बॉक्स ऑफिस का पहला किंग: बिहार से निकला सिनेमा का ‘दादा मुनि’ अशोक कुमार
मुंबई, 13 अक्टूबर 2025: जब सिनेमाघरों में भीड़ जुटना सपना था, तब एक बिहारी ने अपनी अदाकारी से बॉलीवुड को हिलाकर रख दिया। बिहार के भागलपुर से निकले अशोक कुमार, जिन्हें ‘दादा मुनि’ कहा गया, हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार बने। उनकी फिल्म ‘किस्मत’ ने 1943 में 1 करोड़ का आंकड़ा पार कर इतिहास रचा। 275 से ज्यादा फिल्मों में काम करने वाले इस कलाकार ने 63 साल तक सिनेमा को समृद्ध किया। आज उनकी 114वीं जयंती पर उनकी कहानी प्रेरणा देती है। कैसे एक वकील का बेटा बना बॉक्स ऑफिस का बादशाह? आइए, जानते हैं उनकी अनकही दास्तान…
बिहार से बॉलीवुड: वकालत छोड़ सिनेमा की राह
13 अक्टूबर 1911 को भागलपुर में जन्मे कुमुद लाल गांगुली, यानी अशोक कुमार, एक बंगाली परिवार से थे। पिता प्रोफेशनल वकील थे, जो चाहते थे कि बेटा भी वकालत करे। लेकिन अशोक के दिल में सिनेमा की चिंगारी थी। 1934 में बॉम्बे टॉकीज से करियर शुरू किया, जब हिंदी सिनेमा अपने शुरुआती दौर में था। उनकी सादगी, गहरी आवाज और नैचुरल एक्टिंग ने दर्शकों को दीवाना बना दिया। 1936 की ‘जन्मभूमि’ और ‘अछूत कन्या’ से वे स्टार बन गए। अशोक ने न सिर्फ अभिनय, बल्कि निर्देशन और निर्माण में भी हाथ आजमाया। 1997 तक, 63 साल के करियर में उन्होंने हर किरदार को जीवंत किया। उनकी बहुमुखी प्रतिभा ने उन्हें ‘दादा मुनि’ का खिताब दिलाया। बिहार के इस लाल ने साबित किया कि सपनों के पीछे मेहनत हो तो कोई मुकाम असंभव नहीं।
‘किस्मत’ ने रचा इतिहास: बॉक्स ऑफिस का पहला बादशाह
1943 में रिलीज ‘किस्मत’ ने हिंदी सिनेमा में तहलका मचा दिया। उस दौर में, जब फिल्में लाखों में कमाती थीं, इसने 1 करोड़ का आंकड़ा पार किया—आज के हिसाब से करोड़ों की कमाई। अशोक कुमार का किरदार, एक चोर का, दर्शकों को भाया। फिल्म 3 साल तक सिनेमाघरों में चली, कोलकाता के न्यू थिएटर्स में रिकॉर्ड 187 हफ्ते। इसने अशोक को बॉक्स ऑफिस का पहला किंग बनाया। उनकी ‘बंदन’ (1940), ‘महल’ (1949), और ‘संगम’ (1964) ने भी धूम मचाई। 275 फिल्मों में हीरो, विलेन, पिता, भाई—हर रोल में छा गए। ‘खिलाड़ी’ और ‘अफसाना’ में उनकी इमोशनल डेप्थ ने क्रिटिक्स को हैरान किया। 1968 में ‘आशीर्वाद’ के लिए बेस्ट एक्टर और 1988 में दादा साहब फाल्के अवॉर्ड ने उनके योगदान को सम्मानित किया। अशोक की मेहनत ने सिनेमा को नई ऊंचाइयां दीं।
प्रेरणा का स्रोत: दादा मुनि की अमर विरासत
अशोक कुमार ने सिर्फ अभिनय ही नहीं, सिनेमा को नया आकार दिया। बॉम्बे टॉकीज के प्रोडक्शन हेड बनकर ‘नील कमल’, ‘महल’ जैसी फिल्में बनाईं। टीवी पर ‘हम लोग’ और ‘बुनियाद’ जैसे सीरियल्स के जरिए छोटे पर्दे को भी छुआ। उनकी ‘धर्म पुत्र’ (1961) और ‘कानून’ (1960) सामाजिक मुद्दों पर थीं, जो आज भी प्रासंगिक। दादा मुनि ने साबित किया कि छोटे शहर से निकलकर भी बड़े सपने पूरे हो सकते हैं। 10 दिसंबर 2001 को उनका निधन हुआ, लेकिन ‘सितारों से आगे’ और ‘रागिनी’ जैसे गाने आज भी गूंजते। उनकी 114वीं जयंती पर इंडिया टीवी ने उन्हें याद किया। बिहार के इस सुपरस्टार ने सिखाया—सपने वो नहीं जो सोते वक्त देखे, बल्कि जो मेहनत से सच हों। क्या आज का सिनेमा उनकी विरासत को आगे ले जाएगा?
