• December 26, 2025

शीतकालीन सत्र में मनरेगा को लेकर तीखा टकराव, प्रियंका गांधी का सरकार पर हमला, विधेयक वापस लेने की मांग

नई दिल्ली: संसद के शीतकालीन सत्र में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को निरस्त कर उसकी जगह नया कानून लाने के प्रस्ताव पर सियासी घमासान तेज हो गया है। विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस, ने सरकार के इस कदम का कड़ा विरोध किया है। लोकसभा में कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने नए विधेयक को ग्रामीण भारत, संविधान और लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की मूल भावना के खिलाफ बताते हुए सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि मनरेगा केवल एक योजना नहीं, बल्कि ग्रामीण गरीबों के लिए कानूनी अधिकार और आर्थिक सुरक्षा की गारंटी है, जिसे कमजोर करने की कोशिश की जा रही है।

प्रियंका गांधी ने अपने भाषण में कहा कि मनरेगा पिछले करीब 20 वर्षों से ग्रामीण भारत को रोजगार देने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में अहम भूमिका निभा रहा है। यह कानून केवल मजदूरी का जरिया नहीं है, बल्कि इसने गांवों में क्रयशक्ति बढ़ाई, पलायन को रोका और गरीब से गरीब परिवार को सम्मान के साथ जीवन जीने का अधिकार दिया।

“मनरेगा एक क्रांतिकारी कानून है”

लोकसभा में बोलते हुए प्रियंका गांधी ने कहा,
“मनरेगा इतना क्रांतिकारी कानून है कि जब इसे बनाया गया था, तब इस सदन में मौजूद लगभग सभी राजनीतिक दलों ने इसका समर्थन किया था। यह केवल कांग्रेस की योजना नहीं थी, बल्कि पूरे देश की सहमति से बना एक कानून था।”

उन्होंने कहा कि इस कानून ने ग्रामीण गरीबों को हर साल 100 दिनों के रोजगार की कानूनी गारंटी दी। इससे न केवल आर्थिक सुरक्षा मिली, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में आत्मसम्मान और स्थिरता भी आई। प्रियंका गांधी के मुताबिक, मनरेगा ने महिलाओं, दलितों, आदिवासियों और हाशिए पर खड़े समुदायों को सबसे अधिक सशक्त किया।

नाम बदलने पर भावनात्मक अपील

मनरेगा से महात्मा गांधी का नाम हटाने के प्रस्ताव पर प्रियंका गांधी ने भावनात्मक लेकिन स्पष्ट शब्दों में अपनी बात रखी। उन्होंने कहा,
“महात्मा गांधी मेरे परिवार से नहीं हैं, लेकिन मेरे परिवार जैसे हैं। यही भावना इस पूरे देश की है। गांधी जी किसी एक परिवार या पार्टी के नहीं, बल्कि पूरे भारत के हैं।”

उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार योजनाओं और संस्थाओं से महात्मा गांधी का नाम हटाकर इतिहास और मूल्यों को कमजोर करने का प्रयास कर रही है। प्रियंका गांधी के अनुसार, यह केवल नाम बदलने का मुद्दा नहीं है, बल्कि उस विचारधारा को हटाने की कोशिश है, जो गरीब, ग्रामीण और कमजोर वर्गों के सशक्तिकरण से जुड़ी रही है।

73वें संविधान संशोधन का उल्लंघन

प्रियंका गांधी ने नए कानून को संविधान के 73वें संशोधन के खिलाफ बताया, जो पंचायती राज व्यवस्था और ग्राम सभाओं को मजबूत करने के लिए लाया गया था। उन्होंने कहा कि मनरेगा के तहत रोजगार की मांग के अनुसार केंद्र सरकार को धन आवंटित करना अनिवार्य है, जिससे यह एक “डिमांड-ड्रिवन” योजना बनती है।

उन्होंने कहा,
“मनरेगा के तहत हमारे गरीब भाई-बहनों को रोजगार की कानूनी गारंटी मिलती है। अगर लोग काम मांगते हैं, तो सरकार को पैसा देना ही पड़ता है। लेकिन नए कानून में केंद्र सरकार पहले से बजट तय कर सकती है। इसका मतलब यह है कि अगर पैसा खत्म हो गया, तो गरीब को रोजगार नहीं मिलेगा।”

प्रियंका गांधी ने इसे 73वें संविधान संशोधन की भावना के खिलाफ बताया, क्योंकि इससे पंचायतों और ग्राम सभाओं की भूमिका कमजोर होती है।

