बांके बिहारी कॉरिडोर पर विवाद: 500 करोड़ की लागत, 5 एकड़ का गलियारा, और 4 मुख्य वजहें
वृंदावन के विश्व प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर के लिए प्रस्तावित 500 करोड़ रुपये की लागत से 5 एकड़ में बनने वाला कॉरिडोर प्रोजेक्ट विवादों के केंद्र में है। उत्तर प्रदेश सरकार का यह ड्रीम प्रोजेक्ट, जिसे काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की तर्ज पर तैयार किया जा रहा है, गोस्वामी समाज और स्थानीय लोगों के विरोध का सामना कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने मई 2025 में इसकी मंजूरी दे दी, लेकिन गोस्वामी समाज ने इसे वृंदावन की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान के लिए खतरा बताया है। इस कॉरिडोर का उद्देश्य भीड़ प्रबंधन और श्रद्धालुओं की सुविधा बढ़ाना है, लेकिन विरोध की चार मुख्य वजहों ने इसे सियासी और सामाजिक हंगामे का विषय बना दिया है।
कॉरिडोर का प्रस्ताव और विशेषताएं
बांके बिहारी कॉरिडोर 5 एकड़ में बनाया जाएगा, जिसमें मंदिर के आसपास की 325 संपत्तियों, 100 दुकानों, और 300 मकानों का अधिग्रहण होगा। इसकी लागत 500 करोड़ रुपये है, जो मंदिर के 450 करोड़ रुपये के कोष से ली जाएगी। कॉरिडोर में तीन प्रवेश मार्ग होंगे: जुगल घाट, विद्यापीठ चौराहा, और जादौन पार्किंग। यह दो मंजिला होगा, जिसमें 11,300 वर्ग मीटर का निचला हिस्सा और 10,600 वर्ग मीटर का ऊपरी हिस्सा होगा। पार्किंग, प्रतीक्षालय, चिकित्सा कक्ष, और शिशु-वीआईपी रूम जैसी सुविधाएं होंगी। कॉरिडोर का एक हिस्सा परिक्रमा के लिए होगा, और यह मंदिर को यमुना नदी से जोड़ेगा। सरकार का दावा है कि इससे 10,000 श्रद्धालु एक साथ दर्शन कर सकेंगे।
विरोध की पहली वजह: कुंज गलियों का विनाश
गोस्वामी समाज और स्थानीय लोगों का सबसे बड़ा डर है कि कॉरिडोर के लिए 500 साल पुरानी कुंज गलियां नष्ट हो जाएंगी। ये गलियां वृंदावन की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा हैं, जहां भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं की स्मृतियां बसी हैं। समाज का मानना है कि इन गलियों को तोड़ने से वृंदावन का पौराणिक स्वरूप खत्म हो जाएगा। वे इसे केवल भीड़ प्रबंधन का बहाना मानते हैं और कहते हैं कि यह पर्यटन को बढ़ावा देने की साजिश है, जो वृंदावन की आध्यात्मिकता को नुकसान पहुंचाएगी। कुछ का कहना है कि काशी और अयोध्या के कॉरिडोर के बाद भी मंदिरों में भीड़ की समस्या बनी रही है।
विरोध की दूसरी वजह: सांस्कृतिक पहचान पर खतरा
गोस्वामी समाज का दूसरा प्रमुख डर वृंदावन की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान पर पड़ने वाला असर है। बांके बिहारी मंदिर का प्रबंधन 500 सालों से गोस्वामी परिवार के पास है, जो स्वामी हरिदास के वंशज हैं। वे मानते हैं कि कॉरिडोर से मंदिर का पारिस्थितिकी तंत्र और भक्ति का माहौल बदल जाएगा। समाज का दावा है कि यह मंदिर उनकी निजी संपत्ति है, और सरकार का हस्तक्षेप अनुचित है। कुछ सेवायतों का कहना है कि कॉरिडोर से वृंदावन ‘सेल्फी पॉइंट’ बनकर रह जाएगा, और इसकी आध्यात्मिकता पर्यटन की भेंट चढ़ जाएगी। यह विरोध अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी समर्थन पा रहा है।
विरोध की तीसरी वजह: दुकानदारों की आजीविका
कॉरिडोर के लिए 100 से अधिक दुकानों और 300 मकानों का अधिग्रहण होगा, जिससे स्थानीय व्यापारियों और ब्रजवासियों की आजीविका पर संकट मंडरा रहा है। बांके बिहारी मार्केट एसोसिएशन के अध्यक्ष नीरज गौतम का कहना है कि कॉरिडोर से व्यापार और पूरे वृंदावन की अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी। हालांकि सरकार ने मुआवजे और नई दुकानों का वादा किया है, लेकिन व्यापारी इसे अपर्याप्त मानते हैं। उनका कहना है कि कुंज गलियों की भीड़ ही उनकी दुकानों की रौनक है, और कॉरिडोर बनने से ग्राहक कम हो जाएंगे। कुछ व्यापारियों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अध्ययन करने और कानूनी राय लेने की बात कही है।
विरोध की चौथी वजह: टेंडर में मनमानी का डर
गोस्वामी समाज और स्थानीय लोगों को निर्माण कार्य के दौरान टेंडर प्रक्रिया में मनमानी और भ्रष्टाचार का डर है। उनका मानना है कि इतने बड़े प्रोजेक्ट में पारदर्शिता की कमी हो सकती है, और ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने के लिए नियमों की अनदेखी हो सकती है। समाज ने सरकार से मांग की है कि यदि कॉरिडोर बनाना ही है, तो मंदिर के कोष का दुरुपयोग न हो और निर्माण प्रक्रिया में स्थानीय लोगों को शामिल किया जाए। कुछ सेवायतों ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की है, जिसमें टेंडर और मंदिर कोष के उपयोग पर सवाल उठाए गए हैं। यह मुद्दा कॉरिडोर के खिलाफ विरोध को और तेज कर रहा है।
निष्कर्ष
बांके बिहारी कॉरिडोर, जिसे योगी सरकार 500 करोड़ रुपये की लागत से 5 एकड़ में बनाने जा रही है, एक तरफ श्रद्धालुओं के लिए सुविधा और भीड़ प्रबंधन का वादा करता है, तो दूसरी तरफ गोस्वामी समाज और ब्रजवासियों के लिए सांस्कृतिक और आर्थिक संकट का प्रतीक बन गया है। कुंज गलियों का विनाश, सांस्कृतिक पहचान का खतरा, दुकानदारों की आजीविका, और टेंडर में मनमानी की आशंका—ये चार वजहें इस प्रोजेक्ट को विवादास्पद बना रही हैं। सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी के बावजूद, 29 जुलाई 2025 को होने वाली अगली सुनवाई इस विवाद का भविष्य तय कर सकती है।
