कुंतेश्वर धाम में आज भी पूजा करने आतीं है माता कुंती

 कुंतेश्वर धाम में आज भी पूजा करने आतीं है माता कुंती

जनपद में स्थापित कुंतेश्वर धाम में आज भी पाण्डवों की माता कुंती सबसे पहले पूजा करने शिव मंदिर में आती हैं। उनके हाथों से स्थापित इस शिव मंदिर में जलाभिषेक करने से मनवांछित फल मिलता है। सावन के महीनों में दूर-दूर से भक्त जल चढ़ाने इस धाम पर आते हैं।

जिला मुख्यायलय से करीब 40 किलोमीटर दूर रामनगर टिकैतनगर रोड पर कस्बा बदोसराय के मुख्य चौराहे से दो किलोमीटर उत्तर दिशा में कुंतेश्वर धाम स्थापित है। इतिहासकारों का मानना है कि यह धाम पाण्डवों की माता कुंती ने स्थापित किया था। ऐसी मान्यता है कि माता कुंती द्वारा प्रत्यारोपित अद्भुत शिवलिंग का जलाभिषेक करके श्रद्धालुओं को मनवांछित फल प्राप्त होता है। इस शिवलिंग की महत्ता का वर्णन करते हुए सुप्रसिद्ध कवि शिवराज शिव ने अपनी कविता की पंक्तियों में कुछ इस तरह से किया है।

‘‘कल्पतरु सा तरू नहीं कुंतेश्वर सा धाम।

केवल दर्शन मात्र से पूर्ण होय सब काम।।
पड़ी पांडवों पर जबहि समय की दोहरी मार।
राजकाज भय संपदा मदद कीन्ह त्रिपुरार।।
कुंती मां के हाथ का द्वापर काल युगीन।
कुंतेश्वर महादेव का मंदिर अतिप्राचीन।।
हर तरफ अलौकिक छटाएं शिव नयनाभिराम से।।
हाथ खाली न गया कोई कुंतेश्वर धाम से।।

शिवराज की पंक्तियों से शिव मंदिर की पौराणिकता सिद्ध होती है। कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडवों को द्यूतक्रीड़ा में हार के परिणित उन्हें 12 वर्षों के कठोर वनवास और एक वर्ष अज्ञातवास का दंड भोगना पड़ा। वनवास के दौरान पांडवों ने कुछ समय घाघरा नदी के पास भी व्यतीत किया था। इस दौरान पांडवों की माता कुंती ने महाबली भीम से शिवार्चन के लिए शिवलिंग लाने को कहा। माता कुंती की आज्ञा पाकर भीम पर्वतमालाओं में विचरण करते हुए एक शिवलिंग बहंगी में रख कर चले। जब उन्हें चलने में असुविधा हुई तो उसी के आकार का दूसरा शिवलिंग बहंगी के दूसरी और रख लिया। उसमें से एक शिवलिंग को माता कुंती ने अपने हाथों से घाघरा नदी के तट पर प्रत्यारोपित किया। उस स्थान का नाम पहले कुंतेश्वर धाम था। धीरे-धीरे वहां आबादी बढ़ने लगी और गांव बस गया जो कालांतर में परिवर्तित होकर कुंतीपुर से किंतूर के नाम से विख्यात हो गया।

गांव के बड़े-बुजुर्गाें बताते हैं कि एक समय की बात है कि जब पांडवों की माता कुंती और दुर्याेधन की माता गांधारी इस स्थान पर एक ही समय पूजा को आई। दोनों ने अपने-अपने पुत्रों की विजय की कामना करने लगी। भगवान भोलेनाथ दोनों की मनोकामनाओं को जान गये फिर एक आकाशवाणी हुई। इसमें कहा कि कल भोर पहर जो महिलाएं सर्वप्रथम स्वर्ण पुष्पों से मेरी पूजा करेगी उन्हीं का पुत्र युद्ध में विजयी होगा।

आकाशवाणी सुनकर माता कुंती दुखी हो गई, क्योंकि कुंती के पास उस समय कुछ नहीं था फिर वह इतना स्वर्ण कहां से लाती। कुंती के दुख का कारण सुनकर श्रीकृष्ण ने कहा कि मैं आपको ऐसा स्वर्ण पुष्प ला कर दूंगा जो इस संसार में अद्वितीय होगा। तत्पश्चात भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन स्वर्ग में इंद्र की वाटिका को गए और वहां से पारिजात वृक्ष की एक डाल तोड़ कर ले आए और उसके स्वर्णमई आभा वाले पुष्पों से माता कुंती ने प्रथम शिव अर्चन किया। पांडवों को विजय मिली। तत्पश्चात पारिजात वृक्ष की डाल को विदुर आश्रम बरौलिया में प्रत्यारोपित कर दिया। तभी से कुंतेश्वर धाम व पारिजात वृक्ष अपने अस्तित्व को बनाए हुए हैं।

लोगों की मान्यता है कि माता कुंती शिवलिंग पर आज भी प्रथम शिवार्चन करती हैं। क्योंकि रात्रि के समय यहां चढ़ाए गए सारे पुष्पों को हटा दिया जाता है। लेकिन रात्रि बारह बजे कोई अदृश्य शक्ति यहां पर आकर शवार्चन करती है, जो अपने आप में एक रहस्य बना हुआ है। लोगों का मानना है कि यहां आए हुए भक्तों की मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं ।

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