(बॉलीवुड के अनकहे किस्से) राज बब्बर : नायक और खलनायक का संतुलित राज

आगरा में 23 जून को एक सामान्य पंजाबी परिवार में जन्मे राज बब्बर ने सन 1975 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से अभिनय का डिप्लोमा प्राप्त किया। वे यहां से निकले पहले अभिनेता थे जो स्टार बने। घुंघराले बाल, बेहतरीन आवाज और सबसे खास सौम्य, शालीन, विनम्र। एनएसडी से निकलने वालों में 1962 बैच के ओम शिवपुरी और सुधा शिवपुरी थे, जिन्होंने सबसे पहले फिल्मी दुनिया में आने का इरादा बनाया। वे दिल्ली से मुंबई गए और सफल भी रहे। उसके बाद नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, जसपाल ने वाया फिल्म ऐंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट (पुणे) से मुंबई का रुख किया। राज बब्बर के बाद तो एनएसडी से फिल्मों में आने का सिलसिला तेजी से चल निकला। सीमा विश्वास, पंकज कपूर, यशपाल शर्मा, मनोज तिवारी, आशुतोष राणा, इरफान, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, राजपाल यादव, पंकज त्रिपाठी जैसे कई नाम इसमें शामिल हैं।
राज बब्बर तुरंत ही काम के लिए बंबई (मुंबई) नहीं भागे थे। उन्होंने दिल्ली में ही रहकर पूरी शिद्दत से थियेटर किया । सन 1978 में ‘यूनाइटेड प्रोड्यूसर और माधुरी-फिल्म फेयर टैलेंट कांटेस्ट’ का आयोजन बंबई में हुआ। इस प्रतियोगिता में पांच लड़के व पांच लड़कियों का चुनाव बीआर चोपड़ा, देवेंद्र गोयल, शक्ति सामंत, मोहन सहगल जैसे नामचीन निर्माता-निर्देशकों की ज्यूरी ने किया था। जिन पांच लड़कों का चयन हुआ था वे थे- दीपक पाराशर, राज बब्बर, सुरेंद्र पाल, पंकज धीर और स्वर्गीय इंदर ठाकुर (अभिनेता हीरालाल के सुपुत्र) व लड़कियों में सुरिंदर कौर, स्वरूप संपत (परेश रावल की पत्नी), रेखा सहाय (सुबोधकांत सहाय की पत्नी), नमिता चंद्रा व अन्य।
इन सभी का मोहन स्टूडियो (मुंबई) में ऑडिशन हुआ तब तक दीपक पराशर ‘मिस्टर इंडिया’ भी बन चुके थे। वह दिखते भी सबसे अलग थे। अभिनेता सुरेंद्र पाल गाजियाबाद से ऑडीशन देने आए थे। तब उसे देख राज बब्बर ने उनसे कहा था- ‘इसी को फिल्में मिलेंगी। तब हम दोनों इनके सेक्रेट्री बन जाएंगे।’ पर तब यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स के किसी निर्माता, निर्देशक ने किसी भी चुने गए लड़के-लड़कियों को लांच नहीं किया। तब भी उनका अभिनय स्टेज और फिल्मों के दो पलड़ों के बीच सामंजस्य स्थापित करता रहा। दोनों ही क्षेत्रों में उन्होंने अपने अभिनय की धाक जमायी। लंबे संघर्ष के बाद उन्होंने 1977 में फिल्म ‘किस्सा कुर्सी का’ से अपना अभिनय करियर शुरू किया लेकिन, फिल्म कमाल नहीं दिखा सकी। इसके बाद ‘इंसाफ का तराजू’ में बीआर चोपड़ा ने दो नए अभिनेताओं को परदे पर उतारा।
फिल्म के मुख्य नायक दीपक पाराशर और दूसरे थे राज बब्बर । लेकिन जब फिल्म बनी और प्रदर्शित हुई तो पलड़ा राज बब्बर का ही भारी रहा। देखते ही देखते फिल्मी दुनिया पर उनका राज चलने लगा। इसके बाद फिर उनका करियर दो पलड़ों के बीच झूलता रहा यानी नायक और खलनायक।
पहली ही फिल्म में खलनायक बनने के बाद नायक बनने की कल्पना पहले विनोद खन्ना और शत्रुघ्न सिन्हा साकार कर चुके थे, लेकिन ‘इंसाफ का तराजू’ में जिस तरह का किरदार राज बब्बर ने निभाया, उस कारण वे महिला दर्शकों की नजरों से उतर चुके थे। ‘इंसाफ का तराजू’ में राज बब्बर का अभिनय इतना जीवंत था कि फिल्म की स्क्रीनिंग के समय शामिल उनकी मां घबरा-सी गई थीं। जब वे फिल्म देखकर घर जा रहे थे तो उनकी मां रोने लगीं और बोली, ‘बेटा हम कम खा लेंगे, पर तू ऐसा काम मत कर।’ लेकिन यह भूमिका उनके लिए जैकपॉट साबित हुई। आगे जाकर राज बब्बर ने ‘निकाह’, ‘आज की आवाज’, ‘आप तो ऐसे न थे’,अगर तुम न होते, ‘कलयुग’, ‘हम पांच’, आंखें, ‘दाग’, जिद्दी’ सहित बॉलीवुड की कई शानदार फिल्मों में काम किया और निगेटिव और पॉजिटिव किरदारों को बखूबी संतुलित किया। वे राजनीति में भी गए और वहां भी सफलता के झंडे गाड़े।
उनके बारे में कई अन्य रोचक जानकारियां हाल ही में उनके ऊपर आई हरीश पाठक की संपादित पुस्तक “राज बब्बर दिल में उतरता फसाना” में पढ़ी जा सकती हैं जिसे प्रलेक प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। इसमें उनके राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और बंबई के साथियों, फिल्म और राजनीति के प्रमुख पत्रकारों आदि के संस्मरण हैं जो उनकी विविधता से भरी आत्मीय छवि को प्रस्तुत करते हैं।
चलते-चलते
शाहरुख खान ने इंडिया टीवी के प्रसिद्ध कार्यक्रम आप की अदालत में बताया था कि वे बचपन में राज बब्बर की गोद में घूमते थे। दरअसल शाहरुख खान के पिता राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) में कैंटीन चलाते थे। राज बब्बर, रोहिणी हट्टंगड़ी, सुरेखा सीकरी, मनोहर सिंह, अजीत बच्छानी आदि जो भी कलाकार उस समय वहां प्रशिक्षण ले रहे थे, कैंटीन में आकर बैठते थे और शाहरुख खान दिनभर इन कलाकारों की गोद में घूमते रहते थे।
