बदलते मौसम में फसलों का संरक्षण को लेकर मौसम वैज्ञानिक ने दिए टिप्स

चन्द्रशेखर आजाद कृषि प्रौद्योगिकी विज्ञान विश्वविद्यालय (सीएसए) के मौसम वैज्ञानिक डॉ.एस.एन.सुनील पांडेय ने शनिवार को गत दिनों मौसम विभाग से जारी संभावित मौसम को देखते हुए कृषि संबंधित विभागों को निर्देशित किया है। जिसमें नहरों, नलकूपों की नालियों को ठीक दशा में रखे और जिससे आवश्यकतानुसार फसलों की जीवन रक्षक सिंचाई उपलब्ध कराई जा सके।
उन्होंने सलाह देते हुए बताया कि बुन्देलखण्ड में संकेन (रेण्ड)- बंड विधि से दलहनी एवं तिलहनी की सहफसली खेती को अपनाया जाए। धान की रोपाई का कार्य कृषक यथाशीघ्र पूर्ण करें। धान की डबल रोपाई या सण्डा प्लाटिंग के दूसरी रोपाई पुनः पहले रोपे गये धान के तीन सप्ताह बाद 10 सेमी की दूरी पर करे। दलहनी एवं तिलहनी फसलों में जल भराव न होने दें, जल निकास का उचित प्रबंध करें।
मौसम वैज्ञानिक ने बताया कि विलम्ब से धान की रोपाई करने पर अधिक अवधि वाली पाप (30-35 दिन) की रोपाई 2-3 पौष प्रति पुज के स्थान पर 3-4 पी की रोपाई प्रति पूजन करें। विशेष रूप से ऊसर एवं क्षारीय भूमियों में पौध की रोपाई प्रति पूज करें। रोपाई से पहले पौधों की पत्तियों के शिरों को काट दें। रोपाई के बाद धान के जो पौधे नष्ट गए हो उनके स्थान पर दूसरे पौधों को तुरन्त लगा दें, ताकि प्रति इकाई पौधों की संख्या कम न होने पाये।
मौसम वैज्ञानिक ने बताया कि जिन क्षेत्रों में वर्षा नहीं हुई है वहां गन्ने के खेत में नमी बनाये रखने के सतह पर हल्की गुड़ाई (डस्ट मल्चिंग करें। पोक्का बोइंग को नियंत्रित करने के लिये कापर आक्सीक्लोराइड 02 प्रतिशत अर्थात 100 लीटर पानी में 200 ग्राम की दर से अथवा वावस्टीन शून्य प्रतिशत की दर से अर्थात 100 लीटर पानी में 100 ग्राम की दर से 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।
