उन्नाव दुष्कर्म कांड: सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पीड़िता को मिली बड़ी राहत, कहा- ‘न्याय के लिए आखिरी सांस तक लड़ूंगी’
उत्तर प्रदेश के चर्चित उन्नाव दुष्कर्म कांड में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने एक बार फिर न्याय व्यवस्था के प्रति आम जनमानस और विशेषकर पीड़िता के विश्वास को मजबूती दी है। पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की सजा के निलंबन पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगाए जाने के बाद पीड़िता ने अपनी प्रतिक्रिया साझा की है। पीड़िता ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि यह लड़ाई केवल उसकी व्यक्तिगत लड़ाई नहीं है, बल्कि देश की उन तमाम बेटियों और महिलाओं की आवाज है जो शक्तिशाली व्यवस्थाओं और रसूखदार लोगों के खिलाफ न्याय की गुहार लगा रही हैं। पीड़िता ने कहा कि वह अन्याय के खिलाफ अपनी आखिरी सांस तक लड़ती रहेंगी और किसी भी कीमत पर पीछे नहीं हटेंगी।
सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप को पीड़िता ने बताया न्याय की जीत
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी और संतोष व्यक्त करते हुए पीड़िता ने कहा कि उन्हें देश की सर्वोच्च अदालत पर अटूट भरोसा है। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगाना अनिवार्य था जिसने एक सजायाफ्ता अपराधी को बाहर आने का रास्ता खोल दिया था। पीड़िता का तर्क है कि यदि कुलदीप सेंगर को जमानत मिलती या उसकी सजा निलंबित रहती, तो समाज में एक बेहद गलत संदेश जाता। उनके अनुसार, देश में इस समय महिलाओं पर अत्याचार के हजारों मुकदमे लंबित हैं। अगर सेंगर जैसा रसूखदार व्यक्ति जेल की सलाखों से बाहर आता, तो अन्य मामलों में भी अपराधी इसी फैसले को नजीर (उदाहरण) के तौर पर पेश करते और एक-एक कर सभी बाहर आ जाते। इससे न केवल पीड़ितों का मनोबल टूटता, बल्कि अपराधियों के हौसले भी बुलंद होते।
पीड़िता ने फोन पर बातचीत के दौरान भावुक होते हुए कहा कि उन्हें झूठा साबित करने की हर संभव कोशिश की गई। सत्ता और रसूख के बल पर मामले को दबाने का प्रयास हुआ, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय ने उन लोगों के मुंह पर तमाचा जड़ा है जो सच को दबाना चाहते थे। पीड़िता ने इस बात पर भी जोर दिया कि न्याय की इस यात्रा में उन्हें और उनकी मां को बहुत संघर्ष करना पड़ा है। उन्होंने सीबीआई की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए और कहा कि अगर हाईकोर्ट के फैसले के तुरंत बाद केंद्रीय जांच एजेंसी ने समय पर अपील दाखिल कर दी होती, तो उन्हें पुलिस की धक्कामुक्की और मानसिक प्रताड़ना का सामना नहीं करना पड़ता।
स्वत: संज्ञान और न्याय का पुराना इतिहास
यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट इस मामले में रक्षक बनकर उभरा है। पीड़िता ने याद दिलाया कि सजायाफ्ता कुलदीप सेंगर के खिलाफ इस लंबी लड़ाई में सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी कई बार महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जुलाई 2019 का वह भयावह मंजर आज भी पीड़िता के जेहन में ताजा है, जब रायबरेली में उनकी कार को एक ट्रक ने टक्कर मार दी थी। उस संदिग्ध हादसे में पीड़िता की चाची और मौसी की दर्दनाक मौत हो गई थी, जबकि पीड़िता और उनके वकील गंभीर रूप से घायल हो गए थे। उस समय भी जब स्थानीय स्तर पर मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की जा रही थी, तब सुप्रीम कोर्ट ने ही पूरे प्रकरण का स्वत: संज्ञान लिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने न केवल उस समय सुरक्षा सुनिश्चित की, बल्कि मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए उत्तर प्रदेश से सभी मुकदमों को दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में स्थानांतरित करने का ऐतिहासिक आदेश दिया था। पीड़िता का मानना है कि यदि मुकदमा दिल्ली ट्रांसफर न हुआ होता, तो शायद रसूखदार सेंगर को वह सजा न मिलती जो तीस हजारी कोर्ट ने सुनाई थी। विशेष अदालत ने सेंगर को दुष्कर्म और पीड़िता के पिता की कस्टोडियल डेथ (हिरासत में मौत) का दोषी मानते हुए उसे आखिरी सांस तक जेल में रहने की सजा सुनाई थी।
सीआरपीएफ सुरक्षा की बहाली के लिए लगाई गुहार
