• November 22, 2024

Masan Holi : रंग – गुलाल के बाद काशी में खेली जाती चिता की भस्म से होली, जानिए क्यों और कैसे हुई इस परम्परा की शुरुआत ?

 Masan Holi : रंग – गुलाल के बाद काशी में खेली जाती चिता की भस्म से होली, जानिए क्यों और कैसे हुई इस परम्परा की शुरुआत ?

देश भर में होली उत्साह और उमंग के साथ एक दूसरे को रंग – अबीर लगाकर इस त्यौहार को मनाते है। इस साल यह पर्व 08 मार्च 2023 को मनाया जाएगा। वैसे तो विभिन्न प्रकार की होली के लिए मथुरा को ही जाना जाता रहा है, लेकिन काशी में भी विशेष प्रकार की होली खेले जाने की परम्परा है। इस परम्परा में चिता की धधकती हुई भस्म से होली खेली जाती है, जिसे ” मासने को होली” के नाम से जाना जाता है। यह सुनने में बहुत अजीब है , इस परम्परा को सुनते ही तमाम से सवाल मन में आते है। आखिरी रंगो के चिता के भस्म से होली क्यों खेली जाती है ? कब से खेली जाती है ? इसे मनाने के पीछे क्या मान्यता है या क्या महत्व है ? ऐसे तमाम सारे सवाल मन में आते हैं। आज हम आपको इस लेख में बताने जा रहे है ……

क्यों मनाई जाती है ” मसाने की होली ”

पौराणिक कहानियों के अनुसार, होली के दिन यानी रंगभरी एकादशी पर शिव जी पार्वती जी का गौना लेकर लौटे थे। इस दौरान शिव जी ने अपने सभी गणो के साथ में रंग और गुलाल के साथ में होली खेली थी। इस दौरान श्मशान में बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष गन्धर्व, किन्नर जीव जंतु आदि के साथ होली नहीं खेल पाए थे। इसके लिए शिव जी एकादशी के दूसरे दिन शिव जी श्मशान में बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष गन्धर्व, किन्नर जीव जंतु के साथ में भस्म से होली खेली थी। तब इस मसाने की होली की शुरुआत है और आज भी काशी के हरिश्चंद्र घाट और मणिकर्णिका घाट पर जलने वाली चिताओ की भस्म से नागा साधू समेत कई सारे लोग भस्म की होली खेलते है।

जानिये कैसे मनाई जाती है ‘मसाने की होली’

देश भर में मात्र काशी ऐसा इकलौता शहर हैं रंग – गुलाल के साथ भस्म की होली खेली जाती है। इस होली में चिता की धधकती हुई भस्म से बाबा विश्वनाथ के भक्त होली खेलते है। मान्यता है कि मोक्ष की नगरी काशी में भगवान शिव स्वयं तारक मंत्र देते हैं। होली पर चिता की भस्म को अबीर और गुलाल एक दूसरे पर अर्पित कर सुख, समृद्धि, वैभव संग शिव का आशीर्वाद पाते हैं। काशी में मसाने की होली एक ओर विचित्र और अनूठी मानी जाती है तो वहीं दूसरी ओर इस बात का भी संदेश देती है कि शिव ही अंतिम सत्य हैं।

 

 

बाबा विश्वनाथ के जयघोष के साथ इस गीत पर हुड़दंग करते है भक्त

गीत
खेलैं मसाने में होरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी
भूत पिशाच बटोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी

लखि सुंदर फागुनी छटा के, मन से रंग-गुलाल हटा के,
चिता, भस्म भर झोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी

गोप न गोपी श्याम न राधा, ना कोई रोक ना, कौनऊ बाधा
ना साजन ना गोरी, ना साजन ना गोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी

नाचत गावत डमरूधारी, छोड़ै सर्प-गरल पिचकारी
पीटैं प्रेत-थपोरी दिगंबर खेलैं मसाने में होरी
भूतनाथ की मंगल-होरी, देखि सिहाए बिरिज की गोरी
धन-धन नाथ अघोरी दिगंबर, खेलैं मसाने में होरी

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