अयोध्या: राम मंदिर के गर्भगृह के मुख्य शिखर पर कलश स्थापित, 16 अन्य मंदिरों में भी होगी स्थापना
14 अप्रैल, 2025, अयोध्या के श्री राम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण में एक और ऐतिहासिक अध्याय जुड़ गया है। आज, वैशाख कृष्ण प्रतिपदा, 14 अप्रैल 2025 को सुबह 9:15 बजे गर्भगृह के मुख्य शिखर पर कलश पूजन विधि शुरू हुई, और 10:15 बजे वैदिक मंत्रोच्चार के साथ कलश की विधिवत स्थापना संपन्न हुई। यह पल न केवल मंदिर निर्माण की प्रगति का प्रतीक है, बल्कि लाखों राम भक्तों के लिए आस्था और उत्साह का क्षण भी है। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने इस अवसर को भव्य और पवित्र रूप से आयोजित किया।
मुख्य शिखर पर कलश स्थापना: एक स्वर्णिम क्षण
श्री राम जन्मभूमि मंदिर, जो नागर शैली में बन रहा है, अपने गर्भगृह में भगवान रामलला की मूर्ति को समर्पित है। गर्भगृह के ऊपर 161 फीट ऊंचे मुख्य शिखर पर कलश की स्थापना मंदिर के निर्माण कार्य में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। यह कलश, जो शिखर के शीर्ष पर सुशोभित है, भारतीय मंदिर वास्तुकला में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। यह मंदिर की पवित्रता और पूर्णता का प्रतीक माना जाता है।
ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि कलश पूजन में वैदिक रीति-रिवाजों का पालन किया गया। इस समारोह में ट्रस्ट के अन्य पदाधिकारी, निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्रा, लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) के वरिष्ठ अधिकारी, साथ ही कई संत-महात्मा उपस्थित थे। पूजन के दौरान अयोध्या में उत्सवी माहौल रहा, और राम भक्तों ने “जय श्री राम” के उद्घोष के साथ इस क्षण को सेलिब्रेट किया।

16 अन्य मंदिरों में भी होगी कलश स्थापना
श्री राम जन्मभूमि मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर के अलावा 16 अन्य मंदिरों का निर्माण भी तेजी से चल रहा है। इनमें सूर्यदेव, माता भगवती, गणेश, भगवान शिव, मां अन्नपूर्णा, हनुमान जी और सात ऋषियों (सप्तऋषि) को समर्पित मंदिर शामिल हैं। निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्रा ने बताया कि इन सभी मंदिरों के शिखरों पर भी जल्द ही कलश स्थापित किए जाएंगे। इन मंदिरों का निर्माण कार्य फरवरी 2025 तक पूरा होने की उम्मीद है, जिसके बाद जून 2025 तक पूरे परिसर का निर्माण कार्य समाप्त हो जाएगा।
ये 16 मंदिर मंदिर परिसर की भव्यता को और बढ़ाएंगे। प्रत्येक मंदिर में अलग-अलग देवी-देवताओं और संतों की मूर्तियाँ स्थापित की जाएंगी, जो परिसर को एक समग्र तीर्थ स्थल का स्वरूप प्रदान करेंगी। ट्रस्ट ने यह भी सुनिश्चित किया है कि सभी मंदिरों का निर्माण पारंपरिक भारतीय वास्तुकला के मानकों के अनुसार हो, जिसमें आधुनिक सामग्रियों जैसे लोहे या स्टील का उपयोग नहीं किया जा रहा है
मंदिर की वास्तुकला और निर्माण की प्रगति
राम मंदिर का निर्माण 380 फीट लंबाई, 250 फीट चौड़ाई और 161 फीट ऊंचाई के साथ हो रहा है। यह तीन मंजिला संरचना है, जिसमें गर्भगृह और पांच मंडप (नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना मंडप और कीर्तन मंडप) शामिल हैं। मंदिर का गर्भगृह अष्टकोणीय आकार का है, जो इसे अन्य पारंपरिक मंदिरों से अलग बनाता है। मंदिर की नींव में 14 मीटर मोटी रोलर-कॉम्पैक्टेड कंक्रीट की परत और 21 फीट ऊंचा ग्रेनाइट का प्लिंथ इस्तेमाल किया गया है, जो इसे प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षित रखेगा।
