• October 28, 2025

रूस-यूक्रेन सीजफायर पर ट्रंप का यू-टर्न: पुतिन-जेलेंस्की पहले करें आमने-सामने बातचीत

लखनऊ/ 22 अगस्त, 2025 : रूस-यूक्रेन युद्ध, जो फरवरी 2022 से चल रहा है, को समाप्त करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की कोशिशें एक बार फिर सुर्खियों में हैं। पहले युद्धविराम (सीजफायर) की वकालत करने वाले ट्रंप ने अब अपना रुख बदलते हुए कहा है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की को पहले आपस में बिना किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता के आमने-सामने बातचीत करनी चाहिए। यह बयान 18 अगस्त 2025 को व्हाइट हाउस में यूरोपीय नेताओं और जेलेंस्की के साथ हुई बैठक के बाद आया, जहां ट्रंप ने पुतिन से 40 मिनट तक फोन पर बात की थी। इस यू-टर्न ने न केवल यूक्रेन, बल्कि यूरोपीय सहयोगियों में भी चिंता पैदा की है, जो सीजफायर को शांति वार्ता की पहली शर्त मानते हैं। यह लेख इस घटनाक्रम के विभिन्न पहलुओं, इसके प्रभावों और भविष्य की संभावनाओं पर प्रकाश डालता है।

परिचय: ट्रंप का बदलता रुख और वैश्विक चिंताएं

रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध, जो अब अपने चौथे वर्ष में प्रवेश कर चुका है, न केवल यूरोप, बल्कि वैश्विक स्थिरता के लिए एक बड़ा खतरा बना हुआ है। इस युद्ध में अब तक लाखों लोग विस्थापित हो चुके हैं, हजारों की मौत हो चुकी है, और यूक्रेन के कई शहर तबाह हो गए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जो अपने दूसरे कार्यकाल में युद्ध को जल्द समाप्त करने का वादा कर चुके हैं, ने पहले सीजफायर को प्राथमिकता दी थी। उन्होंने जुलाई 2025 में पुतिन को 50 दिनों का अल्टीमेटम दिया था कि वे युद्धविराम पर सहमत हों, अन्यथा रूस के खिलाफ कड़े प्रतिबंध लगाए जाएंगे।

हालांकि, 15 अगस्त 2025 को अलास्का के एंकोरेज में पुतिन के साथ तीन घंटे की बैठक के बाद ट्रंप ने अपनी रणनीति में बदलाव किया। उन्होंने सीजफायर की मांग को छोड़कर एक स्थायी शांति समझौते पर जोर देना शुरू किया। 18 अगस्त को व्हाइट हाउस में जेलेंस्की और यूरोपीय नेताओं (जर्मन चांसलर फ्रेडरिक मर्ज, फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर, और अन्य) के साथ बैठक के बाद ट्रंप ने कहा कि पुतिन और जेलेंस्की को पहले द्विपक्षीय बातचीत करनी चाहिए, जिसके बाद वह एक त्रिपक्षीय बैठक में शामिल होंगे। यह बयान उनके पहले के रुख से पूरी तरह उलट है, जिसने यूक्रेन और उसके यूरोपीय सहयोगियों में चिंता पैदा की है।

ट्रंप का यू-टर्न: सीजफायर से शांति समझौते की ओर

ट्रंप ने पहले बार-बार जोर दिया था कि युद्ध को रोकने के लिए तत्काल सीजफायर जरूरी है। उन्होंने 28 जुलाई को रूस को 10-12 दिनों का समय दिया था, जिसके बाद कड़े प्रतिबंधों की धमकी दी थी। लेकिन अलास्का में पुतिन के साथ बैठक के बाद, जहां कोई ठोस युद्धविराम समझौता नहीं हुआ, ट्रंप ने अपनी रणनीति बदल दी। उन्होंने ट्रुथ सोशल पर लिखा, “रूस और यूक्रेन के बीच भयानक युद्ध को समाप्त करने का सबसे अच्छा तरीका एक स्थायी शांति समझौता है, न कि अस्थायी युद्धविराम, जो अक्सर टिकता नहीं है।

18 अगस्त को व्हाइट हाउस में जेलेंस्की और यूरोपीय नेताओं के साथ बैठक के बाद, ट्रंप ने पुतिन से 40 मिनट तक फोन पर बात की और कहा कि वह पुतिन और जेलेंस्की के बीच द्विपक्षीय बैठक की व्यवस्था कर रहे हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वह इस प्रक्रिया में शुरुआत में हस्तक्षेप नहीं करेंगे, बल्कि दोनों नेताओं को पहले आपस में बात करने देना चाहते हैं। यह रुख न केवल उनके पहले के बयानों से अलग है, बल्कि यह यूक्रेन की उस मांग के भी खिलाफ है, जिसमें जेलेंस्की ने सीजफायर को शांति वार्ता की पहली शर्त बताया था।

