अयोध्या के एक प्राचीन मंदिर में रोज होता है श्रीराम का सूर्य तिलक, बिना तकनीक की मदद के होती है घटना
अयोध्या, 7 अप्रैल 2025: अयोध्या, जो भगवान श्रीराम की जन्मभूमि के रूप में विश्व भर में प्रसिद्ध है, अपने प्राचीन मंदिरों और आध्यात्मिक महत्व के लिए जानी जाती है। हाल ही में चर्चा में आई एक खबर ने सभी का ध्यान आकर्षित किया है। अयोध्या के एक प्राचीन मंदिर में हर दिन सूर्य की किरणें स्वाभाविक रूप से श्रीराम की मूर्ति के मस्तक पर पड़ती हैं और उनका “सूर्य तिलक” करती हैं। खास बात यह है कि यह घटना बिना किसी आधुनिक तकनीक, जैसे दर्पण या लेंस, के सहारे होती है। यह प्राकृतिक चमत्कार मंदिर की वास्तुकला और प्राचीन भारतीय खगोल विज्ञान के गहरे ज्ञान का प्रमाण है।
मंदिर का रहस्य
यह मंदिर अयोध्या के उन गिने-चुने प्राचीन स्थलों में से एक है, जो आज भी अपने मूल स्वरूप में संरक्षित हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार, यह मंदिर सैकड़ों साल पुराना है और इसे इस तरह डिजाइन किया गया था कि सूर्य की किरणें हर सुबह एक खास समय पर सीधे गर्भगृह में प्रवेश करती हैं और श्रीराम की मूर्ति के माथे को प्रकाशित करती हैं। यह घटना रोजाना सूर्योदय के कुछ देर बाद होती है और कुछ मिनटों तक चलती है। भक्त इसे सूर्य देव द्वारा श्रीराम को दी गई दिव्य आशीर्वाद के रूप में देखते हैं, क्योंकि श्रीराम सूर्यवंशी वंश के थे।
प्राकृतिक वास्तुकला का कमाल
आधुनिक राम जन्मभूमि मंदिर में सूर्य तिलक के लिए जहां वैज्ञानिकों ने दर्पण और लेंस की जटिल व्यवस्था का उपयोग किया है, वहीं इस प्राचीन मंदिर में यह चमत्कार पूरी तरह से प्राकृतिक है। मंदिर की संरचना इस तरह बनाई गई है कि सूर्य की स्थिति के अनुसार खिड़कियां और छिद्र सटीक रूप से संरेखित हैं। प्राचीन भारतीय मंदिर वास्तुशास्त्र और खगोल विज्ञान के जानकारों का मानना है कि इस तरह की डिजाइन उस समय के बिल्डरों की गहरी समझ को दर्शाती है। सूर्य की किरणें साल भर, मौसम बदलने के बावजूद, मूर्ति के मस्तक पर सटीकता से पड़ती हैं, जो इसकी विशेषता को और रहस्यमयी बनाता है।
स्थानीय मान्यताएं और इतिहास
मंदिर के पुजारी और स्थानीय लोग बताते हैं कि यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। कुछ का मानना है कि इस मंदिर का निर्माण त्रेता युग के बाद किसी सूर्यवंशी राजा ने करवाया था, ताकि श्रीराम को हर दिन सूर्य की पूजा मिले। हालांकि, इस मंदिर का सटीक इतिहास अभी तक स्पष्ट नहीं है, लेकिन इसके पीछे की कहानी और वास्तु कला इसे एक अनोखा स्थल बनाती है। भक्तों का कहना है कि इस सूर्य तिलक को देखने से मन को शांति और आत्मा को ऊर्जा मिलती है।

तुलना और चर्चा
हाल के वर्षों में अयोध्या के नवनिर्मित राम मंदिर में राम नवमी के दिन होने वाला सूर्य तिलक सुर्खियों में रहा है। वहां यह घटना हर साल चैत्र मास की नवमी तिथि को दोपहर 12 बजे होती है, जिसके लिए CSIR और भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान ने मिलकर एक ऑप्टो-मैकेनिकल सिस्टम तैयार किया है। लेकिन इस प्राचीन मंदिर की खासियत यह है कि यहां सूर्य तिलक रोज होता है और वह भी बिना किसी यांत्रिक सहायता के। यह अंतर प्राचीन और आधुनिक तकनीक के बीच एक रोचक तुलना को जन्म देता है।
भक्तों की आस्था
इस मंदिर में आने वाले भक्त इसे एक चमत्कार मानते हैं। एक स्थानीय भक्त ने कहा, “हमारे लिए यह हर दिन का राम नवमी है। सूर्य भगवान खुद आकर प्रभु श्रीराम को तिलक करते हैं। यह दृश्य देखकर लगता है कि प्राचीन काल का वैभव आज भी जीवित है।” मंदिर में सुबह के समय भक्तों की भीड़ बढ़ने लगी है, क्योंकि यह खबर धीरे-धीरे फैल रही है। कुछ लोग इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने की कोशिश कर रहे हैं, तो कुछ इसे आस्था और परंपरा का हिस्सा मानते हैं।
विशेषज्ञों की राय
पुरातत्वविदों और वास्तुशास्त्रियों का कहना है कि भारत में कई प्राचीन मंदिरों को खगोलीय घटनाओं के आधार पर बनाया गया था। कोणार्क सूर्य मंदिर, गवी गंगाधरेश्वर मंदिर और मोढ़ेरा सूर्य मंदिर जैसे उदाहरणों में भी सूर्य की किरणें खास दिनों पर मूर्तियों को प्रकाशित करती हैं। लेकिन अयोध्या के इस मंदिर की खासियत यह है कि यह रोजाना होता है। एक विशेषज्ञ ने बताया, “यह मंदिर सूर्य के वार्षिक चक्र और पृथ्वी की स्थिति के साथ पूरी तरह संरेखित है। यह उस समय के वास्तुकारों की अद्भुत कारीगरी को दर्शाता है।”
