बांग्लादेश में प्रेस की स्वतंत्रता पर भीषण प्रहार: शशि थरूर ने मीडिया संस्थानों पर हुए हमलों और हिंसा पर जताई गहरी चिंता
नई दिल्ली: दक्षिण एशिया के पड़ोसी देश बांग्लादेश में मौजूदा राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता के बीच वहां के प्रमुख मीडिया घरानों पर हुए हमलों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता की लहर पैदा कर दी है। भारतीय संसद के सदस्य और वरिष्ठ कांग्रेस नेता डॉ. शशि थरूर ने बांग्लादेश की ताजा स्थिति पर अपनी गंभीर प्रतिक्रिया व्यक्त की है। थरूर ने बांग्लादेश में स्वतंत्र पत्रकारिता के स्तंभ माने जाने वाले अखबारों के दफ्तरों में हुई आगजनी और तोड़फोड़ की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए इसे लोकतंत्र की हत्या करार दिया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह केवल कुछ इमारतों या दफ्तरों पर हमला नहीं है, बल्कि एक स्वतंत्र और बहुलतावादी समाज की लोकतांत्रिक बुनियाद पर सीधा प्रहार है।
मीडिया की आजादी पर सीधा हमला और पत्रकारों की सुरक्षा का संकट
शशि थरूर ने सोशल मीडिया और अन्य मंचों के माध्यम से बांग्लादेश से आ रही हिंसा की खबरों पर दुख व्यक्त किया। उन्होंने विशेष रूप से बांग्लादेश के दो सबसे प्रतिष्ठित अखबारों, ‘प्रोथोम आलो’ और ‘डेली स्टार’ के दफ्तरों पर भीड़ द्वारा की गई हिंसा और आगजनी का उल्लेख किया। थरूर ने कहा कि जब किसी देश में पत्रकारों को अपनी जान बचाने के लिए संकट के संदेश (SOS) भेजने पड़ें और उनके कार्यस्थल उनकी आंखों के सामने जल रहे हों, तो यह उस राष्ट्र के लोकतांत्रिक भविष्य के लिए एक बहुत ही खतरनाक संकेत है।
उन्होंने ‘डेली स्टार’ के संपादक महफूज अनाम और उनके सहयोगी साहसी पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर अपनी व्यक्तिगत और सार्वजनिक चिंता जाहिर की। थरूर के अनुसार, पत्रकारिता समाज का वह दर्पण है जो सत्ता को सच दिखाने का साहस रखता है, और जब इस दर्पण को तोड़ने की कोशिश की जाती है, तो अराजकता का जन्म होता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पत्रकारों पर हमले करके उनकी आवाज को दबाने की कोशिश करना भीड़तंत्र की उस मानसिकता को दर्शाता है जो किसी भी सभ्य समाज के लिए स्वीकार्य नहीं हो सकती।
वीजा सेवाओं का निलंबन और मानवीय संकट की स्थिति
बांग्लादेश में बढ़ते सुरक्षा खतरों के बीच भारत द्वारा उठाए गए कड़े कदमों पर भी शशि थरूर ने अपनी बात रखी। उन्होंने बताया कि खुलना और राजशाही स्थित भारतीय सहायक उच्चायोगों में वीजा सेवाओं का निलंबन एक बड़ा झटका है। थरूर ने इसे एक अत्यंत चिंताजनक विकास बताया क्योंकि इसका सीधा प्रभाव उन हजारों छात्रों, मरीजों और परिवारों पर पड़ा है जो नियमित रूप से भारत और बांग्लादेश के बीच यात्रा करते हैं।
भारत-बांग्लादेश के बीच लोगों के आपसी संपर्क (People-to-People Contact) पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि जब वीजा सेवाएं बाधित होती हैं, तो इसका सबसे अधिक दर्द उन लोगों को होता है जिन्हें तत्काल चिकित्सा सहायता की आवश्यकता है या जो अपनी शिक्षा के लिए सीमा पार जाना चाहते हैं। यह निलंबन न केवल राजनयिक संबंधों की जटिलता को दर्शाता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि वहां सुरक्षा की स्थिति कितनी भयावह हो चुकी है कि दूतावासों का काम करना भी अब सुरक्षित नहीं रहा।
