बिहार चुनाव में मायावती का दांव: हाथी चलेगा या फिर बिखरेगा बहुजन वोट?
10 नवंबर 2025, पटना: बिहार की सियासी धरती गरम है, जहां बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे चरण का मतदान कल से शुरू हो रहा है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने कैमूर के भभुआ से अभियान की कमान संभाली है, दलित-मुस्लिम-पिछड़ा फॉर्मूले के साथ। सभी 243 सीटों पर अकेले उतरकर वह NDA और महागठबंधन को चुनौती दे रही हैं, वादा कर रही हैं बेरोजगारी-पलायन मुक्त बिहार का। लेकिन क्या UP का ‘हाथी’ यहां भी दहाड़ेगा? या वोटों का बिखराव बसपा को किंगमेकर बनाने से रोकेगा? मायावती की रैलियां भीड़ तो जुटा रही हैं, पर क्या यह शोर जीत में बदलेगा? इस रिपोर्ट में हम खंगालेंगे बसपा की रणनीति, वोट बैंक की ताकत और चुनावी समीकरणों की उलझन।
अभियान की शुरुआत: भभुआ से दलित-मुस्लिम-पिछड़ा का नया फॉर्मूला
मायावती ने 6 नवंबर को कैमूर के भभुआ में अपनी पहली रैली से बिहार चुनावी सफर शुरू किया, जहां उन्होंने PDA—पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक—के नाम पर वोट एकजुट करने का ऐलान किया। बसपा ने सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, बिना किसी गठबंधन के, जो 2020 के 75 सीटों से बड़ा दांव है। मायावती ने कांग्रेस-भाजपा पर हमला बोला, कहा कि उनकी पूंजीवादी नीतियां गरीबों को हाशिए पर धकेल रही हैं। रैली में भारी भीड़ जुटने से पार्टी का दावा मजबूत हुआ कि UP मॉडल—दलितों के लिए मायावती सरकार के विकास कार्य—यहां दोहराया जाएगा। आकाश आनंद जैसे युवा नेता बूथ स्तर पर सक्रिय हैं, खासकर यूपी बॉर्डर वाले जिलों में। लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं, अकेले लड़ना BJP को फायदा पहुंचा सकता है, जहां दलित वोट बंटेंगे। मायावती ने राहुल गांधी पर आरक्षण खत्म करने का आरोप लगाया, बाबा साहब के अधिकारों की रक्षा का वादा किया। यह फॉर्मूला अगर चला, तो बसपा 10-12 सीटें निकाल सकती है, लेकिन वोट शेयर 5% से ऊपर ले जाना चुनौती है। रैलियों की सीरीज से पार्टी का जोश हाई है, पर ग्रामीण इलाकों में पहुंच अभी सीमित।
वोट बैंक पर फोकस: 25 सीटों पर मजबूत पकड़, किंगमेकर की उम्मीद
बसपा का सबसे मजबूत आधार यूपी से सटे जिलों—गोपालगंज, कैमूर, चंपारण, सिवान, बक्सर—में है, जहां दलित (18%), मुस्लिम (17%) और पिछड़े (36%) की आबादी भारी है। पार्टी ने यहां रणनीतिक उम्मीदवार उतारे, जैसे कैमूर में अनिल पासवान, जो 2020 में 25,000 वोट लाए थे। मायावती की रैलियां स्थानीय समर्थन बढ़ा रही हैं; आकाश आनंद ने 5,500 गांवों का दौरा किया। बसपा का टारगेट 25-30 सीटें, लेकिन रियलिस्टिक अनुमान 10-12 है। हालिया ओपिनियन पोल्स में दलित वोटों का 20% बिखराव दिखा, जो RJD-Congress को फायदा दे रहा। मायावती ने विशाल रैली में कहा, ‘दलित वोट बिखरना विकास की बाधा है’, जातिवाद पर चोट की। पार्टी किंगमेकर बनने की फिराक में, ताकि पोस्ट-पोल NDA या महागठबंधन पर दबाव बना सके। लेकिन BJP की दलित रणनीति—जैसे रविदास कम्युनिटी को लुभाना—बाधा। X पर #BiharElection2025 ट्रेंडिंग है, जहां बसपा समर्थक PDA यूनिटी की बात कर रहे। अगर मुस्लिम वोट शिफ्ट हुए, तो 20 सीटों पर असर पड़ेगा, लेकिन फिलहाल शोर ज्यादा, असर कम।
वादे और चुनौतियां: आरक्षण से पलायन मुक्ति तक, क्या बनेगी कहानी?
मायावती ने वादा किया—आबादी अनुपात में आरक्षण, OBC कोटा 27% बढ़ाना, बिहार को पलायन-बेरोजगारी से मुक्त करना। उन्होंने कहा, ‘बसपा ही बाबा साहब की सच्ची वारिस’, किसान-मजदूरों के लिए भूमि सुधार का ऐलान। लेकिन चुनौतियां बड़ी: बिहार कास्ट सर्वे के बाद जाति राजनीति हाई है, जहां JD(U)-RJD का MY (मुस्लिम-यादव) फॉर्मूला मजबूत। प्राशांत किशोर की जन सुराज जैसी नई पार्टियां वोट काट रही। बसपा का वोट शेयर 2020 के 1.5% से ऊपर जाना मुश्किल, खासकर जब BJP 20 सीटों पर फायदा उठा रही। मायावती की रणनीति PDA यूनिटी पर टिकी, लेकिन कांग्रेस का रविदास लीडरशिप चैलेंज। चुनावी समीकरणों में बेरोजगारी-माइग्रेशन मुख्य मुद्दा, जहां बसपा का मैनिफेस्टो जॉब क्रिएशन पर फोकस्ड। अगर 10+ सीटें मिलीं, तो किंगमेकर रोल पक्का, लेकिन 5 से कम तो संघर्ष की कहानी। X पोस्ट्स में समर्थक उत्साही, लेकिन आलोचक बिखरे वोटों पर सवाल। यह दांव बिहार को नई बहुजन धारा दे सकता है, या फिर सियासी हलचल मात्र। नतीजे तय करेंगे।