यूपी में कौन चाहता है ब्राह्मण बनाम यादव के बीच संघर्ष, किसे होगा राजनीतिक फायदा?
21 जून 2025 को इटावा के दांदरपुर गांव में श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन हुआ, जिसमें कथावाचक मुकुट मणि यादव और संत सिंह यादव शामिल थे। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि मुकुट मणि ने अपनी यादव जाति छिपाकर खुद को ब्राह्मण (मुकुट मणि अग्निहोत्री) बताया और दो आधार कार्ड इस्तेमाल किए। इस पर कुछ ब्राह्मण युवकों ने उनकी चोटी काटी, नाक रगड़वाने को मजबूर किया, और कथित तौर पर अपमानजनक व्यवहार किया। वायरल वीडियो में यह दिखा कि भीड़ उन्हें “दलित” कहकर अपमानित कर रही थी, हालांकि मुकुट मणि ने स्पष्ट किया कि वे यादव हैं। दूसरी ओर, आयोजक जयप्रकाश तिवारी की पत्नी रेनू तिवारी ने कथावाचकों पर छेड़खानी का आरोप लगाया। पुलिस ने चार आरोपियों—अतुल, मनीष, पप्पू बाबा, और डीलर—को गिरफ्तार किया, और कथावाचकों के खिलाफ भी फर्जी आधार कार्ड और छेड़खानी के आरोप में FIR दर्ज की। यह मामला अब जातिगत गोलबंदी का रूप ले चुका है।
राजनीतिक गोलबंदी: सपा और बीजेपी की रणनीति
इस घटना ने उत्तर प्रदेश की सियासत को गरमा दिया। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसे “जातिगत घमंड” और “पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) के दमन” का मामला बताकर कथावाचकों को लखनऊ बुलाया और प्रत्येक को 21 हजार रुपये व सपा की ओर से 51 हजार रुपये की सहायता दी। अखिलेश ने बीजेपी पर ब्राह्मणवादी मानसिकता को बढ़ावा देने का आरोप लगाया और तीन दिन में कार्रवाई न होने पर आंदोलन की धमकी दी। दूसरी ओर, बीजेपी के मंत्री जयवीर सिंह ने अखिलेश पर बिना तथ्यों की जांच के इसे जातीय रंग देने का आरोप लगाया, दावा किया कि सपा समाज को बांटकर वोट हासिल करना चाहती है। यूपी ब्राह्मण महासभा ने भी कथावाचकों पर छेड़खानी और धार्मिक भावनाएं भड़काने का आरोप लगाते हुए निष्पक्ष जांच की मांग की। यह सियासी टकराव 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले ब्राह्मण और यादव वोटबैंक को साधने की रणनीति को दर्शाता है।
कौन चाहता है ब्राह्मण-यादव संघर्ष?
इस विवाद को बढ़ाने में कई पक्षों की भूमिका दिखती है। सपा ने इसे ब्राह्मण बनाम यादव का मुद्दा बनाकर अपने पीडीए फॉर्मूले को मजबूत करने की कोशिश की है, जिसका लक्ष्य यादव (9-11%), दलित, और अल्पसंख्यक वोटों को एकजुट करना है। X पर कुछ पोस्ट्स में दावा किया गया कि अखिलेश ने इस घटना को जानबूझकर बढ़ाया ताकि ब्राह्मणों को निशाना बनाकर यादव वोटों को गोलबंद किया जाए। दूसरी ओर, बीजेपी पर आरोप है कि वह इस मामले को दबाकर ब्राह्मण वोट (12-14%) को सहेजना चाहती है, जो यूपी की 115 सीटों पर प्रभावशाली हैं। कुछ X पोस्ट्स में बीजेपी पर देवरिया और इटावा की घटनाओं को जातीय रंग देकर असल अपराधियों को बचाने का आरोप लगा। हिंदूवादी संगठनों और अहीर रेजिमेंट जैसे समूहों की सक्रियता ने भी तनाव बढ़ाया, जिससे पुलिस को हवाई फायरिंग करनी पड़ी। यह साफ है कि दोनों पक्ष इस तनाव को अपने सियासी लाभ के लिए भुनाना चाहते हैं।
किसे होगा सियासी फायदा?
यूपी में ब्राह्मण (12-14%) और यादव (9-11%) वोटर महत्वपूर्ण हैं, और दोनों समुदाय 100 से अधिक सीटों पर प्रभाव डालते हैं। सपा का पीडीए फॉर्मूला 2024 के लोकसभा चुनाव में सफल रहा, जहां उसने गैर-यादव ओबीसी और दलित वोटों के साथ 37 सीटें जीतीं। इस घटना से सपा को यादव और अन्य पिछड़े वर्गों का समर्थन मजबूत होने की उम्मीद है, लेकिन ब्राह्मण वोटों से दूरी बढ़ सकती है। दूसरी ओर, बीजेपी, जो ब्राह्मणों और सवर्णों का मजबूत आधार रखती है (2022 में 52 ब्राह्मण विधायक), इस मामले को शांत कर ब्राह्मणों को नाराज होने से बचाना चाहती है। X पर कुछ यूजर्स का मानना है कि बीजेपी को इस संघर्ष से फायदा होगा, क्योंकि यह सपा के ब्राह्मण वोटों को और कमजोर कर सकता है। हालांकि, अगर यह तनाव बढ़ता है, तो कांग्रेस और बसपा जैसे दल भी ब्राह्मण वोटों को लुभाने की कोशिश कर सकते हैं, जिससे बीजेपी को नुकसान हो सकता है।
निष्कर्ष
इटावा कथावाचक कांड ने यूपी की सियासत में ब्राह्मण-यादव तनाव को बढ़ा दिया है। सपा इसे पीडीए के दमन के रूप में पेश कर अपने वोटबैंक को मजबूत करना चाहती है, जबकि बीजेपी इसे शांत कर ब्राह्मणों को सहेजने की कोशिश में है। इस सियासी खेल में दोनों पक्षों को लाभ हो सकता है, लेकिन लंबे समय में यह सामाजिक समरसता को नुकसान पहुंचा सकता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने निष्पक्ष जांच के आदेश दिए हैं, और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी 10 दिनों में रिपोर्ट मांगी है। इस मामले का निष्पक्ष समाधान जरूरी है ताकि यूपी में जातिगत वैमनस्य न बढ़े।
