• April 16, 2025

ज्ञानवापी मामले में सुनवाई टली, यौन शोषण के दोषी को 20 साल की सजा

वाराणसी/नई दिल्ली, 8 अप्रैल 2025: देश की न्यायिक व्यवस्था से जुड़ी दो बड़ी खबरें आज सुर्खियों में हैं। पहली खबर वाराणसी के बहुचर्चित ज्ञानवापी मामले से संबंधित है, जहां पक्षकार बनने की एक अर्जी पर सुनवाई को टाल दिया गया है। दूसरी ओर, एक अन्य मामले में यौन शोषण के दोषी को कोर्ट ने 20 साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाई है। ये दोनों फैसले आज, मंगलवार, 8 अप्रैल 2025 को सामने आए हैं और इनका समाज पर गहरा प्रभाव पड़ने की संभावना है। आइए, इन दोनों मामलों को विस्तार से समझते हैं।
ज्ञानवापी मामला: पक्षकार बनने की अर्जी पर सुनवाई टली
ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर विवाद लंबे समय से देश की अदालतों में चर्चा का विषय बना हुआ है। यह मामला धार्मिक भावनाओं और ऐतिहासिक दावों के बीच एक जटिल कानूनी लड़ाई का रूप ले चुका है। आज वाराणसी की एक अदालत में इस मामले में एक नई याचिका पर सुनवाई होने वाली थी, जिसमें एक पक्ष ने खुद को इस मुकदमे में पक्षकार बनाने की मांग की थी। हालांकि, कोर्ट ने इस सुनवाई को स्थगित कर दिया है, जिसके कारण इस मामले में अगली तारीख का इंतजार करना होगा।
इस याचिका को दाखिल करने वाले पक्ष का कहना है कि उनके पास इस विवाद से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण सबूत और दस्तावेज हैं, जो मामले की दिशा को प्रभावित कर सकते हैं। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उनकी भागीदारी से कोर्ट को इस मामले की गहराई तक पहुंचने में मदद मिलेगी। दूसरी ओर, मौजूदा पक्षकारों ने इस अर्जी का विरोध करते हुए कहा कि यह केवल मुकदमे को और जटिल बनाने की कोशिश है। उनका तर्क है कि पहले से ही कई पक्ष इस मामले में शामिल हैं और नई अर्जी से सुनवाई में देरी होगी।
ज्ञानवापी मामला मूल रूप से मस्जिद परिसर में हिंदू पूजा के अधिकार और वहां कथित तौर पर मौजूद शिवलिंग की जांच से जुड़ा है। पिछले कुछ वर्षों में इस मामले में कई महत्वपूर्ण घटनाक्रम देखने को मिले हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा किए गए सर्वे और उसकी रिपोर्ट भी इस विवाद का एक अहम हिस्सा बन चुकी है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के कई आदेशों के बाद भी यह मामला पूरी तरह सुलझने से दूर है। आज की सुनवाई टलने से एक बार फिर इस मामले में अनिश्चितता बढ़ गई है।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि पक्षकार बनने की नई अर्जी से मुकदमे की प्रक्रिया और लंबी हो सकती है। एक वरिष्ठ वकील ने कहा, “यह मामला पहले ही कई सालों से चल रहा है। हर नई अर्जी के साथ इसमें नए आयाम जुड़ते हैं, जिससे फैसला लेना और मुश्किल हो जाता है।” वहीं, स्थानीय लोगों का कहना है कि इस विवाद का जल्द समाधान होना चाहिए, ताकि धार्मिक तनाव कम हो और सामाजिक सौहार्द बना रहे।
यौन शोषण का मामला: दोषी को 20 साल की सजा
दूसरी बड़ी खबर एक यौन शोषण के मामले से जुड़ी है, जिसमें कोर्ट ने दोषी को 20 साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाई है। यह मामला एक नाबालिग के साथ हुए अपराध से संबंधित है, जिसने समाज में गहरी चिंता पैदा की थी। कोर्ट ने अपने फैसले में दोषी को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और पॉक्सो एक्ट (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) की संबंधित धाराओं के तहत दोषी ठहराया। इसके साथ ही, दोषी पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है, जो पीड़िता को मुआवजे के रूप में दिया जाएगा।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, यह घटना कुछ महीने पहले हुई थी, जब दोषी ने पीड़िता को बहला-फुसलाकर अपने घर ले जाया और उसके साथ यौन शोषण किया। पीड़िता की शिकायत के बाद पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए आरोपी को गिरफ्तार किया था। जांच के दौरान कई गवाहों के बयान और फोरेंसिक साक्ष्यों ने अभियोजन के पक्ष को मजबूत किया। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पीड़िता की गवाही को सबसे अहम माना और कहा कि उसका बयान विश्वसनीय और साक्ष्यों से मेल खाता है।
विशेष पॉक्सो कोर्ट के जज ने अपने फैसले में कहा, “यह एक जघन्य अपराध है, जो न केवल पीड़िता के जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि पूरे समाज के लिए एक चेतावनी है। ऐसे मामलों में कठोर सजा जरूरी है, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाएं रोकी जा सकें।” कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि पीड़िता को उचित सहायता और पुनर्वास की सुविधा प्रदान की जाए।
इस फैसले का पीड़िता के परिवार ने स्वागत किया है। पीड़िता के पिता ने कहा, “हमें न्याय मिला है। यह सजा उन सभी के लिए सबक है जो मासूम बच्चों को निशाना बनाते हैं।” वहीं, दोषी के परिवार ने इस फैसले पर असंतोष जताया और कहा कि वे ऊपरी अदालत में अपील करेंगे।
सामाजिक और कानूनी प्रभाव
ये दोनों मामले अपने-अपने तरीके से समाज और कानून के लिए महत्वपूर्ण हैं। ज्ञानवापी मामला जहां धार्मिक संवेदनशीलता और ऐतिहासिक दावों से जुड़ा है, वहीं यौन शोषण का मामला बच्चों की सुरक्षा और महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर सख्ती की जरूरत को रेखांकित करता है। दोनों ही मामलों में कोर्ट का रुख यह दर्शाता है कि न्यायिक प्रक्रिया में संतुलन और निष्पक्षता बनाए रखने की कोशिश की जा रही है।
ज्ञानवापी मामले में सुनवाई टलने से जहां एक ओर लोगों में उत्सुकता बढ़ी है, वहीं दूसरी ओर यह सवाल भी उठ रहा है कि आखिर यह विवाद कब तक अनसुलझा रहेगा। कई लोग मानते हैं कि इस मामले का समाधान बातचीत और आपसी सहमति से भी हो सकता है, लेकिन कानूनी प्रक्रिया अपनी गति से चल रही है।
वहीं, यौन शोषण के मामले में कठोर सजा से यह संदेश गया है कि बच्चों के खिलाफ अपराध को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस फैसले की सराहना करते हुए कहा कि इससे लोगों में कानून का डर बढ़ेगा और पीड़ितों को न्याय के प्रति भरोसा मजबूत होगा।
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