पंजाब में ठंडी पड़ी ‘उज्ज्वला’: 1.21 लाख परिवारों ने एक बार भी नहीं भरवाया सिलिंडर, आखिर क्यों योजना से दूर हो रहे हैं लाभार्थी?
चंडीगढ़: केंद्र सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक ‘प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना’ (PMUY), जिसका उद्देश्य गरीब महिलाओं को धुएं से मुक्ति दिलाकर स्वच्छ ईंधन प्रदान करना था, पंजाब में उम्मीद के मुताबिक परिणाम नहीं दे पा रही है। हाल ही में सामने आई एक रिपोर्ट ने नीति निर्माताओं और प्रशासन की चिंता बढ़ा दी है। आंकड़ों से खुलासा हुआ है कि पंजाब में लाखों लाभार्थी कनेक्शन लेने के बाद भी गैस सिलिंडर का उपयोग नहीं कर रहे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि वित्तीय वर्ष 2024-25 में राज्य के 1.21 लाख परिवारों ने एक बार भी अपने सिलिंडर की रिफिलिंग नहीं कराई है।
लोकसभा में खुलासों से मंचा हड़कंप: रिफिलिंग के गिरते आंकड़े
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की जमीनी हकीकत तब सामने आई जब केंद्र सरकार ने लोकसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में विस्तृत आंकड़े पेश किए। इन आंकड़ों के अनुसार, पंजाब में न केवल सिलिंडर न भरवाने वालों की संख्या अधिक है, बल्कि उन लोगों की संख्या भी बहुत बड़ी है जिन्होंने पूरे साल में केवल एक ही बार सिलिंडर भरवाया है।
वित्तीय वर्ष 2024-25 के आंकड़ों पर गौर करें तो 1.21 लाख लोगों ने शून्य रिफिलिंग कराई, जबकि 99 हजार लाभार्थी ऐसे रहे जिन्होंने साल भर में महज एक बार सिलिंडर लिया। यह स्थिति केवल इसी वर्ष की नहीं है, बल्कि पिछले तीन वर्षों के रुझान भी इसी दिशा में इशारा कर रहे हैं। वर्ष 2023-24 में 93,622 लाभार्थियों ने एक बार भी सिलिंडर नहीं लिया, वहीं 1.04 लाख लोग सिर्फ एक बार रिफिलिंग करा पाए। उससे पिछले वर्ष यानी 2022-23 में भी 90,233 लोगों ने योजना से दूरी बनाए रखी। यह गिरता ग्राफ योजना की सफलता पर बड़े सवाल खड़े कर रहा है।
सब्सिडी के बावजूद ‘महंगाई’ बनी सबसे बड़ी दीवार
सरकार ने उज्ज्वला लाभार्थियों के लिए एलपीजी को किफायती बनाने के लिए समय-समय पर सब्सिडी में बढ़ोतरी की है। मई 2022 में 200 रुपये की सब्सिडी शुरू की गई थी, जिसे अक्टूबर 2023 में बढ़ाकर 300 रुपये प्रति सिलिंडर कर दिया गया। वित्त वर्ष 2025-26 के लिए भी इसी दर से सब्सिडी का प्रावधान किया गया है।
इतनी बड़ी वित्तीय सहायता के बावजूद, लाभार्थियों के लिए सिलिंडर भरवाना एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। विशेषज्ञों का मानना है कि सब्सिडी के बाद भी सिलिंडर की जो प्रभावी कीमत चुकानी पड़ती है, वह पंजाब के अति-गरीब परिवारों की क्रय शक्ति से बाहर है। दैनिक मजदूरी करने वाले परिवारों के लिए एकमुश्त 600 से 800 रुपये (सबिडी काटकर) खर्च करना मुश्किल होता है, जिसके कारण वे वापस लकड़ी और उपलों (गोबर के कंडे) जैसे पारंपरिक ईंधनों की ओर लौट रहे हैं।
लाभार्थियों की संख्या बढ़ी, लेकिन उपयोग में गिरावट
पंजाब में उज्ज्वला योजना के तहत पंजीकृत परिवारों के आंकड़ों का विश्लेषण करें तो एक विरोधाभासी तस्वीर सामने आती है। राज्य में कनेक्शन लेने वालों की संख्या तो बढ़ी है, लेकिन वास्तविक उपयोग में भारी कमी आई है।
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1 अप्रैल 2024 तक पंजाब में कुल लाभार्थियों की संख्या 13,59,256 थी।
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वर्ष 2023-24 में यह संख्या 13,59,705 के आसपास थी।
