ब्रिटेन का गुस्सा फूटा: बांग्लादेश में हिंदुओं पर हिंसा पर संसद ने लगाई फटकार, यूनुस सरकार को लोकतंत्र का सबक
लंदन, 17 अक्टूबर 2025: बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर बढ़ते अत्याचार ने वैश्विक मंचों पर हलचल मचा दी है। ब्रिटिश संसद में गुरुवार को इस मुद्दे पर जोरदार बहस हुई, जहां विपक्षी सांसद ने यूनुस सरकार को कटघरे में खड़ा किया। एक रिपोर्ट ने खुलासा किया कि अगस्त 2024 से अब तक 2,000 से ज्यादा हमले हुए, जिसमें मंदिर तोड़े गए और संपत्तियां जलाई गईं। लेकिन क्या ब्रिटेन की निंदा सिर्फ शब्दों तक सीमित रहेगी? या यह अंतरराष्ट्रीय दबाव बांग्लादेश को अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए मजबूर कर देगा? दिवाली की पूर्व संध्या पर यह बहस न केवल हिंदू समुदाय के दर्द को उजागर करती है, बल्कि लोकतंत्र की असली परीक्षा भी बता रही है। आइए, जानते हैं संसद की इस गरमागरम चर्चा की पूरी कहानी, जो दक्षिण एशिया की राजनीति को नई दिशा दे सकती है।
संसद में उठा मुद्दा: बॉब ब्लैकमैन की रिपोर्ट ने खोला बांग्लादेश का काला पन्ना
ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स में गुरुवार को कंजर्वेटिव सांसद बॉब ब्लैकमैन ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रही हिंसा का मुद्दा जोरदार ढंग से उठाया। वे ब्रिटिश हिंदुओं के लिए ऑल-पार्टी पार्लियामेंट्री ग्रुप (APPG) के चेयरमैन हैं और ‘इनसाइट यूके’ की रिपोर्ट पेश की, जो अगस्त 2024 में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद से हिंदू समुदाय पर अत्याचारों का खुलासा करती है। रिपोर्ट में 2,000 से ज्यादा घटनाओं का जिक्र है—मंदिरों पर हमले, संपत्तियों में आगजनी, जबरन धर्मांतरण और हत्याएं। ब्लैकमैन ने कहा, “दिवाली का उत्सव दुनिया भर में खुशियां बांटेगा, लेकिन बांग्लादेश में हिंदू डर के साए में जी रहे हैं। यह जातीय सफाई का प्रयास है।” उन्होंने पुजारियों की गिरफ्तारी और 63 भिक्षुओं को देश में प्रवेश न देने का उदाहरण दिया। यह रिपोर्ट दिवाली से ठीक पहले जारी हुई, जो हिंदू समुदाय की चिंताओं को राष्ट्रीय स्तर पर ले आई। ब्लैकमैन ने सरकार से मांग की कि विदेश मंत्री एक बयान दें और यूनुस सरकार पर दबाव डालें। X पर INSIGHT UK ने ब्लैकमैन की स्पीच का वीडियो शेयर किया, जो वायरल हो गया। यह बहस न केवल ब्रिटेन के हिंदू समुदाय की आवाज बनी, बल्कि वैश्विक स्तर पर अल्पसंख्यक अधिकारों पर बहस छेड़ दी। कुल मिलाकर, ब्लैकमैन का यह कदम बांग्लादेशी हिंदुओं के लिए उम्मीद की किरण साबित हो सकता है।
ब्रिटिश सरकार की निंदा: हिंसा पर फटकार, लेकिन कड़ी कार्रवाई का वादा अधूरा
हाउस ऑफ कॉमन्स के लीडर सर एलन कैंपबेल ने लेबर सरकार की ओर से हिंसा की कड़ी निंदा की। उन्होंने कहा, “हम धार्मिक घृणा या हिंसा की हर घटना की कड़ी भर्त्सना करते हैं। बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा और शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक संक्रमण के लिए हम प्रतिबद्ध हैं।” कैंपबेल ने धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा पर जोर दिया और कहा कि ब्रिटेन डाक्का की अंतरिम सरकार से लगातार संपर्क में है। लेकिन ब्लैकमैन की मांग—विदेश मंत्री का आधिकारिक बयान और ठोस कार्रवाई—पर वे चुप रहे। कैंपबेल ने मानवीय संकट संबोधित करने का उल्लेख किया, लेकिन विशिष्ट प्रतिबद्धता न देने से विपक्ष नाराज। कंजर्वेटिव सांसद प्रीति पटेल ने इसे “व्यर्थ और भयानक” करार दिया और यूनुस सरकार से हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपील की। विदेश कार्यालय मंत्री कैथरीन वेस्ट ने कहा कि वे यूनुस से मिले और अल्पसंख्यकों के समर्थन का आश्वासन लिया। PTI और ANI की रिपोर्ट्स में यह स्पष्ट है कि ब्रिटेन मानवाधिकारों की रक्षा के लिए सक्रिय है। X पर #HindusUnderAttackInBangladesh ट्रेंड कर रहा, जहां यूके के हिंदू संगठन सरकार पर दबाव बना रहे। यह प्रतिक्रिया बांग्लादेशी हिंदुओं के लिए नैतिक समर्थन देती है, लेकिन व्यावहारिक कदमों की कमी से सवाल उठ रहे। कुल मिलाकर, ब्रिटेन ने लोकतंत्र का पाठ पढ़ाया, लेकिन अमल का इंतजार बाकी।
वैश्विक संदर्भ: भारत की चिंताओं से जुड़ी ब्रिटेन की अपील, भविष्य में क्या?
ब्रिटेन की निंदा भारत की चिंताओं से जुड़ती है, जहां विदेश मंत्रालय ने यूनुस सरकार से हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा। यूएस कांग्रेसमैन ब्रैड शर्मन ने भी यूनुस पर अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का दायित्व डाला। यह बयान हसीना सरकार के पतन के बाद बढ़ी अस्थिरता को दर्शाता है, जहां हिंदू आबादी पर निशाना साधा जा रहा। ब्लैकमैन ने इसे “जातीय सफाई” बताया, जो संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद को भी चिंतित कर रहा। ब्रिटेन ने डाक्का के साथ मानवीय सहायता पर फोकस किया, लेकिन पटेल ने सुझाव दिया कि कूटनीतिक दबाव बढ़े। X पर INSIGHT UK ने यूनुस सरकार, यूएन और यूके दूतावास को टैग कर कार्रवाई की मांग की। भविष्य में, ब्रिटेन की यह पहल अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा सकती है, खासकर दिवाली पर जब वैश्विक हिंदू समुदाय एकजुट हो। लेकिन अगर ठोस कदम न उठे, तो यह सिर्फ शब्दों का खेल रह जाएगा। कुल मिलाकर, यह घटना दक्षिण एशिया में अल्पसंख्यक अधिकारों के लिए नया मोर्चा खोलती है, जहां लोकतंत्र की परीक्षा जारी रहेगी।
