चंडीगढ़ पर सस्पेंस खत्म? गृह मंत्रालय का ऐलान जो पंजाब-हरियाणा की राजनीति को ठंडा कर देगा
25 नवंबर 2025, नई दिल्ली: चंडीगढ़, वो शहर जो पंजाब और हरियाणा का साझा दिल है। आखिरकार केंद्र सरकार ने खोला राज़ – शीत सत्र में कोई बड़ा बदलाव नहीं। लेकिन अटकलों का तूफान क्यों उठा? संविधान संशोधन बिल की चुपके से लिस्टिंग, आर्टिकल 240 का नाम, पंजाब में हंगामा। क्या ये सिर्फ प्रशासनिक सुधार था, या राज्यों के अधिकारों पर डाका? राजनीतिक दलों ने चेतावनी दी, सोशल मीडिया गरमाया। गृह मंत्रालय ने कहा – चिंता मत करो, बिल नहीं आएगा। फिर भी सवाल बाकी: कब होगा फैसला? और अगर हुआ तो क्या होगा चंडीगढ़ का भविष्य?
संशोधन बिल ने क्यों जगाई पुरानी आग?
1966 का पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, जब चंडीगढ़ दोनों राज्यों की राजधानी बना। लेकिन केंद्र का नियंत्रण हमेशा विवादास्पद रहा। 21 नवंबर को लोकसभा-राज्यसभा बुलेटिन में चुपचाप लिस्ट हो गया संविधान (131वां संशोधन) बिल, 2025। प्रस्ताव – चंडीगढ़ को आर्टिकल 240 के तहत लाना, जहाँ राष्ट्रपति सीधे नियम बना सकें। वर्तमान में पंजाब गवर्नर ही एडमिनिस्ट्रेटर हैं, लेकिन ये बदलाव लेफ्टिनेंट गवर्नर की नियुक्ति का रास्ता खोल सकता था। पंजाब में AAP, कांग्रेस और अकाली दल ने तीखा विरोध किया। सुखबीर बादल ने कहा, “ये पंजाब विरोधी बिल, फेडरल स्ट्रक्चर पर हमला।” जयराम रमेश ने ट्वीट किया, “फर्स्ट अन्नाउंस, सेकंड थिंक – मोदी सरकार का नया फॉर्मूला।” हरियाणा में भी BJP नेताओं ने दूरी बनाई। सोशल मीडिया पर #SaveChandigarhPunjab ट्रेंड, पुराने फॉल्ट लाइन्स फिर उभरे। ये सिर्फ बिल नहीं, राज्यों के अधिकारों की जंग थी। केंद्र की चुप्पी ने आग को भड़काया, लेकिन जल्दी ही स्पष्टीकरण आया।
शीत सत्र में बिल नहीं, सिर्फ विचाराधीन
सोमवार को गृह मंत्रालय ने आधिकारिक बयान जारी कर हलचल मचा दी। “चंडीगढ़ के लिए कोई बिल शीतकालीन सत्र में लाने का इरादा नहीं।” मंत्रालय ने साफ कहा – प्रस्ताव सिर्फ सेंट्रल लॉ-मेकिंग प्रोसेस को सरल बनाने का है, प्रशासनिक ढांचे में बदलाव का नहीं। “ये पंजाब-हरियाणा के बीच पारंपरिक व्यवस्था को प्रभावित नहीं करेगा। कोई चिंता की जरूरत नहीं।” फैसला सभी स्टेकहोल्डर्स से सलाह के बाद, चंडीगढ़ के हित में। वर्तमान व्यवस्था बरकरार – पंजाब गवर्नर ही एडमिनिस्ट्रेटर। ये स्पष्टीकरण पंजाब BJP चीफ सुनील जाखड़ की मुलाकात के बाद आया, जिन्होंने अमित शाह से बात की। द हिंदू और बिजनेस टुडे की रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये कदम राजनीतिक दबाव में लिया गया। अब सवाल ये कि विचाराधीन चरण कब खत्म होगा? और अगर बिल आया तो क्या होगा? फिलहाल ये ऐलान तनाव कम करने का बड़ा कदम।
अब क्या होगा चंडीगढ़ का भविष्य?
मंत्रालय के बयान के बाद कांग्रेस ने तंज कसा – “फर्स्ट अन्नाउंस, सेकंड थिंक।” लेकिन AAP और अकाली दल ने इसे सतर्कता बरतने की चेतावनी दी। पंजाब CM भगवंत मान ने कहा, “हम नजर रखेंगे।” हरियाणा में भी सांस लेना आसान हुआ। विशेषज्ञों का मानना – ये विवाद फेडरल स्ट्रक्चर की नाजुकता दिखाता है। चंडीगढ़, जो 1984 से एडवाइजर सिस्टम पर चल रहा, अब लेफ्टिनेंट गवर्नर की ओर शिफ्ट हो सकता था, जैसे अंडमान या लक्षद्वीप। लेकिन केंद्र ने सभी को आश्वस्त किया – सहमति बिना आगे नहीं। अब नजरें भविष्य पर: क्या ये प्रस्ताव दफन हो जाएगा, या अगले सत्र में लौटेगा? राजनीतिक गलियारों में चर्चा – ये सिर्फ शुरुआत है। पंजाब-हरियाणा के बीच पुराने मतभेद फिर उभर सकते हैं। फिलहाल राहत की सांस, लेकिन सतर्कता बरतनी होगी।