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वर्ष 2022-23 में कुल 12,83,976 लोगों ने इस योजना के तहत कनेक्शन लिया था।
पिछले छह वर्षों के रिकॉर्ड बताते हैं कि केवल एक वर्ष को छोड़कर हर साल नए कनेक्शन बांटे गए। सरकार ने अपनी पहुंच तो बढ़ा ली, लेकिन वे परिवार एलपीजी के ‘नियमित उपभोक्ता’ नहीं बन सके। यह दर्शाता है कि योजना ‘एक्सेस’ (पहुंच) के स्तर पर सफल रही है, लेकिन ‘सस्टेनेबिलिटी’ (निरंतरता) के मोर्चे पर विफल साबित हो रही है।
थर्ड पार्टी मूल्यांकन और चिंता के विषय
‘रिसर्च एंड डेवलपमेंट इनिशिएटिव’ (RDI) द्वारा योजना का थर्ड पार्टी मूल्यांकन किया गया था। इस रिपोर्ट में स्वीकार किया गया कि उज्ज्वला योजना ने ग्रामीण क्षेत्रों, विशेषकर दूर-दराज के इलाकों की महिलाओं के स्वास्थ्य और जीवन स्तर पर सकारात्मक प्रभाव डाला है। धुएं से होने वाली बीमारियों में कमी आई है और महिलाओं का समय बचा है।
हालांकि, इसी रिपोर्ट ने उन चुनौतियों को भी रेखांकित किया है जो अब सरकारी आंकड़ों में भी दिख रही हैं। जब बड़ी संख्या में लाभार्थी सक्रिय रूप से गैस का उपयोग नहीं करते, तो योजना का मूल उद्देश्य—यानी पर्यावरण और स्वास्थ्य की सुरक्षा—अधूरा रह जाता है। सरकार के लिए चिंता का विषय यह है कि मुफ्त कनेक्शन और सब्सिडी के बावजूद गरीब परिवारों को स्वच्छ ईंधन की मुख्यधारा में कैसे बनाए रखा जाए।
योजना की सुस्ती के पीछे के मुख्य कारण
विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पंजाब में इस योजना के ‘ठंडा’ पड़ने के पीछे कई प्रमुख कारणों की पहचान की है:
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आर्थिक दबाव: एलपीजी सिलिंडर भरवाने के लिए एक बड़ी राशि का अग्रिम भुगतान करना पड़ता है। गरीब परिवारों के लिए महीने के अंत में इतनी नकदी जुटाना कठिन होता है।
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जागरूकता का अभाव: रिफिलिंग की प्रक्रिया, सब्सिडी के सीधे बैंक खाते में आने (DBT) के समय और तकनीकी औपचारिकताओं के बारे में लाभार्थियों के पास पर्याप्त जानकारी नहीं है।
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पारंपरिक ईंधन की उपलब्धता: ग्रामीण पंजाब में लकड़ी और पराली/उपले आसानी से और बिना किसी नकद खर्च के उपलब्ध हो जाते हैं। जब गैस महंगी लगती है, तो लोग विकल्प के तौर पर पारंपरिक साधनों का चुनाव कर लेते हैं।
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वितरण नेटवर्क की समस्या: दूर-दराज के सीमावर्ती गांवों में सिलिंडर की होम डिलीवरी में देरी और अतिरिक्त डिलीवरी शुल्क भी लोगों को इस योजना से हतोत्साहित कर रहा है।
आगे की राह: क्या करने की है जरूरत?
पंजाब में उज्ज्वला योजना को पुनर्जीवित करने के लिए केवल सब्सिडी बढ़ाना पर्याप्त नहीं लग रहा है। प्रशासन को जमीनी स्तर पर जागरूकता अभियान चलाने होंगे। विशेषज्ञों का सुझाव है कि छोटे सिलिंडर (5 किलोग्राम) के विकल्प को और अधिक बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि लोग अपनी तात्कालिक आर्थिक क्षमता के अनुसार कम कीमत में गैस भरवा सकें।
इसके अलावा, राज्य और केंद्र सरकार को मिलकर रिफिलिंग की आसान पहुंच सुनिश्चित करनी होगी। जब तक ‘रिफिल’ दर में सुधार नहीं होता, तब तक स्वच्छ रसोई के सपने को हकीकत में बदलना चुनौतीपूर्ण बना रहेगा। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि उज्ज्वला कनेक्शन केवल एक ‘शोपीस’ बनकर न रह जाए, बल्कि हर घर की रसोई में निरंतर आंच जलती रहे।