ग्राम सभाओं के अधिकारों पर खतरा

कांग्रेस सांसद ने आरोप लगाया कि नया कानून ग्राम सभाओं के अधिकारों को कमजोर करता है। उन्होंने कहा कि संविधान की मूल भावना यह है कि सत्ता और शक्ति का विकेंद्रीकरण हो और हर नागरिक, विशेषकर गांवों में रहने वाले लोग, निर्णय प्रक्रिया का हिस्सा बनें।

उन्होंने कहा,
“पंचायती राज व्यवस्था की आत्मा यही है कि ग्राम सभा तय करे कि गांव में क्या काम होगा, किसे रोजगार मिलेगा और विकास की प्राथमिकताएं क्या होंगी। नया अधिनियम इस मूल भावना का विरोध करता है।”

प्रियंका गांधी के मुताबिक, अगर ग्राम सभाओं को दरकिनार किया गया, तो ग्रामीण लोकतंत्र कमजोर होगा और योजनाएं कागजों तक सीमित रह जाएंगी।

रोजगार के कानूनी अधिकार पर हमला

प्रियंका गांधी ने नए कानून को रोजगार के कानूनी अधिकार पर सीधा हमला बताया। उन्होंने कहा कि मनरेगा के तहत रोजगार मांगना एक कानूनी अधिकार है और यदि समय पर काम नहीं मिलता, तो बेरोजगारी भत्ता देने का प्रावधान है।

उन्होंने आरोप लगाया कि नए कानून में यह कानूनी मजबूती खत्म हो जाती है और रोजगार सरकार की “मर्जी” पर निर्भर हो जाएगा।
“यह संविधान के खिलाफ है। गरीब को भी उतना ही अधिकार है, जितना अमीर को। रोजगार का अधिकार कमजोर करना लोकतंत्र को कमजोर करना है,” उन्होंने कहा।

शशि थरूर का समर्थन, गांधी का नाम हटाना “अनैतिक”

कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी सरकार के प्रस्ताव का विरोध करते हुए मनरेगा से महात्मा गांधी का नाम हटाने को “अनैतिक” बताया। उन्होंने कहा कि गांधी जी का नाम केवल एक प्रतीक नहीं, बल्कि सत्य, अहिंसा और सामाजिक न्याय के मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है।

शशि थरूर ने कहा कि जिस कानून ने देश के करोड़ों गरीबों को सम्मान के साथ जीने का अवसर दिया, उससे गांधी का नाम हटाना नैतिक और ऐतिहासिक रूप से गलत है।

विपक्ष की एकजुट मांग: विधेयक वापस लिया जाए

विपक्षी दलों ने सरकार से इस विधेयक को तुरंत वापस लेने की मांग की है। कांग्रेस का कहना है कि यदि सरकार वास्तव में ग्रामीण भारत की चिंता करती है, तो उसे मनरेगा को कमजोर करने के बजाय उसका बजट बढ़ाना चाहिए, मजदूरी दर में सुधार करना चाहिए और समय पर भुगतान सुनिश्चित करना चाहिए।

विपक्ष का आरोप है कि नया कानून राज्यों पर वित्तीय बोझ बढ़ाएगा, क्योंकि केंद्र की जिम्मेदारी कम होगी। इससे गरीब राज्यों पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा और असमानता और बढ़ेगी।

सरकार बनाम विपक्ष: आगे और तीखी बहस के संकेत

शीतकालीन सत्र में अब यह साफ हो गया है कि मनरेगा को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच टकराव और तेज होगा। जहां सरकार नए कानून को “सुधार” के रूप में पेश कर रही है, वहीं विपक्ष इसे संविधान, लोकतंत्र और गरीबों के अधिकारों पर हमला बता रहा है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मनरेगा जैसे संवेदनशील और व्यापक प्रभाव वाले कानून पर बदलाव का मुद्दा केवल संसद तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह देशभर में राजनीतिक बहस का बड़ा विषय बन सकता है।

मनरेगा को निरस्त कर नया कानून लाने के प्रस्ताव ने संसद के शीतकालीन सत्र को गर्मा दिया है। प्रियंका गांधी और कांग्रेस ने इसे ग्रामीण भारत, संविधान के 73वें संशोधन, ग्राम सभाओं के अधिकारों और रोजगार के कानूनी अधिकार के खिलाफ बताया है। शशि थरूर समेत विपक्षी नेताओं ने महात्मा गांधी का नाम हटाने को अनैतिक करार देते हुए सरकार से विधेयक वापस लेने की मांग की है। आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर संसद के भीतर और बाहर राजनीतिक टकराव और तेज होने की पूरी संभावना है।

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