खेती-किसानी: लहुरी काशी की रेत बना रही अन्नदाताओं को मालामाल, हौसले को सलाम
लखनऊ, 20 अप्रैल 2025: उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में लहुरी काशी की रेत, जो कभी बंजर और अनुपजाऊ मानी जाती थी, आज किसानों के लिए सोने की खान बन गई है। इस क्षेत्र के अन्नदाता अपनी मेहनत, नवाचार और हौसले के दम पर रेतीली जमीन को उपजाऊ बनाकर न केवल अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर रहे हैं, बल्कि देश के कृषि परिदृश्य में एक नया अध्याय भी लिख रहे हैं। इस क्रांति की वजह जानकर आप इन किसानों के जज्बे को सलाम करेंगे।
लहुरी काशी की रेत: चुनौती से अवसर तक
लहुरी, वाराणसी के पास गंगा नदी के किनारे बसा एक छोटा सा क्षेत्र है, जहां की मिट्टी में रेत की मात्रा अधिक होने के कारण खेती को असंभव माना जाता था। अधिकांश किसानों के लिए यह जमीन बेकार थी, क्योंकि पारंपरिक फसलें जैसे गेहूं, धान और दलहन यहां अच्छी पैदावार नहीं दे पाती थीं। लेकिन कुछ प्रगतिशील किसानों ने इस चुनौती को अवसर में बदल दिया। उन्होंने रेतीली मिट्टी की प्रकृति को समझा और ऐसी फसलों और तकनीकों को अपनाया, जो इस मिट्टी में फल-फूल सकती हैं।
ककड़ी और तरबूज की खेती: रेत का जादू
लहुरी के किसानों ने रेतीली मिट्टी में ककड़ी, खीरा, तरबूज, खरबूजा और लौकी जैसी फसलों की खेती शुरू की, जो कम पानी और हल्की मिट्टी में अच्छी तरह उगती हैं। खास तौर पर ककड़ी और तरबूज की खेती ने इस क्षेत्र को नई पहचान दी है। गंगा के किनारे की रेतीली जमीन इन फसलों के लिए आदर्श साबित हुई, क्योंकि यह मिट्टी पानी को जल्दी सोख लेती है और जड़ों को पर्याप्त हवा प्रदान करती है।
स्थानीय किसान रामप्रसाद यादव, जिन्होंने इस क्रांति की शुरुआत की, बताते हैं, “पहले हम इस जमीन को कोसते थे, लेकिन जब हमने ककड़ी और तरबूज की खेती शुरू की, तो हमें एहसास हुआ कि यह रेत हमारी ताकत है। आज हमारी उपज वाराणसी ही नहीं, बल्कि लखनऊ, दिल्ली और कोलकाता तक जा रही है।” रामप्रसाद जैसे कई किसान अब प्रति एकड़ 50,000 से 1 लाख रुपये तक कमा रहे हैं, जो पहले के मुकाबले कई गुना अधिक है।
जैविक खेती और आधुनिक तकनीकों का समावेश
लहुरी के किसानों ने न केवल फसल चयन में समझदारी दिखाई, बल्कि जैविक खेती और आधुनिक तकनीकों को भी अपनाया। वे गोबर की खाद, वर्मी कंपोस्ट और नीम आधारित कीटनाशकों का उपयोग कर रहे हैं, जिससे उनकी फसलें न केवल स्वस्थ हैं, बल्कि बाजार में उनकी मांग भी बढ़ रही है। इसके अलावा, ड्रिप इरिगेशन और मल्चिंग जैसी तकनीकों ने पानी की बचत और उत्पादन बढ़ाने में मदद की है।
कृषि विज्ञान केंद्र, वाराणसी के वैज्ञानिक डॉ. अजय सिंह ने बताया, “लहुरी की रेतीली मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की कमी होती है, लेकिन किसानों ने इसे अपनी ताकत बनाया। हमने उन्हें जैविक खाद और कम पानी वाली फसलों के बारे में प्रशिक्षित किया, जिसका नतीजा आज सबके सामने है।”

बाजार तक पहुंच: आत्मनिर्भरता की ओर कदम
