आपातकाल के 50 साल: जब ‘खतरनाक आदमी’ कहकर जेल भेजे गए पूर्व मंत्री गिरीश नारायण पांडेय, चाय के लिए करना पड़ा था अनशन
देश में लागू आपातकाल को 50 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन उस दौर की पीड़ा आज भी कई लोगों की स्मृतियों में जिंदा है। नागरिक अधिकारों के हनन, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबंदी और पुलिसिया जुल्म की कहानियों ने उस दौर को भारतीय लोकतंत्र के सबसे काले अध्यायों में दर्ज कर दिया। ऐसे ही एक साहसी व्यक्तित्व थे रायबरेली के लालगंज निवासी पूर्व मंत्री गिरीश नारायण पांडेय, जिन्होंने न सिर्फ तानाशाही के खिलाफ आवाज उठाई, बल्कि तमाम प्रलोभनों और दबावों के बावजूद झुके नहीं।
इमरजेंसी में हुए गिरफ्तार, ‘खतरनाक आदमी’ करार दिए गए
साल 1975 में जब देश में आपातकाल लागू हुआ, गिरीश नारायण पांडेय उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) में तहसील कार्यवाह की भूमिका निभा रहे थे। उनके बेटे अनूप पांडेय के अनुसार, 3 जुलाई 1975 की रात पुलिस दरोगा उनके घर पहुंचा और कहा कि एसडीएम साहब बुला रहे हैं। पांडेय जी ने पहले सुबह आने की बात कही, लेकिन जबरन उन्हें साथ चलने को कहा गया। जैसे ही वह बाहर निकले, घर के बाहर भारी पुलिस बल तैनात था।
पांडेय जी पुलिस की गाड़ी में बैठने के बजाय पैदल थाने तक गए। वहां मौजूद एसडीएम ने उन्हें देखकर राहत की सांस ली और कहा, “आप मिल गए, बहुत राहत मिली। डीएम और एसपी ने आपको ‘खतरनाक आदमी’ बताया है।” उसी दिन उन्हें रायबरेली ले जाया गया और शाम होते-होते जेल भेज दिया गया।
जेल में नहीं मिली चाय, किया 24 घंटे का अनशन
अनूप पांडेय बताते हैं कि जेल में उनके पिता को चाय तक नहीं दी गई। उन्होंने इसके खिलाफ 24 घंटे का अनशन किया, जिसके बाद अन्य बंदियों को भी चाय और नाश्ता मिलने लगा। परिजनों को पांच दिन तक यह भी नहीं बताया गया कि वह कहां हैं। उनके खिलाफ झूठी FIR दर्ज की गई थी, जिसमें लिखा गया था कि वह अपने घर के बाहर हथियारों के साथ शासन के खिलाफ लोगों को भड़का रहे थे।
इंदिरा गांधी के खिलाफ कोर्ट में बने थे गवाह
गिरीश नारायण पांडेय का नाम उस समय सुर्खियों में आया जब उन्होंने इंदिरा गांधी के खिलाफ रायबरेली चुनाव में गवाही दी। 1971 में रायबरेली से इंदिरा गांधी ने चुनाव लड़ा और भारी बहुमत से जीतीं, लेकिन उनके खिलाफ समाजवादी नेता राजनारायण ने चुनाव को हाईकोर्ट में चुनौती दी। इस केस में पांडेय प्रमुख गवाह बने। उनकी गवाही ने इंदिरा गांधी की सदस्यता रद्द करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आपातकाल के बाद दो बार बने विधायक, रहे मंत्री
आपातकाल समाप्त होने के बाद हुए चुनाव में रायबरेली की जनता ने इंदिरा गांधी को नकार दिया। इसके बाद गिरीश नारायण पांडेय राजनीति में सक्रिय हुए और बाबरी विध्वंस के बाद सरेनी विधानसभा सीट से दो बार विधायक चुने गए। वे कल्याण सिंह सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बने। जीवनभर जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा से जुड़े रहे।
एक दिन के अंतर पर हुआ पति-पत्नी का निधन
गिरीश नारायण पांडेय का इसी वर्ष 28 मार्च को निधन हो गया। इससे ठीक एक दिन पहले उनकी पत्नी का भी स्वर्गवास हो गया था। उनका जीवन आपातकाल जैसी कठिन परिस्थितियों से लड़ते हुए लोकतंत्र और विचारधारा के लिए समर्पित रहा।
