• December 25, 2025

इसरो का ऐतिहासिक धमाका: ‘बाहुबली’ रॉकेट ने अंतरिक्ष में रचा इतिहास, भारत बना भारी सैटेलाइट लॉन्चिंग का ग्लोबल हब

श्रीहरिकोटा: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने साल 2025 के अपने अंतिम मिशन के साथ एक ऐसी उपलब्धि हासिल की है, जिसने वैश्विक अंतरिक्ष बाजार में भारत का कद कई गुना बढ़ा दिया है। आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से इसरो ने अब तक का सबसे भारी और विशालकाय वाणिज्यिक संचार उपग्रह ‘ब्लूबर्ड ब्लॉक-2’ सफलतापूर्वक उसकी निर्धारित कक्षा में स्थापित कर दिया है। यह मिशन न केवल तकनीकी दृष्टि से एक मील का पत्थर है, बल्कि यह भारत की वाणिज्यिक अंतरिक्ष क्षमताओं की बढ़ती शक्ति का भी परिचायक है।

बाहुबली एलवीएम-3 का पराक्रम और सफल प्रक्षेपण

बुधवार की सुबह 8:55 बजे जब सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लॉन्च पैड से इसरो के सबसे शक्तिशाली रॉकेट LVM3 (लॉन्च व्हीकल मार्क-3) ने उड़ान भरी, तो पूरा आसमान इसके गर्जन से गूंज उठा। अपनी शक्ति और भरोसेमंद ट्रैक रिकॉर्ड के कारण ‘बाहुबली’ के नाम से मशहूर इस रॉकेट ने मात्र 16 मिनट की उड़ान में 6,100 किलोग्राम वजनी विशाल उपग्रह को पृथ्वी की निचली कक्षा (LEO) में, जो सतह से लगभग 520 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित है, पूरी सटीकता के साथ स्थापित कर दिया।

यह एलवीएम-3 की छठी सफल उड़ान थी और पूरी तरह से वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए समर्पित इसकी तीसरी उड़ान रही। इस मिशन की सफलता ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि भारी वजन वाले उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के मामले में भारत अब दुनिया के चुनिंदा देशों की कतार में सबसे आगे खड़ा है। मिशन की सफलता की घोषणा होते ही मिशन कंट्रोल सेंटर तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा, जो साल के अंत में मिली इस बड़ी जीत का जश्न मना रहे थे।

न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड और एएसटी स्पेसमोबाइल की साझेदारी

यह ऐतिहासिक मिशन इसरो की वाणिज्यिक शाखा ‘न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड’ (NSIL) और अमेरिकी कंपनी ‘एएसटी स्पेसमोबाइल’ (AST and Science, LLC) के बीच हुए एक महत्वपूर्ण समझौते का परिणाम है। ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 उपग्रह का वजन और उसकी जटिलता इसे एक चुनौतीपूर्ण मिशन बनाती थी। 6,100 किलोग्राम का यह उपग्रह भारत की धरती से लॉन्च होने वाला अब तक का सबसे भारी विदेशी संचार उपग्रह है।

इस लॉन्चिंग के साथ ही इसरो ने यह स्पष्ट संदेश दे दिया है कि वह केवल विज्ञान और अनुसंधान तक सीमित नहीं है, बल्कि वह वैश्विक सैटेलाइट लॉन्च मार्केट में एक प्रतिस्पर्धी और किफायती खिलाड़ी बनकर उभरा है। इस मिशन से मिलने वाला राजस्व और वैश्विक साख आने वाले समय में भारत के अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था (Space Economy) को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगी।

प्रधानमंत्री मोदी का विजन और आत्मनिर्भर भारत की गूँज

इस ऐतिहासिक सफलता पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए इसे भारत के युवाओं और वैज्ञानिकों की जीत बताया। प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया के माध्यम से देश को बधाई देते हुए कहा कि भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम अब पहले से कहीं अधिक आधुनिक और प्रभावी हो गया है। उन्होंने विशेष रूप से एलवीएम-3 की क्षमताओं की सराहना की और कहा कि यह रॉकेट न केवल वाणिज्यिक सेवाओं का विस्तार कर रहा है, बल्कि ‘गगनयान’ जैसे हमारे भविष्य के महत्वाकांक्षी मिशनों के लिए एक मजबूत नींव भी तैयार कर रहा है।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि बढ़ती आत्मनिर्भरता और वैश्विक साझेदारी का यह संगम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर और सशक्त भविष्य सुनिश्चित करेगा। उनके अनुसार, यह सफलता दर्शाती है कि भारत अब अंतरिक्ष क्षेत्र में एक ‘सर्विस प्रोवाइडर’ के रूप में दुनिया का भरोसा जीतने में सफल रहा है।

ब्लूबर्ड ब्लॉक-2: मोबाइल संचार की दुनिया में नई क्रांति

इस मिशन की सबसे खास बात वह उपग्रह है जिसे अंतरिक्ष में भेजा गया है। ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 कोई साधारण संचार उपग्रह नहीं है; यह अगली पीढ़ी की सेल्युलर ब्रॉडबैंड प्रणाली का एक प्रमुख हिस्सा है। इस उपग्रह की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह सीधे तौर पर आम 4जी और 5जी स्मार्टफोन्स को अंतरिक्ष से कनेक्टिविटी प्रदान करने की क्षमता रखता है।

आमतौर पर हमारे मोबाइल फोन को नेटवर्क सिग्नल प्राप्त करने के लिए जमीन पर लगे मोबाइल टावरों की आवश्यकता होती है। लेकिन ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 के सक्रिय होने के बाद, अंतरिक्ष में मौजूद यह उपग्रह ही एक ‘फ्लोटिंग टावर’ की तरह काम करेगा। इसके लिए उपभोक्ताओं को किसी विशेष एंटीना, डोंगल या कस्टमाइज्ड हार्डवेयर की जरूरत नहीं होगी। यह तकनीक मोबाइल संचार के इतिहास में एक गेम-चेंजर साबित होने वाली है, क्योंकि यह जमीन पर मौजूद बुनियादी ढांचे की निर्भरता को लगभग खत्म कर देगी।

पहाड़, समंदर और आपदाओं में संजीवनी बनेगा यह उपग्रह

इस उपग्रह के सफल होने से सबसे बड़ा फायदा उन क्षेत्रों को होगा जहां आज भी मोबाइल नेटवर्क पहुंचाना एक सपना बना हुआ है। दुर्गम पहाड़ी इलाकों, घने जंगलों, दूरदराज के रेगिस्तानों और विशाल महासागरों के बीच यात्रा कर रहे लोगों को अब नेटवर्क की समस्या से नहीं जूझना पड़ेगा। इसके माध्यम से डिजिटल डिवाइड को कम करने में बड़ी मदद मिलेगी।

इसके अलावा, प्राकृतिक आपदाओं के दौरान यह तकनीक किसी संजीवनी से कम नहीं होगी। अक्सर चक्रवात, भूकंप, बाढ़ या भूस्खलन जैसी स्थितियों में जमीन पर मौजूद मोबाइल टावर और फाइबर लाइनें नष्ट हो जाती हैं, जिससे राहत और बचाव कार्यों में भारी बाधा आती है। ऐसी स्थिति में सैटेलाइट-टू-फोन कनेक्टिविटी सीधे काम करेगी, क्योंकि इसका बुनियादी ढांचा जमीन पर नहीं बल्कि अंतरिक्ष में सुरक्षित होगा। यह आपदा प्रबंधन की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है जो हजारों जान बचाने में मददगार साबित हो सकता है।

वाणिज्यिक क्षेत्र में इसरो की बढ़ती साख

इसरो के लिए यह मिशन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उसकी भारी पेलोड ले जाने की क्षमता को प्रमाणित करता है। इससे पहले इसरो ने एलवीएम-3 के जरिए ही ‘वन वेब’ (OneWeb) के 72 उपग्रहों को दो अलग-अलग मिशनों में सफलतापूर्वक लॉन्च किया था। चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 की सफलता के बाद अब ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 की कामयाबी ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि वैश्विक कंपनियां अब भारी उपग्रहों के लिए इसरो को अपनी पहली पसंद के रूप में देख रही हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि अंतरिक्ष के वाणिज्यिक बाजार में जिस तरह से मांग बढ़ रही है, इसरो का एलवीएम-3 रॉकेट भारत के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी साबित हो सकता है। यह न केवल विदेशी मुद्रा अर्जित करने का जरिया है, बल्कि इससे भारत की कूटनीतिक शक्ति में भी इजाफा होता है।

भविष्य की ओर बढ़ते कदम

इस साल के आखिरी मिशन की यह शानदार सफलता इसरो के वैज्ञानिकों के मनोबल को सातवें आसमान पर ले गई है। अब इसरो की नजरें अगले साल होने वाले ‘गगनयान’ के मानवरहित परीक्षणों और अन्य महत्वपूर्ण वैज्ञानिक मिशनों पर हैं। ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 की सफलता ने यह साफ कर दिया है कि भारत अब केवल उपग्रह छोड़ने वाला देश नहीं रहा, बल्कि वह भविष्य की उन तकनीकों का सूत्रधार बन रहा है जो पूरी मानवता के जीवन को सुगम बनाने वाली हैं।

श्रीहरिकोटा की धरती से शुरू हुआ यह सफर अब सीधे दुनिया भर के मोबाइल यूजर्स की जेब तक पहुंचने वाला है। इसरो की इस ‘ऊंची उड़ान’ ने देश को गौरव के उस शिखर पर बैठा दिया है, जहां से भारत एक नई वैश्विक अंतरिक्ष शक्ति के रूप में चमक रहा है। यह सफलता केवल एक उपग्रह का प्रक्षेपण नहीं है, बल्कि यह एक नए और आधुनिक भारत की आत्मनिर्भरता का शंखनाद है।

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