• April 16, 2025

अभिभावकों की लापरवाही: नाबालिग बच्चे बाइक से स्कूल जा रहे, टीचर-ट्रैफिक विभाग बेखबर, हो सकती है 3 साल की जेल

लखनऊ, 15 अप्रैल 2025: उत्तर प्रदेश में नाबालिग बच्चों द्वारा स्कूल जाने के लिए बाइक और स्कूटी चलाने के मामले बढ़ते जा रहे हैं, जो अभिभावकों की लापरवाही को दर्शाता है। मोटर वाहन अधिनियम और उत्तर प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सख्त नियमों के बावजूद, कई हाई स्कूल और इंटरमीडिएट के छात्र बिना लाइसेंस के दोपहिया वाहन चलाते देखे जा रहे हैं। इस स्थिति में न केवल ट्रैफिक विभाग की निष्क्रियता सवालों के घेरे में है, बल्कि स्कूल शिक्षकों और प्रबंधन की जिम्मेदारी भी जांच के दायरे में आ रही है। नियमों के उल्लंघन पर अभिभावकों को 3 साल तक की जेल और 25,000 रुपये का जुर्माना हो सकता है।
नाबालिगों द्वारा वाहन चलाने का मुद्दा
उत्तर प्रदेश में सड़क हादसों में नाबालिगों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सरकार ने 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए दोपहिया और चार पहिया वाहन चलाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा रखा है। 2024 में उत्तर प्रदेश परिवहन विभाग ने इस संबंध में सख्त निर्देश जारी किए थे, जिसमें कहा गया कि यदि कोई नाबालिग वाहन चलाते पकड़ा जाता है, तो उसके अभिभावक को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा। इसके तहत निम्नलिखित सजा का प्रावधान है:
  • अभिभावकों के लिए: 3 साल तक की जेल और 25,000 रुपये का जुर्माना।
  • वाहन के लिए: वाहन का रजिस्ट्रेशन एक साल के लिए रद्द।
  • नाबालिग के लिए: 25 साल की उम्र से पहले ड्राइविंग लाइसेंस नहीं बन सकेगा।