लहुरी के किसानों ने अपनी उपज को सीधे बाजार तक पहुंचाने के लिए सहकारी समितियां बनाई हैं। ये समितियां न केवल उपज को उचित दाम पर बेचने में मदद करती हैं, बल्कि परिवहन और विपणन की लागत को भी कम करती हैं। वाराणसी के मंडी और आसपास के शहरों में लहुरी की ककड़ी और तरबूज की भारी मांग है। इसके अलावा, कुछ किसानों ने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और स्थानीय स्टार्टअप्स के साथ मिलकर अपनी उपज को बड़े शहरों तक पहुंचाना शुरू किया है।
किसान श्यामलाल ने कहा, “पहले हमें मंडी में बिचौलियों के भरोसे रहना पड़ता था, लेकिन अब हमारी सहकारी समिति ने हमें आत्मनिर्भर बनाया है। हमारी उपज अब सीधे ग्राहकों तक पहुंचती है, जिससे हमें अच्छा मुनाफा मिलता है।”
सरकारी योजनाओं का सहयोग
उत्तर प्रदेश सरकार की विभिन्न योजनाओं ने भी लहुरी के किसानों को प्रोत्साहित किया है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, किसान सम्मान निधि, और जैविक खेती को बढ़ावा देने वाली योजनाओं ने किसानों को आर्थिक और तकनीकी सहायता प्रदान की है। इसके अलावा, राज्य सरकार ने गंगा किनारे की रेतीली जमीन पर खेती को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रशिक्षण शिविर और सब्सिडी योजनाएं शुरू की हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में वाराणसी दौरे के दौरान लहुरी के किसानों की तारीफ की और कहा, “ये किसान हमारी प्रेरणा हैं। इन्होंने साबित किया है कि मेहनत और नवाचार से कोई भी जमीन सोना उगल सकती है। सरकार इनके साथ हर कदम पर खड़ी है।”
प्राकृतिक आपदाओं का सामना: हौसले की मिसाल
हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने कई क्षेत्रों में फसलों को नुकसान पहुंचाया। लेकिन लहुरी के किसानों ने अपनी सूझबूझ से इस आपदा का भी सामना किया। रेतीली मिट्टी के कारण जलजमाव की समस्या कम रही, और किसानों ने तुरंत अपनी फसलों को बचाने के लिए मल्चिंग और तिरपाल का उपयोग किया। इसके अलावा, फसल बीमा योजना ने उन्हें आर्थिक नुकसान से उबरने में मदद की।
किसान सूरज पटेल ने बताया, “इस बार बारिश ने हमें डराया, लेकिन हमने हार नहीं मानी। हमारी मेहनत और सरकार की मदद से हमने नुकसान को कम किया और अब फिर से खेती शुरू कर दी है।”
सामाजिक और आर्थिक बदलाव
लहुरी की इस खेती क्रांति ने न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारी, बल्कि सामाजिक बदलाव भी लाया। गांव की महिलाएं अब खेती और सहकारी समितियों में सक्रिय रूप से हिस्सा ले रही हैं। युवा, जो पहले शहरों की ओर पलायन कर रहे थे, अब खेती को एक लाभकारी व्यवसाय के रूप में देख रहे हैं। लहुरी का यह मॉडल अब अन्य जिलों के लिए भी प्रेरणा बन रहा है।
आगे की राह: टिकाऊ खेती की ओर
लहुरी के किसान अब टिकाऊ खेती की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। वे सौर ऊर्जा आधारित पंप, वर्षा जल संचयन, और मिश्रित खेती जैसी तकनीकों को अपना रहे हैं। इसके अलावा, वे पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए अपनी खेतों को एग्री-टूरिज्म साइट के रूप में विकसित करने की योजना बना रहे हैं, जहां लोग जैविक खेती और ग्रामीण जीवन का अनुभव ले सकें।