यूक्रेन की स्थिति: जेलेंस्की की चुनौतियां

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने बार-बार कहा है कि रूस द्वारा कब्जाए गए क्षेत्रों (क्राइमिया, डोनेट्स्क, लुहान्स्क, जपोरोझिया, और खेरसन) को छोड़ना उनके लिए संवैधानिक रूप से असंभव है, क्योंकि इसके लिए जनमत संग्रह की जरूरत होगी। एक सर्वेक्षण के अनुसार, अधिकांश यूक्रेनी नागरिक रूसी कब्जे वाले क्षेत्रों को रूस का हिस्सा मानने या अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों को छोड़ने के खिलाफ हैं। जेलेंस्की ने यह भी कहा कि रूस को पहले युद्ध शुरू करने की जिम्मेदारी लेनी होगी और हमले बंद करने होंगे।

18 अगस्त की बैठक में, जेलेंस्की ने ट्रंप के साथ “उत्पादक” बातचीत की और सुरक्षा गारंटी जैसे संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा की। उन्होंने यह भी बताया कि यूक्रेन ने 90 बिलियन डॉलर के अमेरिकी हथियार खरीदने का प्रस्ताव दिया है, जो सुरक्षा गारंटी का हिस्सा होगा। हालांकि, ट्रंप के सीजफायर से पीछे हटने और क्षेत्रीय रियायतों की बात ने जेलेंस्की को मुश्किल में डाल दिया है। जेलेंस्की ने कहा कि वह पुतिन से मिलने को तैयार हैं, लेकिन रूस की शर्तें, जैसे यूक्रेन की नाटो सदस्यता पर रोक और डोनबास का पूर्ण समर्पण, उनके लिए अस्वीकार्य हैं।

रूस का रुख: पुतिन की रणनीति

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पहले जेलेंस्की से सीधे बातचीत से इनकार किया था, यह कहते हुए कि इसके लिए “परिस्थितियां” तैयार नहीं हैं। हालांकि, 18 अगस्त को ट्रंप के साथ फोन कॉल के बाद, पुतिन ने जेलेंस्की से मिलने की संभावना पर विचार करने का संकेत दिया। क्रेमलिन के प्रवक्ता यूरी उशाकोव ने इसे “उच्च-स्तरीय प्रतिनिधियों के स्तर को बढ़ाने की संभावना” बताया, लेकिन कोई पक्का वादा नहीं किया।[]

पुतिन ने हमेशा से एक स्थायी शांति समझौते पर जोर दिया है, जिसमें यूक्रेन को डोनबास और क्राइमिया को रूस के हिस्से के रूप में मान्यता देनी होगी, साथ ही नाटो सदस्यता छोड़नी होगी और अपनी सेना को सीमित करना होगा। रूस की सैन्य प्रगति, खासकर डोनबास में, ने पुतिन को बातचीत में मजबूत स्थिति दी है। विश्लेषकों का मानना है कि पुतिन सीजफायर से बचना चाहते हैं, क्योंकि इससे रूस को अपनी सैन्य स्थिति को और मजबूत करने का समय मिलेगा।

यूरोपीय नेताओं की प्रतिक्रिया: सीजफायर पर जोर

यूरोपीय नेता, खासकर जर्मनी के चांसलर फ्रेडरिक मर्ज और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, ने ट्रंप के नए रुख पर चिंता जताई है। मर्ज ने कहा कि वह अगली बैठक की कल्पना बिना सीजफायर के नहीं कर सकते, क्योंकि यह युद्ध को रोकने और शांति वार्ता शुरू करने का पहला कदम है। मैक्रों ने भी “ट्रूस” को जरूरी बताया और कहा कि यूक्रेन की सेना पर कोई सीमा नहीं होनी चाहिए। यूरोपीय नेताओं का मानना है कि सीजफायर के बिना बातचीत रूस को और अधिक क्षेत्र कब्जाने का मौका देगी, जो अंतरराष्ट्रीय कानून के खिलाफ है।

यूरोपीय नेता यह भी चाहते हैं कि यूक्रेन को मजबूत सुरक्षा गारंटी दी जाए, जो नाटो के आर्टिकल 5 की तरह हो। उन्होंने ट्रंप से अपील की कि यूक्रेन को किसी भी शांति समझौते में शामिल किया जाए, क्योंकि “यूक्रेन के बिना यूक्रेन पर कोई फैसला नहीं” होना चाहिए।

ट्रंप की रणनीति: शांति या कूटनीतिक जीत?

ट्रंप की नई रणनीति ने कई सवाल खड़े किए हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप नोबेल शांति पुरस्कार की उम्मीद में इस युद्ध को समाप्त करने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी पुतिन के साथ नजदीकी और अलास्का में लाल कालीन स्वागत ने यह धारणा बनाई है कि वह रूस के प्रति नरम रुख अपना रहे हैं। हालांकि, ट्रंप ने यह भी कहा कि वह यूक्रेन के लिए सुरक्षा गारंटी सुनिश्चित करेंगे, जिसमें यूरोप मुख्य भूमिका निभाएगा, लेकिन अमेरिका भी “सहायता” करेगा। ट्रंप ने साफ किया कि वह यूक्रेन में अमेरिकी सैनिक नहीं भेजेंगे, लेकिन हवाई सहायता जैसे अन्य विकल्पों पर विचार कर सकते हैं। उनकी यह रणनीति यूक्रेन और यूरोप के लिए एक जोखिम भरी स्थिति पैदा कर रही है, क्योंकि सीजफायर के बिना बातचीत रूस को सैन्य बढ़त दे सकती है।

सामाजिक और वैश्विक प्रभाव

ट्रंप के इस यू-टर्न ने वैश्विक कूटनीति में एक नई बहस छेड़ दी है। यूक्रेन के लोग, जो पहले ही युद्ध की भयावहता झेल रहे हैं, इस बात से चिंतित हैं कि क्या यह बातचीत उनकी संप्रभुता को खतरे में डालेगी। यूरोपीय देशों में भी यह डर है कि रूस की आक्रामकता को बढ़ावा मिल सकता है, अगर उसे क्षेत्रीय रियायतें दी गईं।

सोशल मीडिया पर इस मुद्दे ने तीव्र प्रतिक्रियाएं पैदा की हैं। कुछ लोग ट्रंप की मध्यस्थता को एक साहसी कदम मान रहे हैं, जबकि अन्य इसे रूस के प्रति झुकाव के रूप में देखते हैं। भारत जैसे देश, जो रूस के तेल का बड़ा खरीदार है, भी ट्रंप के प्रतिबंधों की धमकी से प्रभावित हो सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से पहले, ट्रंप ने संकेत दिया था कि पुतिन और जेलेंस्की की बैठक बुडापेस्ट में हो सकती है, हालांकि क्रेमलिन ने इसकी पुष्टि नहीं की है। हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान, जो पुतिन के सहयोगी माने जाते हैं, इस बैठक के लिए एक विवादास्पद मेजबान हो सकते हैं। फ्रांस ने जिनेवा को एक वैकल्पिक स्थान के रूप में सुझाया है, जहां पुतिन को अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) की गिरफ्तारी से छूट मिल सकती है।

यदि पुतिन और जेलेंस्की की बैठक होती है, तो यह युद्ध को समाप्त करने की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है। हालांकि, रूस की कठोर शर्तें और यूक्रेन की संप्रभुता की मांग इस प्रक्रिया को जटिल बना सकती हैं। विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप की नई रणनीति रूस को समय दे सकती है, जिससे वह अपनी सैन्य स्थिति को और मजबूत कर सकता है।

निष्कर्ष: एक नाजुक संतुलन की जरूरत

रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने की कोशिश में ट्रंप का यू-टर्न एक जोखिम भरा दांव है। सीजफायर को छोड़कर स्थायी शांति समझौते पर जोर देना रूस को कूटनीतिक और सैन्य लाभ दे सकता है, जिससे यूक्रेन और उसके यूरोपीय सहयोगी चिंतित हैं। जेलेंस्की की स्थिति मुश्किल है, क्योंकि उन्हें अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करते हुए ट्रंप के दबाव का सामना करना पड़ रहा है। यूरोपीय नेता सीजफायर और सुरक्षा गारंटी पर जोर दे रहे हैं, लेकिन ट्रंप की नई रणनीति ने इस प्रक्रिया को और जटिल बना दिया है।

आने वाले दिन यह तय करेंगे कि क्या पुतिन और जेलेंस्की की बैठक वास्तव में होगी और क्या यह युद्ध को समाप्त करने की दिशा में एक ठोस कदम होगा। इस बीच, वैश्विक समुदाय की नजर इस बात पर है कि क्या ट्रंप की कूटनीति शांति लाएगी या यह रूस की आक्रामकता को और बढ़ावा देगी। यह समय है कि सभी पक्ष एक नाजुक संतुलन बनाकर इस मानवीय और भू-राजनीतिक संकट का समाधान खोजें।

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Rama Niwash Pandey

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