पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची का महा-पुनरीक्षण: 32 लाख लोगों की किस्मत का फैसला आज से, एसआईआर प्रक्रिया के तहत केंद्रों पर सुनवाई शुरू
कोलकाता: पश्चिम बंगाल की राजनीति और लोकतांत्रिक ढांचे के लिए शनिवार का दिन अत्यंत महत्वपूर्ण साबित होने जा रहा है। राज्य में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) के ड्राफ्ट पर आज से आधिकारिक सुनवाई की प्रक्रिया शुरू हो रही है। चुनाव आयोग द्वारा उठाए गए इस कदम का मुख्य उद्देश्य राज्य की मतदाता सूची को पूरी तरह त्रुटिहीन और पारदर्शी बनाना है। इस प्रक्रिया के पहले चरण में उन 32 लाख लोगों की सुनवाई की जाएगी, जिनके नाम विभिन्न विसंगतियों के चलते मतदाता सूची से बाहर कर दिए गए हैं। राज्य निर्वाचन आयोग ने इस विशाल कार्य को संपन्न करने के लिए व्यापक तैयारियां की हैं, जिसके तहत पूरे बंगाल में हजारों केंद्र स्थापित किए गए हैं।
3,234 केंद्रों पर होगी सुनवाई: प्रशासन ने कसी कमर
राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी (CEO) कार्यालय द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, इस सुनवाई के लिए पूरे पश्चिम बंगाल में कुल 3,234 विशेष केंद्र बनाए गए हैं। इन केंद्रों का चयन रणनीतिक रूप से किया गया है ताकि आम जनता को पहुंचने में सुविधा हो। सुनवाई की यह कार्यवाही जिला मजिस्ट्रेट (DM) कार्यालयों, उप-विभागीय कार्यालयों (SDO), विभिन्न सरकारी विभागों के भवनों के साथ-साथ स्थानीय विद्यालयों और कॉलेजों में संचालित की जाएगी। प्रशासन ने यह सुनिश्चित किया है कि सुनवाई के दौरान किसी भी प्रकार की अव्यवस्था न हो। प्रत्येक केंद्र पर सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए गए हैं और केवल अधिकृत अधिकारियों—जैसे चुनावी पंजीकरण अधिकारी (ERO), सहायक चुनावी पंजीकरण अधिकारी (ARO), बूथ स्तर के अधिकारी (BLO) और पर्यवेक्षकों—को ही केंद्र के भीतर रहने की अनुमति दी गई है।
32 लाख नामों पर लटकी तलवार: 2002 की सूची बनी आधार
इस पूरी प्रक्रिया का सबसे संवेदनशील हिस्सा उन 32 लाख लोगों की पहचान है, जिनके नाम वर्तमान मसौदा सूची में शामिल नहीं हैं। चुनाव आयोग के अधिकारियों के मुताबिक, ये वे लोग हैं जिनका रिकॉर्ड 2002 की आधारभूत मतदाता सूची में नहीं मिला था। आयोग अब इन व्यक्तियों को अपनी नागरिकता और निवास की सत्यता साबित करने का एक अंतिम अवसर दे रहा है। यदि ये लोग सुनवाई के दौरान ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करने में विफल रहते हैं, तो उनका नाम मतदाता सूची से स्थायी रूप से हटा दिया जाएगा। यह प्रक्रिया राज्य की जनसांख्यिकी और चुनावी समीकरणों को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर सकती है, यही कारण है कि इसे लेकर राजनीतिक दलों और आम नागरिकों के बीच काफी उत्सुकता और चिंता देखी जा रही है।
आधार कार्ड पर्याप्त नहीं: इन 12 दस्तावेजों की होगी जरूरत
निर्वाचन आयोग ने दस्तावेजों की वैधता को लेकर बेहद सख्त रुख अपनाया है। मुख्य चुनाव अधिकारी मनोज कुमार अग्रवाल ने स्पष्ट किया है कि पहचान और पते के प्रमाण के तौर पर 12 मान्यता प्राप्त दस्तावेजों की सूची तैयार की गई है। हालांकि, सबसे महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण ‘आधार कार्ड’ को लेकर दिया गया है। आयोग ने साफ कहा है कि आधार कार्ड को अकेले दस्तावेज के तौर पर स्वीकार नहीं किया जाएगा। मतदाताओं को आधार के साथ-साथ कोई अन्य सरकारी दस्तावेज जैसे राशन कार्ड, बिजली बिल, पासपोर्ट, बैंक पासबुक या भूमि के दस्तावेज दिखाने होंगे।