मंदिर में राजस्थान के मकराना से सफेद संगमरमर और बंसी पहाड़पुर से बलुआ पत्थर का उपयोग किया जा रहा है। गर्भगृह की दीवारों पर जटिल नक्काशी और मूर्तियाँ बनाई जा रही हैं, जो रामायण के विभिन्न प्रसंगों को दर्शाएंगी। मंदिर परिसर में कोई लोहा या स्टील नहीं इस्तेमाल हुआ है, और पत्थरों को तांबे की प्लेटों से जोड़ा जा रहा है। यह सुनिश्चित करता है कि मंदिर अगले 2,500 वर्षों तक टिका रहे।
अन्य मंदिरों का महत्व
मंदिर परिसर में बन रहे 16 अन्य मंदिर न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। इनमें शामिल हैं:
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सूर्य मंदिर: सूर्यदेव को समर्पित, जो राम के कुलदेवता हैं।
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माता भगवती मंदिर: शक्ति की उपासना का केंद्र।
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गणेश मंदिर: विघ्नहर्ता गणेश को समर्पित, जो हर शुभ कार्य की शुरुआत करते हैं।
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शिव मंदिर: भगवान शिव को समर्पित, जो राम के आराध्य हैं।
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मां अन्नपूर्णा मंदिर: अन्न की देवी को समर्पित, जो समृद्धि का प्रतीक हैं।
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हनुमान मंदिर: राम भक्त हनुमान को समर्पित, जो परिसर के दक्षिणी हिस्से में है।
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सप्तऋषि मंदिर: सात महान ऋषियों को समर्पित, जो भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रतीक हैं।
इन मंदिरों के शिखरों पर कलश स्थापना से परिसर की आध्यात्मिक ऊर्जा और बढ़ेगी। प्रत्येक मंदिर की वास्तुकला मुख्य मंदिर के साथ सामंजस्य रखती है, और इनमें भी नागर शैली के साथ-साथ द्रविड़ और अन्य भारतीय स्थापत्य शैलियों का समावेश किया गया है।
भक्तों में उत्साह, रामनवमी की तैयारियाँ
कलश स्थापना के साथ ही अयोध्या में आगामी रामनवमी (6 अप्रैल, 2025) की तैयारियाँ भी शुरू हो गई हैं। इस वर्ष रामनवमी का उत्सव विशेष होगा, क्योंकि मंदिर का मुख्य शिखर पूर्ण हो चुका है। ट्रस्ट ने बताया कि रामनवमी के अवसर पर भव्य आयोजन किए जाएंगे, जिसमें लाखों भक्तों के शामिल होने की उम्मीद है। मंदिर के उद्घाटन के बाद से ही रोजाना 1-1.5 लाख श्रद्धालु दर्शन के लिए आ रहे हैं, और रामनवमी पर यह संख्या और बढ़ सकती है।
सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
राम मंदिर का निर्माण न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह मंदिर भारत की सांस्कृतिक एकता और विरासत का प्रतीक बन रहा है। विभिन्न राज्यों से सामग्री और कारीगरों का योगदान—जैसे तेलंगाना और कर्नाटक से ग्रेनाइट, राजस्थान से बलुआ पत्थर, और ओडिशा से नक्काशीदार—इस मंदिर को पूरे भारत का प्रतिनिधित्व देता है।
मंदिर परिसर में सीता कूप जैसे ऐतिहासिक स्थल और रामायण से जुड़े अन्य चिह्न भक्तों को प्राचीन काल से जोड़ते हैं। इसके अलावा, मंदिर के निर्माण से अयोध्या में पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बल मिला है।
