समाज कानूनों से नहीं, नैतिकता और संस्कारों से चलता हैः डॉ निवेदिता शर्मा

भोपाल, 27 जुलाई। राज्य बाल संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा ने राजधानी भोपाल में आयोजित परिसंवाद कार्यक्रम में कहा कि भारत सरकार द्वारा तीन नए कानून लागू किए हैं। तीनों पुराने कानून हैं, जिनका कुछ हिस्सा हटाया गया है और इनका नाम बदला गया है। इनमें कुछ नया जोड़ा भी गया है। इनमें दंड के स्थान पर न्याय शब्द का इस्तेमाल कर भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य संहिता 2023 हो गए हैं। उन्होंने 2012 में आए माता-पिता भरण पोषण कानून का जिक्र करते हुए कहा कि इसकी जरूरत क्यों पड़ी, यह सोचने की जरूरत है, लेकिन समाज कानूनों से नहीं, नैतिकता और संस्कारों से चलता है। कानूनों की शिक्षा देने की आवश्यकता है।
दरअसल, डॉ. निवेदिता शर्मा शनिवार को हिन्दुस्थान समाचार न्यूज एजेंसी और धर्म संस्कृति समिति द्वारा भू अतिक्रमण और समान नागरिक संहिता को लेकर राजधानी भोपाल में आयोजित एक दिवसीय परिसंवाद कार्यक्रम को बतौर विशिष्ट अतिथि संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि आज के समय में भू-अतिक्रमण और समान नागरिक सहिता पर बात करने की अत्यधिक आश्यकता है। कानून की भारतीय दष्टि क्या हो सकती है। उस अनुरूप हर किसी को इस देश में न्याय पाने का अधिकार है। अंग्रेजों के समय में हमें व्यवस्थित न्याय मिला, हम यह समझते हैं तो ऐसा नहीं है। क्या कोई किसी महिला के साथ व्यभिचार करेगा तो क्या उसको सजा नहीं, मिलनी चाहिए ? निश्चित ही मिलनी चाहिए, इसलिए कानून व्यवस्था भारत में प्राचीन समय से चली आ रही है।
उन्होंने अयोध्या के राजा सगर का उदाहरण देते हुए कहा कि उनके राजकुमार का नाम असमंजस था। लोगों ने राजा से शिकायत करते हुए कहा कि राजकुमार असमंजस हमारे छोटे-छोटे बच्चों को उठाकर तेज जलधारा में फेंक देते हैं । इससे हमारे बच्चे चिल्लाते हैं और उन्हें मजा आता है। तब राजा उठे और उन्होंने अपने मंत्रिपरिषद को बुलाया और उस सभा में उन्होंने राजकुमार से अपना पक्ष रखने के लिए कहा। जब उन्होंने अपना पक्ष रखा तो उसने माफी मांगी, लेकिन क्या राजा का बेटा है तो उसे माफ कर देना चाहिए ? उस समय उसे राजद्रोह के नाते देश से निकाल दिया। किसी की मृत्यु नहीं हुई थी, इसलिए उसे मृत्युदंड नहीं मिला। ऐसी न्याय व्यवस्था भारत में प्राचीन समय से देखने को मिलती है।