एक महत्वपूर्ण अपडेट में आयोग ने यह भी बताया कि बिहार में हाल ही में संपन्न हुई एसआईआर प्रक्रिया के दौरान तैयार की गई मतदाता सूची को भी एक मान्य दस्तावेज माना जाएगा। अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि यदि कोई भी व्यक्ति सुनवाई के दौरान नकली या जाली दस्तावेज जमा करता पाया गया, तो उसके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया जाएगा और यह एक दंडनीय अपराध माना जाएगा।
माइक्रो-ऑब्जर्वर की पैनी नजर और पारदर्शिता का संकल्प
प्रक्रिया की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए निर्वाचन आयोग ने तकनीक और कड़े निरीक्षण का सहारा लिया है। पूरी सुनवाई प्रक्रिया 4,500 से अधिक माइक्रो-ऑब्जर्वर की सीधी देखरेख में होगी। ये ऑब्जर्वर सीधे चुनाव आयोग को रिपोर्ट करेंगे ताकि स्थानीय स्तर पर किसी भी प्रकार के राजनीतिक दबाव या हेरफेर की गुंजाइश न रहे। आयोग ने प्रत्येक ईआरओ (ERO) के लिए प्रतिदिन 150 मामलों की सुनवाई पूरी करने का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है, ताकि इस विशाल कार्य को समय सीमा के भीतर पूरा किया जा सके। आयोग ने यह भी निर्देश दिया है कि एक बार सुनवाई केंद्र और नियम तय हो जाने के बाद, पूरी प्रक्रिया के दौरान उनमें कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। यह कदम सटीकता और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए उठाया गया है।
मतदाता सूची से क्यों हटे 58 लाख नाम? आंकड़ों का विश्लेषण
एसआईआर प्रक्रिया के बाद 2026 की मसौदा मतदाता सूची से कुल 58 लाख से अधिक नाम हटाए गए हैं, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। आयोग ने इन नामों को हटाने के पीछे विस्तृत कारण साझा किए हैं:
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मृतक मतदाता: लगभग 24 लाख मतदाताओं को मृत के रूप में चिह्नित किया गया है, जिनके नाम लंबे समय से सूची में बने हुए थे।
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लापता मतदाता: 12 लाख से अधिक ऐसे मतदाता पाए गए जो अपने पंजीकृत पते पर नहीं मिले। इन्हें ‘लापता’ की श्रेणी में रखा गया है।
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स्थानांतरित मतदाता: लगभग 20 लाख लोग ऐसे हैं जो स्थायी रूप से अपने पुराने निर्वाचन क्षेत्रों को छोड़कर कहीं और बस गए हैं।
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डुप्लीकेशन: लगभग 1.38 लाख नाम ऐसे थे जो तकनीकी खामियों के कारण एक से अधिक बार दर्ज थे, उन्हें अब हटा दिया गया है।
2026 विधानसभा चुनाव की तैयारी का शंखनाद
पश्चिम बंगाल में 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं और इस एसआईआर प्रक्रिया को उसी की तैयारी के रूप में देखा जा रहा है। एक स्वच्छ और अद्यतन मतदाता सूची निष्पक्ष चुनाव की पहली शर्त होती है। जिस तरह से लाखों नामों को हटाया गया है और अब उनकी सुनवाई शुरू हो रही है, उससे साफ है कि आने वाले चुनावों में ‘वोटर लिस्ट’ एक बड़ा मुद्दा बनेगी। राज्य सरकार और विपक्षी दलों की नजरें भी इस प्रक्रिया पर टिकी हैं, क्योंकि एक-एक वोट की गिनती हार और जीत के अंतर को तय करती है।
मुख्य चुनाव अधिकारी ने जनता से अपील की है कि वे अपनी बारी आने पर केंद्रों पर उपस्थित हों और वैध दस्तावेजों के साथ अपनी दावेदारी पेश करें। यह प्रक्रिया केवल नाम काटने की नहीं, बल्कि वास्तविक मतदाताओं के अधिकारों को सुरक्षित करने की भी है।