, अमरूद, नींबू, और पपीता जैसे फलों की खेती शामिल है। इन फसलों को उगाने के लिए प्रो. त्रिपाठी ने जैव उत्प्रेरकों का उपयोग किया है, जो मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने और पौधों की वृद्धि को प्रोत्साहित करने में प्रभावी सिद्ध हुए हैं।
जैव उत्प्रेरक सूक्ष्मजीवों, एंजाइमों, और प्राकृतिक पदार्थों का मिश्रण होते हैं, जो मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता को बढ़ाते हैं और पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करते हैं। प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि “जैव उत्प्रेरकों का उपयोग न केवल रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता को कम करता है, बल्कि मिट्टी के स्वास्थ्य को दीर्घकालिक रूप से बनाए रखता है।” उनके प्रयोगों में गोमूत्र, वर्मीकम्पोस्ट, और जैविक खाद के साथ जैव उत्प्रेरकों का संयोजन शामिल है, जिससे फलों का उत्पादन और गुणवत्ता दोनों में वृद्धि हुई है।
दो साल की उपलब्धियां
पिछले दो वर्षों में प्रो. त्रिपाठी के नेतृत्व में सीएसए उद्यान महाविद्यालय ने आर्गेनिक फल उत्पादन में कई उपलब्धियां हासिल की हैं:
  1. उत्पादन में वृद्धि: जैव उत्प्रेरकों के उपयोग से आम और अमरूद की फसलों में 20-25% अधिक उपज दर्ज की गई है। ये फल न केवल आकार में बड़े हैं, बल्कि स्वाद और पोषण में भी बेहतर हैं।
  2. रासायनिक निर्भरता में कमी: रासायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों का उपयोग 70% तक कम किया गया है, जिससे उत्पादन लागत में कमी आई है।
  3. मिट्टी का स्वास्थ्य: जैव उत्प्रेरकों और जैविक खाद के उपयोग से मिट्टी की उर्वरता में सुधार हुआ है। मृदा परीक्षणों में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा में वृद्धि और हानिकारक रसायनों की कमी दर्ज की गई है।
  4. छात्रों और किसानों का प्रशिक्षण: प्रो. त्रिपाठी ने विश्वविद्यालय के छात्रों और स्थानीय किसानों के लिए कई कार्यशालाएं और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए, जिनमें जैविक खेती और जैव उत्प्रेरकों के उपयोग की तकनीकों को सिखाया गया।
जैव उत्प्रेरकों की भूमिका
जैव उत्प्रेरक आर्गेनिक खेती में एक क्रांतिकारी नवाचार हैं। ये प्राकृतिक रूप से प्राप्त सूक्ष्मजीवों और एंजाइमों का मिश्रण होते हैं, जो निम्नलिखित तरीकों से कार्य करते हैं:
  • पोषक तत्वों की उपलब्धता: जैव उत्प्रेरक मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस, और पोटाश जैसे पोषक तत्वों को पौधों के लिए आसानी से उपलब्ध कराते हैं।
  • रोग प्रतिरोधक क्षमता: ये पौधों में प्राकृतिक रक्षा तंत्र को मजबूत करते हैं, जिससे कीटों और रोगों का प्रकोप कम होता है।
  • मिट्टी की संरचना में सुधार: जैव उत्प्रेरक मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की गतिविधि को बढ़ाते हैं, जिससे मिट्टी की जल धारण क्षमता और वायु संचलन में सुधार होता है।
  • पर्यावरण संरक्षण: रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की जगह जैव उत्प्रेरकों का उपयोग पर्यावरण प्रदूषण को कम करता है और जैव विविधता को बढ़ावा देता है।
