• November 22, 2024

होली के अवसर पर बिहार इस स्थान पर मनाया जाता है ”मातम”, नहीं जलते पांच गाँवों में चूल्हे, जानिए क्या है वजह ?

 होली के अवसर पर बिहार इस स्थान पर मनाया जाता है ”मातम”, नहीं जलते पांच गाँवों में चूल्हे, जानिए क्या है वजह ?

नालंदा : होली का नाम लेते ही हमारा चेहरा खिल उठता है। होली में रंगो की चमक, अपनों से मिलने का उत्साह और नए साल की शुरुआत के साथ जुड़ती जाती आशाए इस त्यौहार को बहुत ख़ुशहाल बना देती है। देश भर में अलग – अलग स्थानों विभन्न प्रकार से होली मनाई जाती है। लेकिन होली की हुड़दंग देश के कोने – कोने में देखने को मिलता है। लेकिन भारत में ही एक ऐसा भी स्थान है जहां होली के दिन मातम मनाया जाता है। इस दिन न तो कोई होली के रंगो में सराबोर होता है और न ही कोई हुड़दंग होती है। लेकिन अब बड़ा सवाल ये है आखिर ऐसा होता क्यों है। ऐसा करने के पीछे की क्या वजह है ? क्यों और कैसे शुरू हुई ये परंपरा ? आइए जानते है

दरअसल, बिहार के नालंदा जिले में सदर प्रखंड बिहारशरीफ से लगने वाले पांच गांवों में रिवाज है कि, होली के दिन यहाँ के लोग किसी भी हुड़दंग नहीं मनाते है। सदर प्रखंड बिहार शरीफ से लगे इन पांच गांव पतुआना, बासवन बीघा, ढिबरापर, नकतपुरा और डेढ़धरा गांव में होली पर सन्नाटा रहता है। जब इन गांवों में रहने वाले लोगों ऐसा करने के पीछे की वजह को पूछा गया तो उन्होंने बताया कि, ”होली के दिन न रंग उड़ते है न फगुआ के गीत सुनाई देते है। ग्रामीण मांस मदिरा का सेवन भी नहीं करते है। शुद्ध शाकाहारी खाना खाने है, वो भी बासी (पिछले दिन का बचा हुआ खाना).”होली के दिन सिर्फ गलत काम ही होता है.भगवान सोचते है कि हमारा नाम लेने वाला कोई नहीं है। इसलिए होली का दिन हम लोग चुने कि भगवान का नाम लेंगे. शराब, मांस से परहेज करते है. सिर्फ हम लोग राम नाम का अखंड पाठ करते है ”

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कैसे मनायी जाती है इन पांच गाँवों में मातम की होली ?

स्थानीय निवासियों के अनुसार, ये परंपरा 51 सालों से चलती आ रही है। होली के दिन सभी ग्रामीण भक्ति के रस में डूबे रहते है। गांव में एक अखंड कीर्तन का आयोजन होता है, सुबह से शाम तक लोग भगवान को याद करते है और वर्षों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन करते है। ग्रामीण धार्मिक अनुष्ठान की शुरुआत से पहले ही मीठा भोजन तैयार कर लेते हैं। जब तक कीर्तन खत्म नहीं हो जाता है, तब तक घरों में चूल्हा जलाना और धुआं करना वर्जित रहता है। इसके बाद ग्रामीण होली के दूसरे दिन यानी अगली सुबह होली खेलते है और एक दूसरे को रंग लगाते है।

ऐसा करने के पीछे क्या है मान्यता ?

इन पांचो गाँवों में होली न मनाने की वजह को लेकर जब हमने सवाल किया तो ग्रामीणों ने बताया कि, ”उनके गांव में एक बाबा सिद्ध पुरूष थे। जब भी गाँव में किसी शख्स को कोई समस्या होती है तो गाँव के सभी लोग उनके पास ही जाते है। ऐसे एक बार होली के अवसर पर गांव में विवाद और लड़ाई झगड़ा बढ़ने होते, जिसकी वजह से त्यौहार पर माहौल खराब हो जाय करता। इस मुश्किल से छुटकारा दिलाने के लिए बाबा ने हल निकाने के लिेए कहा, त्योहार पर नशा मत करो, भगवान की भक्ति करो, भगवान को याद करो. नशा करने से अच्छा है, त्योहार पर दिन भर राम नाम का अखंड पाठ करो, भजन कीर्तन करो. जिससे जीवन में शांति और समृद्ध आएगी.” तब से यहां के लोग होली के मौके पर शांत , रंग से दूर रहकर होली मनाते है। ग्रामीण बताते है कि, बाबा के निधन को तकरीबन 20 साल हो गए है।

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