योगी करेंगे मोदी का बेड़ा पार : नवेद शिकोह
कटहल के पेड़ पर चढ़कर कटहल तोड़ने और आंधी में पके फलों के गिरने पर उन्हें बटोरने में अंतर है। कटहल तोड़ने में मेहनत और संघर्ष करना पड़ता है। आंधी में गिरे पके फलों को तो कोई भी बटोर सकता है। देश में पार्टी की आंधी चल रही हो तो प्रदेश नेतृत्व को जीत का ज्यादा श्रय नहीं मिलता।
भाजपा कर्नाटक नहीं हारती तब
यूपी निकाय चुनाव में पार्टी की बंपर जीत को भी भाजपा की देशव्यापी आंधी माना जाता। लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी हिजाब वाले कर्नाटक में भाजपा की बुरी हार के बाद यूपी निकाय चुनाव की जीत को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गुड गवर्नेंस, कुशल चुनावी प्रबंधन और बेमिसाल मेहनत की जीत माना जा रहा है। यही वजह है कि चर्चाएं होने लगी हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को तीसरी बार सत्ता दिलाने में योगी के करिश्मे पर ही भरोसा किया जा सकता है। जिस तरह निकाय चुनाव मे विपक्ष योगी की आंधी में तिनकों की तरह बिखर गया सा लगा, लोकसभा चुनाव में भी निकाय चुनाव जैसा हाल रहा तो आश्चर्य नहीं कि योगी आदित्यनाथ यूपी की अस्सी की अस्सी सीटों की जीत भाजपा की झोली में डाल दें। और अन्य राज्यों में यदि भाजपा को सीटों का नुक़सान भी हो तो उस कमी पेशी को यूपी की बंपर जीत कवर कर ले जाए।
पिछले सवा छह वर्षों से यूपी के हर चुनाव में भाजपा का विजय रथ जिस तरह दौड़ रहा है और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता बढ़ती जा रही उससे साबित हो गया है कि भाजपा का सबसे मजबूत किला उत्तर प्रदेश है और नरेंद्र मोदी के बाद योगी देश के सबसे अधिक जनाधार वाले भाजपा नेता हैं।
2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने करीब साढ़े तीन दशक का रिकार्ड तोड़ कर किसी मुख्यमंत्री के चेहरे पर दूसरी बार चुनाव जीता था। लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा विरोधी वोटरों की एकजुटता ने समाजपार्टी पार्टी के गठबंधन का वोट शेयर 37 फीसद तक पंहुचा दिया था। ये बात भविष्य के लिए खतरे की घंटी थी। लेकिन विधानसभा चुनाव के सवा साल बाद विरोधी वोटरों का भाजपा को हराने का जज्बा ढीला पड़ गया। सपा का साथ छोड़कर मुस्लिम समाज का एक तबका भी भाजपा पर विश्वास जताता दिखा। विरोधी वोट बिखरा और कोई सपा के साथ रहा तो कहीं बसपा का समर्थन, कहीं कांग्रेस के साथ, कहीं एआईएमआईएम पर विश्वास तो कहीं आप की उपस्थिति ने विरोधी वोटरों के केंद्र सपा को कमजोर कर दिया। इसके पीछे यूपी भाजपा की कुशल चुनावी रणनीति बताया जा रहा है। मुस्लिम समाज सहित हर जाति-,धर्म के लोगों का विश्वास जीतने और माफियाओं से मुक्ति, बेहतर कानून व्यवस्था का असर था कि सरकार विरोध में लामबंद होने का जज्बा निकाय चुनाव में नहीं दिखा।
यदि उत्तर प्रदेश में भाजपा की ऐसी ही कामयाबी जारी रही तो ताजुब नहीं कि पार्टी यहां की अस्सी की अस्सी सीटें जीत ले!
हांलांकि निकाय चुनाव में हार का सामना करने वाली समाजवादी पार्टी को अब ये अहसास होने लगा है कि मुस्लिम समाज में ना तो वोट करने की एकजुटता रही और ना ही ये वर्ग उसे इकलौता विकल्प मान रहा। वो कांग्रेस, बसपा और असदुद्दीन ओवेसी में भी दिलचस्पी ले रहा है। ऐसे में सपा को अपने बिखरते वोट बैंक की मजबूरी में दूसरे विपक्षी दलों को साथ लाने के लाए झुकना पड़ सकता है। बसपा सुप्रीमो मायावती तो पहले ही एलान कर चुकी हैं कि उनकी पार्टी अकेले लोकसभा चुनाव लड़ेगी। ऐसे में समाजवादी पार्टी कांग्रेस के साथ समझौता करें तभी आगामी लोकसभा चुनाव में यूपी में योगी की लहर के सामने मजबूत विपक्षी गठबंधन ही लड़ने की स्थिति में नजर आ सकता है। कर्नाटक की जीत के बाद कांग्रेस उत्साही है। बताया जा रहा है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष भारत छोड़ो यात्रा की तर्ज पर यूपी के दलित इलाकों में यात्रा निकालेंगे और यहां दलित समाज को लुभाने की कोशिश की जाएगी। सपा के ऐसे शक्ति प्रदर्शन के बाद सपा-कांगेस गठबंधन पर बातचीत शुरू होगी।
हांलांकि अतीत में यूपी में सपा-कांग्रेस और सपा-भाजपा दोनों ही गठबंधन फेल हो चुके हैं।