• April 19, 2025

इलाहाबाद हाईकोर्ट: कायस्थ पाठशाला ट्रस्ट अध्यक्ष चौधरी राघवेंद्र नाथ सिंह की ताजपोशी को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई टली

प्रयागराज, 18 अप्रैल 2025: कायस्थ पाठशाला (केपी) ट्रस्ट के अध्यक्ष चौधरी राघवेंद्र नाथ सिंह की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई टल गई है। यह मामला तकनीकी कारणों से स्थगित हुआ और अब इसकी सुनवाई सोमवार, 21 अप्रैल 2025 को होगी। याचिका में ट्रस्ट के चुनाव प्रक्रिया और अध्यक्ष पद के लिए चौधरी राघवेंद्र की नियुक्ति को अनियमितता का हवाला देकर चुनौती दी गई है।
मामले की पृष्ठभूमि
कायस्थ पाठशाला ट्रस्ट, प्रयागराज का एक प्रतिष्ठित शैक्षणिक और सामाजिक संगठन है, जिसके चुनाव और प्रबंधन से जुड़े मामले अक्सर चर्चा में रहते हैं। सितंबर 2023 में हुए ट्रस्ट के चुनाव में चौधरी राघवेंद्र नाथ सिंह ने अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल किया था और निर्वाचित हुए थे। उनकी इस नियुक्ति को कुछ सदस्यों ने गैर-कानूनी और नियमों के खिलाफ बताते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
याचिका में दावा किया गया है कि चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी थी और कई नियमों का उल्लंघन किया गया। याचिकाकर्ताओं ने यह भी आरोप लगाया कि चौधरी राघवेंद्र की नियुक्ति ट्रस्ट के संविधान और निर्वाचन नियमों के अनुरूप नहीं थी। इसके अलावा, कुछ याचिकाकर्ताओं ने नामांकन प्रक्रिया और मतगणना में कथित अनियमितताओं का मुद्दा उठाया है।
सुनवाई में देरी का कारण
18 अप्रैल 2025 को निर्धारित सुनवाई गलत बेंच में याचिका के सूचीबद्ध होने के कारण टल गई। इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार कार्यालय ने इस तकनीकी त्रुटि को सुधारते हुए मामले को उचित बेंच के समक्ष 21 अप्रैल 2025 को सुनवाई के लिए पुनः सूचीबद्ध किया है। यह सुनवाई अब जस्टिस की विशेष बेंच के समक्ष होगी, जो इस तरह के ट्रस्ट और संस्थागत विवादों से संबंधित मामलों की सुनवाई के लिए नामित है।
याचिका की प्रमुख मांगें
याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में निम्नलिखित मांगें रखी हैं:
  1. चुनाव प्रक्रिया की जांच: केपी ट्रस्ट के 2023 के चुनाव में कथित अनियमितताओं की निष्पक्ष जांच की मांग।
  2. अध्यक्ष की नियुक्ति रद्द करना: चौधरी राघवेंद्र नाथ सिंह की अध्यक्ष पद पर नियुक्ति को अवैध घोषित करने की अपील।
  3. नए सिरे से चुनाव: ट्रस्ट के नियमों और पारदर्शी प्रक्रिया के तहत नए सिरे से चुनाव कराने का आदेश।
  4. अंतरिम रोक: सुनवाई पूरी होने तक चौधरी राघवेंद्र को अध्यक्ष के रूप में कार्य करने से रोकने की मांग।
चौधरी राघवेंद्र का पक्ष
चौधरी राघवेंद्र नाथ सिंह ने इन आरोपों को निराधार बताया है। उनके पक्ष के वकीलों ने तर्क दिया है कि चुनाव प्रक्रिया पूरी तरह से ट्रस्ट के संविधान और नियमों के अनुरूप थी। उन्होंने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता व्यक्तिगत हितों और ट्रस्ट के भीतर गुटबाजी के कारण इस तरह की याचिकाएं दायर कर रहे हैं। चौधरी राघवेंद्र ने दावा किया कि उनकी नियुक्ति वैध और पारदर्शी प्रक्रिया के तहत हुई थी, और वे ट्रस्ट के हित में काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
केपी ट्रस्ट का महत्व
कायस्थ पाठशाला ट्रस्ट प्रयागराज का एक ऐतिहासिक संगठन है, जो शिक्षा, संस्कृति और सामाजिक कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान देता है। ट्रस्ट कई स्कूल, कॉलेज और अन्य संस्थानों का संचालन करता है, जिनमें सैकड़ों छात्र पढ़ते हैं। इसके अलावा, ट्रस्ट का सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव भी व्यापक है, जिसके कारण इसके प्रबंधन और चुनाव से जुड़े मामले हमेशा सुर्खियों में रहते हैं।
पिछले कुछ वर्षों में ट्रस्ट के चुनावों और प्रबंधन को लेकर कई विवाद सामने आए हैं। 2023 के चुनाव में भी कई उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया था, और चौधरी राघवेंद्र की जीत के बाद से ही कुछ सदस्यों ने प्रक्रिया पर सवाल उठाए थे।
कानूनी और सामाजिक प्रभाव
यह मामला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और सामुदायिक स्तर पर भी इसका व्यापक प्रभाव है। कायस्थ पाठशाला ट्रस्ट से जुड़े लोग और स्थानीय समुदाय इस मामले पर करीबी नजर रखे हुए हैं। याचिका के नतीजे से न केवल ट्रस्ट की भविष्य की दिशा तय होगी, बल्कि यह अन्य शैक्षणिक और सामाजिक संगठनों के लिए भी एक मिसाल कायम कर सकता है।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस मामले में कोर्ट चुनाव प्रक्रिया की वैधता और ट्रस्ट के संविधान की व्याख्या पर विशेष ध्यान देगा। अगर याचिकाकर्ता अपने दावों को ठोस सबूतों के साथ साबित कर पाए, तो कोर्ट चौधरी राघवेंद्र की नियुक्ति को रद्द कर सकता है। वहीं, अगर ट्रस्ट की प्रक्रिया को वैध पाया गया, तो यह याचिकाकर्ताओं के लिए झटका होगा।
आगे की राह
21 अप्रैल 2025 को होने वाली सुनवाई में दोनों पक्षों के वकील अपनी दलीलें पेश करेंगे। याचिकाकर्ता जहां चुनाव में कथित अनियमितताओं के सबूत पेश करने की कोशिश करेंगे, वहीं चौधरी राघवेंद्र के वकील उनकी नियुक्ति की वैधता को साबित करने पर जोर देंगे। कोर्ट इस मामले में अंतरिम आदेश भी जारी कर सकता है, जैसे कि सुनवाई पूरी होने तक अध्यक्ष के कार्यों पर रोक लगाना।
इसके अलावा, यह मामला ट्रस्ट के भीतर चल रही गुटबाजी और सत्ता संघर्ष को भी उजागर करता है। कई पर्यवेक्षकों का मानना है कि यह विवाद केवल कानूनी नहीं, बल्कि ट्रस्ट के प्रबंधन और नेतृत्व पर नियंत्रण की लड़ाई भी है।
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