हालांकि, इन नियमों का पालन न तो पूरी तरह हो रहा है और न ही स्कूलों और ट्रैफिक पुलिस द्वारा इसकी सख्ती से निगरानी की जा रही है। लखनऊ, आगरा, बहराइच जैसे शहरों में सुबह स्कूल टाइम के दौरान 12 से 16 साल के बच्चे बाइक और स्कूटी चलाते देखे जा सकते हैं।
अभिभावकों की लापरवाही
अभिभावक अक्सर अपने बच्चों को स्कूल या छोटे-मोटे काम के लिए बाइक और स्कूटी दे देते हैं, बिना यह सोचे कि यह कानूनन अपराध है। स्थानीय निवासी और सड़क सुरक्षा कार्यकर्ता अजय शर्मा ने कहा, “कई माता-पिता बच्चों को जल्दी स्कूल पहुंचाने के लिए बाइक दे देते हैं, लेकिन यह उनकी जिम्मेदारी है कि वे बच्चों को सड़क पर खतरे में न डालें।” आंकड़ों के अनुसार, सड़क दुर्घटनाओं में मरने वाले 40% नाबालिग 12 से 18 साल की उम्र के होते हैं, जिनमें से ज्यादातर बिना लाइसेंस वाहन चलाते हैं।
स्कूल और शिक्षकों की भूमिका
स्कूल प्रबंधन और शिक्षकों की भी इस मामले में जवाबदेही तय की जा रही है। कई स्कूलों में यह देखा गया है कि नाबालिग बच्चे बाइक या स्कूटी से स्कूल आते हैं, लेकिन प्रबंधन इस पर ध्यान नहीं देता। उत्तर प्रदेश परिवहन विभाग ने 2024 में स्कूलों को निर्देश दिए थे कि वे रोड सेफ्टी क्लब बनाएं और प्रत्येक कक्षा में एक रोड सेफ्टी कैप्टन नियुक्त करें। इसके बावजूद, ज्यादातर स्कूलों में यह व्यवस्था लागू नहीं हुई है।
शिक्षक रमेश तिवारी ने कहा, “स्कूलों में शिक्षकों का ध्यान पढ़ाई पर होता है, लेकिन हमें बच्चों की सुरक्षा के लिए भी जिम्मेदार होना चाहिए। अगर कोई बच्चा बाइक से आता है, तो हमें अभिभावकों को सूचित करना चाहिए।” हालांकि, कई स्कूलों में ऐसी कोई नीति नहीं है, जिसके चलते नाबालिगों का वाहन चलाना अनदेखा किया जाता है।
ट्रैफिक पुलिस की निष्क्रियता
ट्रैफिक पुलिस की ओर से भी इस मुद्दे पर सख्ती की कमी देखी जा रही है। लखनऊ के ट्रैफिक पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “हम रोजाना चालान काटते हैं, लेकिन नाबालिगों के मामले में अभिभावकों तक पहुंचना मुश्किल होता है। स्कूल टाइम में चेकिंग बढ़ाने की जरूरत है।” आगरा में 2022 में पांच महीनों में केवल 38 नाबालिगों के चालान काटे गए, जो इस समस्या की गंभीरता को देखते हुए नाकाफी है।
हाल के हादसे और चिंता
हाल ही में बहराइच में हुए एक हादसे, जिसमें एक नाबालिग द्वारा चलाई जा रही बाइक ने राहगीर को टक्कर मार दी, ने इस मुद्दे को फिर से चर्चा में ला दिया है। ऐसे हादसे न केवल नाबालिगों की जान को खतरे में डालते हैं, बल्कि सड़क पर अन्य लोगों के लिए भी जोखिम पैदा करते हैं। सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. अनिल मिश्रा ने कहा, “नाबालिगों को वाहन चलाने की अनुमति देना एक सामाजिक और कानूनी अपराध है। ट्रैफिक पुलिस, स्कूल और अभिभावकों को मिलकर इस पर रोक लगानी होगी।”
सरकार और प्रशासन के प्रयास
उत्तर प्रदेश सरकार ने सड़क सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं:
  • जागरूकता अभियान: परिवहन विभाग ने स्कूलों में जागरूकता कार्यक्रम शुरू किए हैं, लेकिन इनका प्रभाव सीमित है।
  • रोड सेफ्टी क्लब: स्कूलों में सड़क सुरक्षा के लिए क्लब बनाने के निर्देश दिए गए हैं।
  • चालान और सजा: नाबालिगों के वाहन चलाने पर चालान के साथ अभिभावकों के खिलाफ FIR दर्ज करने की व्यवस्था है।
हालांकि, इन नियमों का पालन और निगरानी कमजोर होने के कारण समस्या बनी हुई है।
समाधान के सुझाव
  1. अभिभावकों की जिम्मेदारी: माता-पिता को बच्चों को 18 साल की उम्र से पहले वाहन न देने का प्रण लेना चाहिए। उन्हें बच्चों को यातायात नियमों की जानकारी देनी चाहिए।
  2. स्कूलों की भूमिका: स्कूलों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई नाबालिग वाहन लेकर स्कूल न आए। इसके लिए गेट पर चेकिंग और अभिभावकों को सूचित करने की व्यवस्था होनी चाहिए।
  3. ट्रैफिक पुलिस की सक्रियता: स्कूल टाइम के दौरान प्रमुख मार्गों पर चेकिंग बढ़ाई जाए और नाबालिगों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई हो।
  4. जागरूकता अभियान: सरकार, स्कूल और सामाजिक संगठनों को मिलकर सड़क सुरक्षा पर बड़े पैमाने पर जागरूकता कार्यक्रम चलाने चाहिए।
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