न्याय की इस लड़ाई के बीच पीड़िता ने अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेशों के तहत उन्हें, उनके परिवार और मामले की पैरवी करने वाले पैरोकारों को केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) की सुरक्षा प्रदान की गई थी। हालांकि, करीब छह साल बीतने के बाद 3 अप्रैल 2025 को प्रशासन ने एक चौंकाने वाला फैसला लेते हुए पीड़िता को छोड़कर परिवार के अन्य सभी सदस्यों और मददगारों की सीआरपीएफ सुरक्षा वापस ले ली।
पीड़िता ने सरकार और प्रशासन से मांग की है कि उनकी सुरक्षा को तत्काल बहाल किया जाए। उन्होंने दलील दी कि कुलदीप सेंगर भले ही जेल में हो, लेकिन उसका राजनीतिक रसूख और उसके समर्थकों का प्रभाव आज भी क्षेत्र में कायम है। पीड़िता और उनके मददगारों को लगातार जान का खतरा बना रहता है। सुरक्षा हटाए जाने से परिवार में डर का माहौल है। पीड़िता का कहना है कि सुरक्षा के अभाव में वे स्वतंत्र रूप से न्याय की लड़ाई नहीं लड़ पाएंगी, इसलिए सरकार को इस मामले की गंभीरता को समझते हुए उनकी सुरक्षा में कटौती नहीं करनी चाहिए।
सेंगर खेमे में मायूसी और समर्थकों का तर्क
दूसरी तरफ, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद कुलदीप सिंह सेंगर के समर्थकों और उनके परिवार में सन्नाटा पसरा हुआ है। हाईकोर्ट से सजा निलंबित होने के बाद समर्थकों के बीच यह उम्मीद जगी थी कि पूर्व विधायक जल्द ही जेल से बाहर आएंगे और क्षेत्र में उनकी वापसी होगी। सोमवार दोपहर जैसे ही सुप्रीम कोर्ट की रोक की खबर उन्नाव पहुंची, समर्थकों में मायूसी छा गई। पूर्व विधायक के आवास पर सन्नाटा पसरा रहा और कोई भी खुलकर बोलने को तैयार नहीं हुआ।
हालांकि, सेंगर के कुछ समर्थकों का अभी भी यह मानना है कि हाईकोर्ट की डबल बेंच ने तथ्यों के आधार पर ही 53 पन्नों का विस्तृत फैसला सुनाया होगा। समर्थकों का कहना है कि वे न्यायपालिका का सम्मान करते हैं और उन्हें उम्मीद है कि जब सुप्रीम कोर्ट में तथ्यों पर विस्तृत बहस होगी, तो सच्चाई सामने आएगी। उनका तर्क है कि किसी भी व्यक्ति को केवल जन आक्रोश के आधार पर सजा नहीं दी जा सकती, बल्कि साक्ष्यों की प्रधानता होनी चाहिए। फिलहाल, सेंगर खेमा इस कानूनी झटके से उबरने की कोशिश कर रहा है और सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई की तैयारी में जुटा है।
बेटी इशिता सेंगर की मार्मिक अपील: ‘क्या चुप रहने की कीमत चुकानी पड़ी?’
इस पूरे घटनाक्रम के बीच कुलदीप सेंगर की बेटी इशिता सेंगर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर एक भावुक और लंबी चिट्ठी साझा की है। उन्होंने भारत गणराज्य के उच्च अधिकारियों को संबोधित करते हुए अपने परिवार का पक्ष रखा। इशिता ने लिखा कि वह यह पत्र एक ऐसी बेटी के रूप में लिख रही हैं जो आठ वर्षों के संघर्ष से थक चुकी है और डरी हुई है। उन्होंने कहा कि पिछले आठ सालों से उनका परिवार केवल इसलिए चुप रहा क्योंकि उन्हें देश के संविधान और कानून पर भरोसा था।
इशिता ने अपनी पोस्ट में सवाल उठाया कि क्या एक विधायक की बेटी होने के कारण उनकी इंसानियत खत्म हो जाती है? उन्होंने आरोप लगाया कि सोशल मीडिया पर उन्हें और उनके परिवार को अनगिनत बार प्रताड़ित किया गया, यहां तक कि उनके लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया गया। इशिता ने लिखा कि उनके परिवार ने कभी कोई विरोध प्रदर्शन नहीं किया, पुतले नहीं जलाए और न ही टीवी डिबेट्स में शोर मचाया। उन्होंने पूछा कि क्या उनकी इस खामोशी और संस्थाओं पर भरोसे की उन्हें यह कीमत चुकानी पड़ रही है कि उनकी बात सुनने से पहले ही उन पर एक लेबल लगा दिया जाता है। इशिता की यह चिट्ठी सोशल मीडिया पर काफी चर्चा बटोर रही है और मामले में एक नया दृष्टिकोण पेश कर रही है।
निष्कर्ष: न्याय और रसूख के बीच का लंबा संघर्ष
उन्नाव का यह मामला केवल एक दुष्कर्म का मामला नहीं रह गया है, बल्कि यह रसूखदार बनाम न्याय की लड़ाई का प्रतीक बन चुका है। एक तरफ जहां पीड़िता अपने परिवार को खोने के बाद भी साहस के साथ खड़ी है, वहीं दूसरी तरफ आरोपी पक्ष अपनी बेगुनाही के दावे कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला यह सुनिश्चित करता है कि न्याय की प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की जल्दबाजी या प्रभाव की जगह नहीं होगी। आने वाले दिनों में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई यह तय करेगी कि क्या कुलदीप सेंगर को सलाखों के पीछे ही रहना होगा या कानूनी दांव-पेच उसे कोई राहत दिला पाएंगे। फिलहाल, पीड़िता का दृढ़ संकल्प और सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख महिला सुरक्षा के प्रति एक बड़ी उम्मीद जगाता है।