• December 25, 2025

मनरेगा की रक्षा के लिए मनोज झा की भावुक अपील: सांसदों को लिखा खुला पत्र, कहा- ‘गांधी के जंतर को न भूलें’

नई दिल्ली | 18 दिसंबर, 2025

संसद में ‘विकसित भारत जी-राम-जी विधेयक 2025’ को लेकर मचे घमासान के बीच राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के कद्दावर नेता और राज्यसभा सांसद मनोज झा ने एक नई बहस छेड़ दी है। गुरुवार को उन्होंने संसद के सभी सदस्यों के नाम एक ‘खुला पत्र’ (Open Letter) जारी किया। इस पत्र में उन्होंने इस नए विधेयक को मनरेगा (MGNREGA) के अस्तित्व के लिए खतरा बताते हुए सभी सांसदों से अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनने और इसका विरोध करने की अपील की है।

मनोज झा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर साझा किए गए इस पत्र में महात्मा गांधी के प्रसिद्ध ‘जंतर’ का हवाला देते हुए केंद्र सरकार के इस कदम को गरीबों के साथ विश्वासघात करार दिया है।

1. गांधी का जंतर और नीतिगत फैसले

मनोज झा ने अपने पत्र की शुरुआत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के उस सिद्धांत से की, जिसे उन्होंने ‘जंतर’ कहा था। झा ने लिखा कि गांधी जी हमेशा कहते थे कि जब भी आप कोई बड़ा निर्णय लें या किसी संदेह में हों, तो उस सबसे गरीब और लाचार व्यक्ति का चेहरा याद करें जिसे आपने कभी देखा हो।

  • सवाल का आधार: झा ने सांसदों से पूछा, “क्या जो फैसला (VB-G-RAM-JI बिल) हम लेने जा रहे हैं, वह उस गरीब व्यक्ति के काम आएगा? क्या यह उसे अपने जीवन पर नियंत्रण वापस दिलाएगा?”

  • नैतिक जिम्मेदारी: उन्होंने तर्क दिया कि मनरेगा केवल एक सरकारी स्कीम नहीं है, बल्कि यह भारत गणराज्य द्वारा अपने सबसे वंचित नागरिकों से किया गया एक नैतिक और संवैधानिक वादा है।

2. मनरेगा: आजीविका की गारंटी बनाम नई योजना

मनोज झा ने अपने पत्र में मनरेगा के इतिहास और इसकी कानूनी शक्ति का विस्तार से उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि 2005 में जब मनरेगा कानून बना था, तब सभी राजनीतिक दलों ने एकजुट होकर ‘काम के अधिकार’ को एक साझा संवैधानिक जिम्मेदारी माना था।

  • अनुच्छेद 41 का हवाला: उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 41 का जिक्र करते हुए कहा कि राज्य का कर्तव्य है कि वह बेरोजगारी की स्थिति में नागरिकों को काम और सरकारी सहायता सुनिश्चित करे।

  • गारंटी का खात्मा: झा का आरोप है कि प्रस्तावित ‘विकसित भारत जी-राम-जी विधेयक’ मनरेगा द्वारा दी गई ‘कानूनी गारंटी’ को खत्म कर देता है और इसे सरकार की मर्जी पर निर्भर एक योजना में बदल देता है।

3. 125 दिनों के काम का दावा: ‘भ्रामक और छलावा’

सरकार का दावा है कि नया विधेयक 100 दिनों के बजाय 125 दिनों का रोजगार प्रदान करेगा। इस पर मनोज झा ने कड़ा ऐतराज जताते हुए इसे ‘भ्रामक’ करार दिया है।

“सरकार यह कहकर जनता को गुमराह कर रही है कि वह अधिक दिन का काम दे रही है। सच तो यह है कि जब आप कानूनी गारंटी ही छीन लेंगे, तो 125 दिन का वादा केवल कागजों पर रह जाएगा। बिना कानूनी बाध्यता के, गरीब व्यक्ति काम मांग ही नहीं पाएगा।”

4. ‘लोकतंत्र की पाठशाला है संसद, इसे ढहने न दें’

मनोज झा ने लोकसभा में देर रात तक हुई चर्चा और उसके बाद हुए हंगामे पर भी दुख व्यक्त किया। उन्होंने राज्यसभा के अपने साथियों से आग्रह किया कि जब यह विधेयक ऊपरी सदन में आए, तो दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इसका विरोध करें।

उन्होंने पत्र में लिखा कि मनरेगा ने करोड़ों लोगों को सम्मान के साथ जीने का हक दिया है। यदि इसे कमजोर किया गया, तो सामाजिक न्याय की नींव हिल जाएगी। उन्होंने इसे ‘सामाजिक न्याय की गारंटी’ का गला घोंटने वाला कदम बताया।

क्या राज्यसभा में रुकेगा विधेयक?

मनोज झा का यह पत्र ऐसे समय में आया है जब विपक्ष एकजुट होकर मनरेगा के नाम बदलने और उसके स्वरूप को बदलने का विरोध कर रहा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि झा ने गांधी के जंतर का जिक्र कर इस लड़ाई को केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि ‘नैतिक’ रंग दे दिया है।

अब सबकी नजरें राज्यसभा पर टिकी हैं, जहाँ विपक्ष इस पत्र के माध्यम से एक साझा मोर्चा बनाने की कोशिश करेगा।

Digiqole Ad

Related Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *