• December 24, 2024

यूनिसेफ की चाइल्ड फूड पॉवर्टी रिपोर्ट बेहद आपत्तिजनक, भारत को बदनाम करनेवाली

 यूनिसेफ की चाइल्ड फूड पॉवर्टी रिपोर्ट बेहद आपत्तिजनक, भारत को बदनाम करनेवाली

भारत में लोगों को खाने के लिए भोजन नहीं मिल रहा, लोग भूख से मर जाते हैं, कुपोषण के शिकार बच्चों की संख्या हजारों, लाखों में भी नहीं, करोड़ों में है। बच्चे पौष्टिक आहार नहीं मिलने से कई तरह की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। यह कहना है भारत के संदर्भ में यूनिसेफ की ‘‘चाइल्ड फूड पॉवर्टी’’ रिपोर्ट का। यह रिपोर्ट कहती है, गंभीर बाल खाद्य गरीबी में रहने वाले बच्चों के मामले में भारत दुनिया के सबसे खराब देशों में शामिल है, जबकि उससे अच्छी स्थिति में पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका जैसे अनेकों देश हैं।

इससे पहले हमने देखा कि कैसे वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2023 में भारत को 125 देशों में से 111वें स्थान पर रखा गया था और दुनिया को यह बताने का प्रयास हुआ था कि भारत की रैंकिंग में गिरावट हो रही है। साल 2023 की सूची में 121 देशों की रैंकिंग में भारत 107वें नंबर पर था। 2021 में 101वें और 2020 में 94वें नंबर पर, किंतु वर्तमान में भारत की रैंकिंग चार पायदान और गिर गई है। यहां भारत से कई गुना अच्छी स्थिति में पाकिस्तान (102वें), बांग्लादेश (81वें), नेपाल (69वें) और श्रीलंका (60वें) नंबर पर दिखाया गया । ठीक इसी तरह से इस रिपोर्ट के माध्यम से यूनिसेफ ने भी यह बताने का प्रयास किया है कि भारत अपने बच्चों के बीच भोजन की गरीबी को दूर नहीं कर पा रहा । भारत को लेकर रिपोर्ट इसलिए भी चौंकाती है, क्योंकि भारत की करोड़ों की बाल जनसंख्या को इसमें समाहित कर दिया गया है।

यूनिसेफ की पूरी रिपोर्ट के अध्ययन से जो निष्कर्ष निकलते हैं, वह यह हैं कि दक्षिण एशियाई देशों की सूची में भारत गंभीर बाल खाद्य गरीबी से जूझ रहा है यहां पांच वर्ष तक की आयु वाले 40 प्रतिशत तक बच्चे गंभीर बाल खाद्य गरीबी झेल रहे हैं । इसके अलावा 36 प्रतिशत बच्चे भारत में मध्यम बाल खाद्य गरीबी की चपेट में जीवन यापन करने को मजबूर हैं। यहां दोनों का योग किया जाए तब उस स्थिति में भारत में 76 प्रतिशत बच्चे उचित आहार के वंचित हैं। यहां दक्षिण एशियाई देशों की सूची में मुख्य तौर पर 07 देश शामिल किए गए हैं, जिनमें सिर्फ अफगानिस्तान को चाइल्ड फूड पॉवर्टी में भारत से पीछे रखा गया है, जबकि पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल समेत दुनिया के अनेकों देश भारत से बेहतर स्थिति में हैं।

यदि हम इस रिपोर्ट को स्वीकार करेंगे तो भारत दुनिया के उन 10 देशों में शामिल हो जाता है, जहां बच्चों को जरूरी पोषक आहार नहीं मिल पाता। विश्व में सबसे ज्यादा स्थिति सोमालिया की खराब है, वहां 63 प्रतिशत बच्चों तक उचित आहार की पहुंच नहीं है। इस क्रम में सोमालिया के बाद नाम गिनी का है, 54 प्रतिशत बच्चे यहां सही आहार मिलने के इंतजार में हैं। फिर गिनी -बिसाऊ 53 प्रतिशत, अफगानिस्तान 49 प्रतिशत, सिएरा लियोन 47 प्रतिशत, इथियोपिया 46 प्रतिशत और लाइबेरिया 43 प्रतिशत, भारत 40 प्रतिशत, पाकिस्तान 38 प्रतिशत और मॉरिटानिया 38 प्रतिशत के साथ इस सूची में हैं। जिनके कि बच्चे आहार के मामले में बहुत ही बुरे दौर से गुजर रहे हैं। किंतु यहां प्रश्न यह है, क्या यह भारत के संदर्भ में दिया गया प्रतिशत सही है?

इस संबंध में गहराई से किए गए अध्ययन के बाद ध्यान में आता है कि जिस डेटा का उपयोग यूनाइटेड नेशंस चिल्ड्रेंस फ़ंड (यूनिसेफ) अपने दावों को पुख्ता करने के लिए कर रहा है, वर्तमान में उन तथ्यों की कोई सत्यता ही नहीं है। क्योंकि यूनिसेफ भारत के संदर्भ में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस 4 और 5) का संदर्भ देता है। जबकि उसके द्वारा जारी किए गए आंकड़े एनएफएचएस 4 एवं 5 से मेल ही नहीं खाते।

इसमें भी समझने वाली बात यह है कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-4) के आंकड़े वर्ष 2015 में जारी हुए थे जोकि 2014 की भारत की स्थिति को दर्शाते हैं। इसी प्रकार से एनएफएचएस-5 के आंकड़े 2020-21 के हैं। जबकि यूनिसेफ की यह ‘‘चाइल्ड फूड पॉवर्टी’’ रिपोर्ट इसी माह जून 2024 में प्रकाशित की गई है। अब इसमें सबसे बड़ा विरोधाभास यह है कि एनएफएचएस के अंतिम आंकड़े वर्ष 2020-21के जो प्रस्तुत किए गए हैं। इस रिपोर्ट में साफ लिखा हुआ है ‘‘पिछले चार वर्षों से भारत में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में स्टंटिंग का स्तर 38 से 36 प्रतिशत तक मामूली रूप से कम हो गया है। 2019-21 में शहरी क्षेत्रों (30%) की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों (37%) के बच्चों में स्टंटिंग अधिक है। स्टंटिंग में भिन्नता पुडुचेरी में सबसे कम (20%) और मेघालय में सबसे ज्यादा (47%) है। हरियाणा, उत्तराखंड, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और सिक्किम (प्रत्येक में 7 प्रतिशत अंक), झारखंड, मध्य प्रदेश और मणिपुर (प्रत्येक में 6 प्रतिशत अंक), और चंडीगढ़ और बिहार (प्रत्येक में 5 प्रतिशत अंक) में स्टंटिंग में उल्लेखनीय कमी देखी गई।’’

अब यदि एक बार को यह मान भी लिया जाए कि संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) भारत सरकार के इसी स्टंटिंग आंकड़ों का हवाला देते हुए अपने तथ्य प्रस्तुत कर रहा है। तब भी आप देख सकते हैं कि भारत में कहीं भी गंभीर बाल खाद्य गरीबी की श्रेणी में 40 प्रतिशत तक और 36 प्रतिशत मध्यम बाल खाद्य गरीबी की चपेट में बच्चे अपना जीवन यापन करते हुए नहीं दिखाई देते हैं । जिसमें कि दोनों का योग करने पर 76 प्रतिशत बच्चे देश के किसी भी कोने में खाद्य गरीब झेलते हुए नहीं मिलते।

इसके अनुसार अध्ययन के लिए उदाहरण के लिए दिल्ली को देखें, यहां की जनसंख्या 02 करोड़ है, तब उस स्थिति में 0 से 5 वर्ष की आयु वाले बच्चों की जो 10 प्रतिशत जनसंख्या 20 लाख है, उसका 76 प्रतिशत यानी इन बच्चों की बीस लाख की जनसंख्या में 15 लाख से अधिक संख्या में अकेले बच्चे देश की राजधानी में फूड पॉवर्टी के संकट से हर रोज गुजर रहे हैं। क्या वाकई अकेले दिल्ली जैसे महानगर में पंद्रह लाख से अधिक बच्चे भोजन के लिए तरसते एवं परेशानी में आज आपको मिलेंगे? इसी तरह से भारत के प्रत्येक नगर, महानगर, तहसील एवं ग्रामीण क्षेत्र का डेटा निकाला जा सकता है और यूनिसेफ के दिए आंकड़ों से तुलना की जा सकती है।

इसके साथ ही हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि यूनिसेफ की ये रिपोर्ट जिस राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों का हवाला दे रही है, तब से अब तक देशभर में बहुत अधिक परिवर्तन हो चुका है। भारत में हर क्षेत्र में बहुत तेजी के साथ विकास हो रहा है, तब कैसे यूनिसेफ की यह रिपोर्ट को सही माना जा सकता है? ऐसे में यहां स्पष्ट हो रहा है कि भारत को लेकर यूनिसेफ की जून-2024 ‘‘चाइल्ड फूड पॉवर्टी’’ रिपोर्ट आज भ्रामक तथ्य प्रस्तुत करती है। इसलिए यह जरूरी है कि भारत के संदर्भ में दिए गए आंकड़ों को संयुक्त राष्ट्र बाल कोष देरी किए बगैर सही करे।

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