ये खबरें प्रेरित तो करती ही हैं…

इन दिनों दुनिया के विभिन्न हिस्सों से कम से कम चार ऐसी खबरें आईं हैं, जिनसे पढ़े-लिखे भारतीय जुड़ाव महसूस कर सकते हैं। हालांकि यह पहली बार नहीं हुआ है, फिर भी हमेशा की तरह विचारणीय है। पहले खबरों की चर्चा कर ली जाए। विज्ञान की दुनिया भले मानव मात्र के कल्याण की दृष्टि से शिखर पर हो, परन्तु खेल सर्वाधिक चर्चित है। हम भी पहले खेल के उस समाचार से शुरू कर सकते हैं, जिसने भारतीय चैनलों पर टीआरपी के मानक बनाए। पहली खबर यह है कि वर्ल्ड कप के पहले ही मैच में भारतीय मूल वाले न्यूजीलैंड के खिलाड़ी रचिन रविंद्र का बल्ला इंग्लैंड के खिलाफ जमकर चला। रचिन ने मात्र 82 गेंदो पर शतक बना डाला। उन्होंने 4 छक्के और 9 चौके लगाए। गेंदबाजी करते हुए भी उन्होंने एक विकेट लिया। रचिन रविंद्र न्यूजीलैंड के वेलिंग्टन में पैदा हुए हैं, लेकिन उनके माता-पिता भारतीय हैं। सॉफ्टवेयर इंजीनियर पिता रवि कृष्णमूर्ती भी न्यूजीलैंड आने से पहले बेंगलुरु के लिए क्लब स्तर के क्रिकेट खेला करते थे। रोचक यह है कि उन्होंने दो मशहूर भारतीय खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर और राहुल द्रविड़ के नाम में से एक-एक अंश लेकर बेटे का नाम रचिन रविंद्र रखा।
भारतीयों के लिए हाल की दूसरी बड़ी खबर अमेरिकी आतंरिक्ष एजेंसी नेशनल एरोनॉटिक्स ऐंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन यानी नासा के वैज्ञानिक अरोह बड़जात्या ने दी है। अरोह भारतीय मूल के हैं। वे इसी 14 अक्टूबर को विशेष तरह के सूर्य ग्रहण के दौरान तीन रॉकेट लॉन्च करने वाले हैं। वैज्ञानिक बताते हैं कि इस तरह के सूर्यग्रहण के आसपास वायुमंडलीय बदलाव देखा जाता है। इसी दौरान रॉकेट लॉन्च करने का यह मिशन विशेष अध्ययन वाला होगा। अब साथ ही तीसरे समाचार में भारतीय मूल की वैज्ञानिक डॉ. जोइता गुप्ता की चर्चा करें। प्रोफेसर जोइता को जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों के लिए प्रतिष्ठित डच पुरस्कार मिला है। एम्स्टर्डम यूनिवर्सिटी के ‘एम्स्टर्डम इंस्टीट्यूट फॉर सोशल साइंस रिसर्च’ में ग्लोबल साउथ में इनवायरोमेंट ऐंड डेवलपमेंट और विकास और आईएचई डेल्फ्ट इंस्टीट्यूट फॉर वॉटर एजुकेशन की इस प्रोफेसर को मिला यह पुरस्कार स्पिनोजा पुरस्कार के नाम से चर्चित है। इसे डच नोबेल के नाम से भी पहचाना जाता है। प्रश्न यह नहीं है कि नोबेल के समानांतर दुनिया में कितने पुरस्कार और कहा-कहां हैं। मूल बात यह है कि यह एक भारतीय मूल की वैज्ञानिक को दिया गया है।
ये तीनों नाम भारतीय मूल के विशिष्ट लोगों की सूची में ताजा की तरह ही है। आज हम नाम गिनाने को बैठें तो यह सूची हजार में पहुंच सकती है। अकेले अमेरिका और कनाडा का ही उदाहरण लें तो वहां की राजनीति, व्यवसाय सहित विभिन्न क्षेत्रों में भारत से पहुंचे व्यक्ति अथवा उनकी अगली पीढ़ी खासा असर रखते हैं। इस समय अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचन की पूर्व प्रक्रिया चल रही है। उम्मीदवारी की होड़ में दो प्रमुख नाम ऐसे हैं, जो भारतीयों का ध्यान खींचते हैं। इनमें एक नाम तो निकी हेली का है। वे बहुत चर्चित हैं। वहीं लेखक, करोड़ों के मालिक उद्यमी विवेक रामास्वामी ने अपनी उम्मीदवारी की घोषणा कर लोगों को चौंकाया। उनका दावा है कि वे एक ऐसा सांस्कृतिक आंदोलन खड़ा करना चाहते हैं, जो विविधता में एकता को दर्शाएगा।
अमेरिका से आने वाली खबरों में चौथा समाचार हिंदू, बौद्ध, सिख और जैन धर्मों के लोगों को एक मंच पर लाने के लिए एक गुट बनाने का है। करीब एक सप्ताह पहले ही इस गुट को शुरू करने की घोषणा के समय भारतीय मूल के सांसद श्री थानेदार ने इसे 12 अन्य सांसदों के समर्थन का दावा किया। फिर से वही मूल प्रश्न कि इस तरह की खबरों से हम भारतीयों को मिलता क्या है? क्या इसके पीछे हम अपने देश की प्रतिभा पलायन नहीं देखते? जवाब की शुरुआत दूसरे प्रश्न से। सच यह है कि हर मामले में प्रतिभा पलायन नहीं है। कई लोग इन देशों में दूसरी-तीसरी पीढ़ी के हैं। उनके पूर्वज ने वहां अपने को स्थापित किया, फिर यह प्रतिभाएं सामने आईं। हां यह जरूर है कि 22 से 35 वर्ष के प्रोफेशनल्स भी बड़ी संख्या में विदेशों की ओर आकृष्ट हो रहे हैं। अंत में पहले सवाल का जवाब हम सभी अपने दिल से समझ सकते हैं। भारतीय चिंतन पूरे विश्व को अपने परिवार की तरह देखता है। हाल में जी-20 के सम्मेलन में हमने फिर से इस तरह के संकल्प को दोहराया है। इस अर्थ में हर भारतीय अथवा उसके वंशज का योगदान मानव मात्र के लिए हो, यह कामना रहती है। फिर वृहत परिवार से आए इस तरह के समाचार अपनों को, अपनी नई पीढ़ी को प्रेरणा तो देते ही हैं। इससे सीखें तो मेड इन इंडिया को ताकत मिलेगी।
