आस्था की नई राह: काशी में गंगा की लहरों के बीच असद खान बने ‘अथर्व त्यागी’, 21 ब्राह्मणों ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ कराई घर वापसी
धर्म और आध्यात्म की नगरी काशी एक बार फिर एक बड़े परिवर्तन की साक्षी बनी है। मध्य प्रदेश से आए एक युवक ने अपनी अंतरात्मा की पुकार और सनातन संस्कृति के प्रति अटूट श्रद्धा को देखते हुए प्राचीन विधि-विधान से हिंदू धर्म अपना लिया है। सागर जिले के निवासी असद खान ने वाराणसी पहुंचकर न केवल अपना धर्म बदला, बल्कि गंगा की लहरों के बीच ऋषियों-मुनियों वाली परंपरा के अनुसार अपना नया नाम ‘अथर्व त्यागी’ स्वीकार किया। यह पूरी प्रक्रिया किसी बंद कमरे में नहीं, बल्कि मां गंगा की गोद में एक विशाल नौका पर संपन्न हुई, जहाँ वेदपाठी ब्राह्मणों के मंत्रोच्चार से संपूर्ण वातावरण गुंजायमान हो उठा।
गंगा की लहरों पर वैदिक अनुष्ठान: शुद्धिकरण से नामकरण तक का सफर
वाराणसी के पवित्र घाटों के किनारे सोमवार का दिन सामान्य दिनों से कुछ अलग था। बीच गंगा में एक सजी हुई नाव पर 21 ब्राह्मणों की उपस्थिति ने राहगीरों और श्रद्धालुओं का ध्यान अपनी ओर खींचा। मध्य प्रदेश के सागर जिले से आए असद खान यहाँ ‘घर वापसी’ के संकल्प के साथ पहुंचे थे। सनातन धर्म में दीक्षा लेने की यह प्रक्रिया अत्यंत शास्त्रीय और भव्य रही।
अनुष्ठान का नेतृत्व कर रहे विद्वान ब्राह्मण आलोक नाथ योगी ने बताया कि सनातन धर्म में किसी को भी सम्मिलित करने से पूर्व शास्त्रीय शुद्धिकरण की प्रक्रिया अनिवार्य होती है। इसी परंपरा का पालन करते हुए सबसे पहले असद खान का शुद्धिकरण संस्कार किया गया। इसके बाद पंचद्रव्य (दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल) से स्नान और मंत्रोच्चार के माध्यम से आत्मिक शुद्धि की गई। पूजन के अगले चरण में गौरी-गणेश का पूजन संपन्न हुआ, जिसे हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत के लिए अनिवार्य माना जाता है। इस दौरान 21 बटुक ब्राह्मणों के समवेत स्वर में किए गए वैदिक पाठ ने माँ गंगा के आंचल में एक अलौकिक आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार कर दिया।
असद खान से ‘अथर्व त्यागी’: एक नई पहचान का उदय
शुद्धिकरण और पंचदेव पूजन के पश्चात सबसे महत्वपूर्ण क्षण नामकरण संस्कार का आया। शास्त्रीय विधि के अनुसार, दीक्षा लेने वाले व्यक्ति को एक नया नाम दिया जाता है जो उसकी नई धार्मिक यात्रा का प्रतीक होता है। आलोक नाथ योगी और उपस्थित विद्वानों ने सर्वसम्मति से असद खान को ‘अथर्व त्यागी’ का नया नाम दिया।
नामकरण के तुरंत बाद नवनियुक्त अथर्व त्यागी ने हनुमान चालीसा का सस्वर पाठ किया। हनुमान जी के प्रति अपनी अगाध श्रद्धा प्रकट करते हुए उन्होंने बजरंग बली की आरती उतारी और संकल्प लिया कि वे जीवनपर्यंत सनातन धर्म के मूल्यों और मर्यादाओं का पालन करेंगे। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान नाव पर मौजूद हिंदू युवा शक्ति के कार्यकर्ता और ब्राह्मणों ने ‘हर-हर महादेव’ के उद्घोष से आकाश गुंजायमान कर दिया।
इंजीनियर से सनातनी तक: क्यों लिया धर्म परिवर्तन का निर्णय?