प्रो. त्रिपाठी ने विशेष रूप से एजोटोबैक्टर, माइकोराइजा, और ट्राइकोडर्मा जैसे जैव उत्प्रेरकों का उपयोग किया है, जो फल उत्पादन में प्रभावी सिद्ध हुए हैं। उन्होंने बताया कि ये उत्प्रेरक स्थानीय स्तर पर उपलब्ध हैं और किसानों के लिए लागत-प्रभावी हैं।
किसानों के लिए प्रेरणा
प्रो. त्रिपाठी का यह प्रयास कानपुर और आसपास के क्षेत्रों के किसानों के लिए एक प्रेरणा बन रहा है। उन्होंने अपने प्रयोगों को किसानों के साथ साझा करने के लिए कई फील्ड डेमॉन्सट्रेशन आयोजित किए, जिनमें जैव उत्प्रेरकों के उपयोग की प्रक्रिया को समझाया गया। उनके प्रयासों से प्रेरित होकर कई किसानों ने अपने खेतों में जैविक खेती शुरू की है।
उदाहरण के लिए, कानपुर देहात के एक किसान रामप्रकाश ने बताया, “प्रो. त्रिपाठी के मार्गदर्शन में मैंने अपने आम के बाग में जैव उत्प्रेरकों का उपयोग शुरू किया। इस साल मेरी उपज में 15% की वृद्धि हुई, और बाजार में मेरे फल अधिक मांग में रहे।” यह दर्शाता है कि प्रो. त्रिपाठी का कार्य न केवल शैक्षिक स्तर पर, बल्कि व्यावहारिक स्तर पर भी प्रभाव डाल रहा है।
सीएसए विश्वविद्यालय की भूमिका
चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उत्तर भारत में कृषि अनुसंधान और शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र है। उद्यान महाविद्यालय इस विश्वविद्यालय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो फल, सब्जी, और सजावटी पौधों की खेती में नवाचारों के लिए जाना जाता है। प्रो. त्रिपाठी के नेतृत्व में यह महाविद्यालय आर्गेनिक खेती और सतत कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
विश्वविद्यालय ने जैविक खेती के लिए एक समर्पित अनुसंधान केंद्र भी स्थापित किया है, जहां जैव उत्प्रेरकों और अन्य जैविक तकनीकों पर शोध किया जा रहा है। यह केंद्र स्थानीय किसानों को जैविक खेती के लिए प्रशिक्षण और संसाधन प्रदान करता है, जिससे क्षेत्र में आर्गेनिक उत्पादन को बढ़ावा मिल रहा है।
चुनौतियां और भविष्य की योजनाएं
हालांकि प्रो. त्रिपाठी के प्रयासों ने सकारात्मक परिणाम दिए हैं, फिर भी आर्गेनिक खेती के सामने कुछ चुनौतियां हैं। जैविक उत्पादों के लिए उचित बाजार और प्रमाणन प्रक्रिया की कमी एक प्रमुख समस्या है। इसके अलावा, किसानों में जागरूकता की कमी और जैविक खेती की प्रारंभिक लागत भी एक बाधा है।
प्रो. त्रिपाठी ने इन चुनौतियों से निपटने के लिए कई योजनाएं बनाई हैं। वे कहते हैं, “हमारा लक्ष्य अगले पांच वर्षों में कानपुर और आसपास के क्षेत्रों को आर्गेनिक फल उत्पादन का केंद्र बनाना है।” इसके लिए वे निम्नलिखित कदम उठा रहे हैं:
  • जागरूकता अभियान: किसानों और उपभोक्ताओं के बीच जैविक उत्पादों के लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए सेमिनार और मेले आयोजित किए जा रहे हैं।
  • प्रमाणन सुविधा: जैविक उत्पादों के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम फॉर आर्गेनिक प्रोडक्शन (NPOP) के तहत प्रमाणन प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए विश्वविद्यालय और स्थानीय प्रशासन के साथ सहयोग किया जा रहा है।
  • अनुसंधान और नवाचार: जैव उत्प्रेरकों की नई किस्मों और उनके उपयोग की तकनीकों पर शोध को बढ़ावा दिया जा रहा है।
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Rama Niwash Pandey

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