अंतरिम सरकार के लिए तीन सूत्रीय महत्वपूर्ण मांगें
शशि थरूर ने एक स्थिर और समृद्ध पड़ोस की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के समक्ष तीन प्रमुख मांगे रखी हैं। उनका मानना है कि इन कदमों को उठाए बिना देश में शांति की बहाली संभव नहीं है। उनकी पहली मांग पत्रकारों और मीडिया संस्थानों की सुरक्षा को लेकर है। उन्होंने कहा कि अंतरिम सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भीड़तंत्र को कानून अपने हाथ में लेने की अनुमति न दी जाए और मीडिया कर्मियों के जान-माल की सुरक्षा की गारंटी दी जाए।
उनकी दूसरी मांग राजनयिक मिशनों की सुरक्षा से संबंधित है। उन्होंने जोर देकर कहा कि विदेशी दूतावास और वाणिज्य दफ्तरों को पूरी सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए ताकि अंतरराष्ट्रीय संचार और जनसंपर्क बना रहे। तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण मांग शांति की बहाली के लिए संवाद की प्राथमिकता है। थरूर ने सुझाव दिया कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख और नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को खुद आगे आकर नेतृत्व करना चाहिए और समाज के विभिन्न वर्गों के साथ बातचीत शुरू करनी चाहिए ताकि हिंसा के इस दौर को समाप्त किया जा सके।
आगामी चुनाव और लोकतंत्र के लिए उपजती चुनौतियां
बांग्लादेश के राजनीतिक भविष्य पर चर्चा करते हुए शशि थरूर ने याद दिलाया कि देश में 12 फरवरी 2026 को राष्ट्रीय चुनाव प्रस्तावित हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि चुनाव से पहले हिंसा, डर और असहिष्णुता का यह माहौल बना रहता है, तो एक निष्पक्ष और पारदर्शी लोकतांत्रिक प्रक्रिया का आयोजन करना असंभव होगा। लोकतंत्र केवल मतदान का नाम नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी व्यवस्था है जहां विपक्ष, मीडिया और नागरिक बिना किसी डर के अपनी बात रख सकें।
थरूर ने चेताया कि अगर मौजूदा अंतरिम सरकार स्थिति को संभालने में विफल रहती है, तो आगामी चुनावों की निष्पक्षता पर न केवल देश के भीतर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सवाल उठ सकते हैं। उन्होंने कहा कि एक खंडित और भयभीत समाज कभी भी एक मजबूत जनादेश नहीं दे सकता। इसलिए, चुनाव से पहले शांतिपूर्ण वातावरण तैयार करना बांग्लादेश की वर्तमान प्राथमिकता होनी चाहिए।
क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक संदेश
शशि थरूर के अनुसार, बांग्लादेश की स्थिरता केवल उसके अपने लिए ही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत और बांग्लादेश के बीच साझा इतिहास, संस्कृति और आर्थिक संबंध हैं। ऐसे में बांग्लादेश में किसी भी प्रकार की अस्थिरता का प्रभाव पूरे क्षेत्र की सुरक्षा और विकास पर पड़ता है। उन्होंने उम्मीद जताई कि बांग्लादेश के लोग इस कठिन समय से उबरने का मार्ग खोज लेंगे और जल्द ही देश में शांति की वापसी होगी।
उन्होंने अपने संबोधन के अंत में कहा कि जनता की असली शक्ति उनकी आवाज में होती है, जिसे हिंसा या डराने-धमकाने के माध्यम से दबाया नहीं जाना चाहिए। जनता की आवाज का सम्मान केवल मतपत्र (Ballot Box) के जरिए ही होना चाहिए, न कि सड़कों पर होने वाली हिंसा के जरिए। थरूर का यह बयान न केवल एक पड़ोसी देश की चिंता को दर्शाता है, बल्कि यह प्रेस की स्वतंत्रता के लिए एक वैश्विक समर्थन का संदेश भी है।