अथर्व त्यागी (पूर्व नाम असद खान) के जीवन की पृष्ठभूमि पर नजर डालें तो वे एक शिक्षित और संपन्न परिवार से ताल्लुक रखते हैं। पेशे से इंजीनियर अथर्व मध्य प्रदेश के सागर जिले में रहते हैं और वर्तमान में सरकारी विभागों में ठेकेदारी (Contractor) का कार्य करते हैं। उनका पूरा परिवार मुस्लिम धर्म का पालन करता है, लेकिन अथर्व के भीतर बचपन से ही कुछ अलग आध्यात्मिक जिज्ञासाएं थीं।
मीडिया से बातचीत करते हुए अथर्व ने बताया कि उनकी रुचि बचपन से ही मंदिरों, पूजा-पाठ और हिंदू धर्म की कथाओं में रही है। उन्होंने कहा, “मेरे भीतर सनातन धर्म के प्रति आकर्षण कोई नई बात नहीं है। मैं बचपन से ही मंदिरों में जाना चाहता था, लेकिन बड़े होने पर जब मेरी समझ विकसित हुई, तो मुझे अपने नाम (असद) के कारण कई बार असहजता का अनुभव हुआ। कई बार मंदिरों में प्रवेश या पूजन के समय लोग संशय की दृष्टि से देखते थे, जिससे मुझे मानसिक पीड़ा होती थी।” उन्होंने स्पष्ट किया कि वे स्वयं को भगवान बजरंग बली का अनन्य भक्त मानते हैं और अपनी इसी आस्था को सामाजिक और कानूनी पहचान देने के लिए उन्होंने काशी को चुना।
घर वापसी में ब्राह्मणों और सामाजिक संगठनों का सहयोग
इस धर्म परिवर्तन और घर वापसी के कार्यक्रम को सफल बनाने में ‘हिंदू युवा शक्ति’ और काशी के विद्वानों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पूजन का मुख्य संचालन हिंदू युवा शक्ति के प्रदेश प्रचारक योगी आलोक नाथ ने किया। उनके साथ सुधीर सिंह, सौरभ गौतम, निखिल यादव, सौम्या सिंह, ऋचा सिंह और सचिन त्रिपाठी जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं ने व्यवस्था संभाली।
अनुष्ठान में शामिल 21 बटुक ब्राह्मणों ने बताया कि यह पूरी प्रक्रिया पूरी तरह से स्वैच्छिक और शास्त्रीय मर्यादाओं के भीतर संपन्न हुई है। आलोक नाथ योगी ने कहा कि सनातन धर्म किसी पर थोपा नहीं जाता, बल्कि यह एक जीवन पद्धति है जिसे अथर्व ने अपनी स्वेच्छा से अपनाया है। उन्होंने बताया कि काशी विद्या की नगरी है और यहाँ से शुरू हुई यह नई यात्रा अथर्व के जीवन में सुख, शांति और आध्यात्मिक संतोष लेकर आएगी।
आस्था का अधिकार और सामाजिक संदेश
अथर्व त्यागी का यह कदम वर्तमान समय में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और धार्मिक आस्था के अधिकार को रेखांकित करता है। उन्होंने मीडिया के माध्यम से संदेश दिया कि धर्म परिवर्तन का उनका निर्णय किसी दबाव या प्रलोभन में नहीं, बल्कि हृदय की पुकार पर आधारित है। वे अपनी नई पहचान ‘अथर्व त्यागी’ के साथ अब समाज के बीच एक गौरवशाली सनातनी के रूप में जीवन व्यतीत करना चाहते हैं।
काशी के घाटों पर हुआ यह आयोजन न केवल एक व्यक्ति के जीवन में बदलाव का प्रतीक है, बल्कि यह सनातन धर्म की समावेशी प्रकृति को भी दर्शाता है। अनुष्ठान की समाप्ति पर अथर्व ने गंगा पूजन कर आशीर्वाद लिया और उपस्थित सभी जनों का आभार व्यक्त किया। अब वे वापस मध्य प्रदेश लौटकर अपनी नई पहचान के साथ अपने पेशे और सामाजिक जीवन की नई शुरुआत करेंगे।