राष्ट्रीय शिक्षा नीति से मिला हिन्दी को लाभ, अब कामकाज की भाषा बनाने की जरूरत

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आने के बाद हिन्दी की लोकप्रियता को पंख लगे हैं। इंटरनेट के युग में हिन्दी सात समंदर पार भी बोली और समझी जा रही है। यह बातें प्रतिष्ठित टीडी काॅलेज में हिन्दी के प्रोफेसर डाॅ. जैनेन्द्र पाण्डेय ने कही।
उन्होंने ‘हिन्दुस्थान समाचार’ से कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आने के बाद कम समय में ही हिन्दी को लेकर सकारात्मक परिणाम दिखने लगे हैं। स्नातक स्तर पर हिन्दी पढ़ने वालों की तादात बढ़ रही है। हालांकि, डाॅ. पाण्डेय का यह भी कहना है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कारण दक्षिण भारत में हिन्दी का ग्राफ और नीचे जाने लगा है। पहले त्रिभाषा फार्मूले के तहत जो थोड़े-बहुत लोग हिन्दी पढ़ते भी थे, वे राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भाषा की अनिवार्यता के कारण की जगह अंग्रेजी को तवज्जो दे रहे हैं।
अलबत्ता उन्होंने कहा कि उत्तर भारत में राष्ट्रीय शिक्षा नीति का लाभ हिन्दी को इसलिए मिल रहा है, क्योंकि यहां के लोगों के दिल के करीब हिन्दी है। उन्होंने कहा कि टीडी काॅलेज को ही लें तो स्नातकोत्तर स्तर पर सीटें तो खाली नहीं रहती थीं, पर हिन्दी में प्रवेश को लेकर बहुत मारामारी नहीं रहती थी। अब ज्यादा बच्चे हिन्दी पढ़ना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि देश स्तर पर हिन्दी के पिछड़ने का कारण यह भी है कि हिन्दी के ताकतवर संस्थान नहीं हैं। हिन्दी में मौलिक काम के बजाय ज्यादातर अनुवाद से काम चलाया जाता है। न्यायालयों में फैसले हिन्दी में नहीं आते। उन फैसलों का अनुवाद किया जाता है। अच्छे विश्वविद्यालयों में अंग्रेजी का माहौल है। जब तक कामकाज की भाषा हिन्दी को नहीं बनाया जाता, तब तक हिन्दी उस ऊंचाई को नहीं छू पायेगी, जिसे उसे छूना चाहिए। हालांकि, जैनेन्द्र पाण्डेय ने कहा कि मौलिक काम कम होने के बावजूद हिन्दी की लोकप्रियता बढ़ी है। फिल्मी गानों और ऐसी ही अन्य विधाओं के कारण हिन्दी लोकप्रियता के आसमान को छू रही है। इंटरनेट के जरिए ब्लॉग लिखे जा रहे हैं।
