तब गिरीश कर्नाड होते हेमा के पति
गिरीश कर्नाड (1939-2019) को आज की पीढ़ी सलमान खान की फिल्मों टाइगर और टाइगर जिंदा है में उनके बॉस के रूप में, फिल्म पुकार में अनिल कपूर के पिता और नागेश कुकुनूर की फिल्मों इकबाल और डोर के संवेदनशील अभिनेता के रूप में जानती- पहचानती है। उससे पहले की पीढ़ी उन्हें निशांत ,मंथन, स्वामी आशा, मनपसंद, तरंग, सुरसंगम और उत्सव जैसी फिल्मों के जरिए जानती है । इसके अलावा गिरीश कर्नाड कन्नड़ और अंग्रेजी के प्रख्यात नाटककर, पटकथा लेखक, अनुवादक, फिल्म निर्देशक और सामाजिक कार्यकर्ता थे। वह एफटीआईआई पुणे के निदेशक भी रहे और संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष भी । वे 1 जनवरी 1974 में जब एफटीआईआई के निदेशक बने तो उसकी कार्यप्रणाली में कई सुधार किए। उनके समय में वहां अभिनय के छात्रों ने एक बड़ी हड़ताल की थी जिसका नेतृत्व नसरुद्दीन शाह ने किया था, उसको भी उन्होंने बेहद संतुलित तरीके से संभाला। यहां कार्य करते समय उन्हें श्याम बेनेगल की फिल्म निशांत में काम मिला ।
इसी दौरान एक बार उन्हें हेमा मालिनी की मां जया चक्रवर्ती ने एक होटल में बुलवाया और उन्हें स्वामी नाम की एक फिल्म जो कि वे प्रोड्यूस कर रही थीं के लिए साइन किया । स्वामी 1977 में रिलीज हुई। इसका निर्देशन बासु चटर्जी ने किया था। फिल्म में शबाना आज़मी , विक्रम, गिरीश कर्नाड और उत्पल दत्त मुख्य भूमिका में थे । हेमा मालिनी और धर्मेंद्र ने फिल्म में एक साथ अतिथि भूमिका निभाई थी नौटंकी में एक गीत प्रस्तुत करके। फिल्म का संगीत राजेश रोशन ने दिया था ।
फिल्म की शूटिंग दहिसर , मुंबई और दहिसर नदी के किनारे की गई थी। कहानी के अनुसार सौदामिनी ( शबाना आजमी ) गांव की एक होनहार लड़की है, जिसकी रुचि साहित्य में है और वह आगे पढ़ना चाहती है। उसकी रुचि है। उसके समझदार चाचा ( उत्पल दत्त ) उसकी पढ़ाई को प्रोत्साहित करते हैं और उसकी मां, एक धर्मपरायण विधवा, जिसकी एकमात्र चिंता मिनी की शादी देखना है, के साथ चल रहे छोटे-मोटे झगड़ों को सुलझाते रहते हैं। मिनी, नरेंद्र (विक्रम) से प्यार करती है, जो जमींदार का बेटा है और कलकत्ता में पढ़ता है। परिस्थितियां कुछ ऐसी बनती हैं कि मिनी की इच्छा के विरुद्ध उसका विवाह पड़ोस के गांव के गेहूं व्यापारी घनश्याम ( गिरीश कर्नाड ) से कर दिया जाता है। लेकिन पति के सुलझे ,सरल और निश्चल व्यवहार के कारण उसे अपना व्यवहार और नजरिया बदलना पड़ता है।
शरत चंद्र चट्टोपाध्याय जी की इस कहानी के संवाद प्रख्यात लेखिका मन्नू भंडारी ने लिखे थे और फिल्म के गीत अमित खन्ना के थे। फिल्म बेहद सफल रही और उस वर्ष के तीन प्रमुख फिल्मफेयर पुरस्कार,सर्वश्रेष्ठ निर्देशक – बासु चटर्जी, सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री– शबाना आजमी, सर्वश्रेष्ठ कहानी– शरत चंद्र चट्टोपाध्याय को प्राप्त हुए। येसुदास द्वारा गाया हुआ गीत “का करू सजनी , आए न बालम” बहुत हिट हुआ था।
स्वामी की सफलता के बाद जया चक्रवर्ती ने उन्हें फिल्म रत्नदीप में फिर मुख्य भूमिका सौंपी। इसमें उनकी हीरोइन हेमा मालिनी थीं। गिरीश को जब -तब हेमा के भाइयों द्वारा घर पर खाने के लिए बुलाया जाने लगा। तब उन्हें अहसास हुआ कि बात कुछ और है । गिरीश कर्नाड ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उन्हें लग गया था कि जया उन्हें अपने दामाद के रूप में देख रही हैं। क्योंकि उसे समय चारों तरफ हेमा मालिनी और धर्मेंद्र के प्यार के किस्से व्याप्त थे और हेमा मालिनी का परिवार धर्मेंद्र के शादीशुदा होने के कारण रिश्ते के लिए तैयार नहीं था।
इधर गिरीश कर्नाड ऑक्सफोर्ड में पढ़े लिखे थे,अविवाहित थे और दक्षिण भारतीय भी थे। एक बार जब वह फिल्म रत्नदीप की शूटिंग खजुराहो में कर रहे थे तो एक शाम हेमा मालिनी ने उन्हें टहलने के लिए साथ चलने को कहा। चलते-चलते उन्होंने कहा, अखबार वाले कह रहे हैं कि हम शादी करने वाले हैं। आपका क्या विचार है? तब गिरीश ने कहा कि मैं प्रेस की बातों को बिल्कुल महत्त्व नहीं देता हूं। मेरे न कहने का कारण यह है कि मैं अमेरिका में किसी से सगाई कर चुका हूं। हालांकि उनकी इस बात में आधी सच्चाई थी। वह सरस्वती नाम की एक महिला से शादी करने की बात कर चुके थे लेकिन उन्हें वहां से स्वीकृति नहीं मिली थीं। खैर वजह कोई भी रही हो जया चक्रवर्ती का सपना तो अधूरा रह ही गया…।
चलते-चलते
लेकिन इस प्रकरण पर गिरीश कर्नाड ने आगे भी चुटकी लेते हुए अपनी आत्मकथा में लिखा है कि यदि सरस्वती वाली बात न होती तो भी मेरे लिए हेमा से शादी करने के बारे में सोच सकना संभव न था। इसके लिए शायद सिर्फ एक कारण काफी था। मैंने एक बार हेमा से पूछा था, आपने कभी मद्रास में तमिल फिल्मों में अभिनय क्यों नहीं किया ? तब उन्होंने ठहाका लगाकर उत्तर दिया था-अरे वहां के लोग बहुत काले होते हैं…।
(लेखक, वरिष्ठ कला-साहित्य समीक्षक हैं।)




