• December 29, 2025

डिजिटल लूट का मायाजाल: व्हाट्सएप और टेलीग्राम के ज़रिए कैसे खाली हो रहे हैं बैंक खाते, वीआईपी भी निशाने पर

भारत : आज के डिजिटल युग में जहां तकनीक ने हमारे जीवन को सुगम बनाया है, वहीं साइबर अपराधियों ने इसी तकनीक को ठगी का सबसे खतरनाक हथियार बना लिया है। वर्तमान में व्हाट्सएप और टेलीग्राम जैसे मैसेजिंग ऐप्स केवल संवाद के साधन नहीं रहे, बल्कि ये साइबर ठगों के लिए शिकार खोजने के सबसे बड़े प्लेटफॉर्म बन गए हैं। अपराधी इतने शातिर हो चुके हैं कि वे अब केवल आम आदमी को ही नहीं, बल्कि रसूखदार और वीआईपी लोगों को भी अपना निशाना बना रहे हैं। जब तक किसी व्यक्ति को यह आभास होता है कि उसके साथ धोखा हो रहा है, तब तक उसके बैंक खाते से लाखों रुपये साफ हो चुके होते हैं। इन अपराधियों का तंत्र इतना व्यवस्थित है कि वे मनोवैज्ञानिक दबाव और लालच का ऐसा घालमेल तैयार करते हैं जिससे निकल पाना एक साधारण यूजर के लिए लगभग असंभव हो जाता है।

साइबर अपराधियों की रणनीति और शिकार चुनने का तरीका

साइबर ठगों की कार्यप्रणाली बेहद सुनियोजित होती है। वे अपने शिकार का चुनाव करने के लिए सबसे पहले व्हाट्सएप का सहारा लेते हैं। अक्सर लोगों को अनजान नंबरों से ऐसे संदेश प्राप्त होते हैं जिनमें ‘वर्क फ्रॉम होम’ या ‘पार्ट टाइम जॉब’ के जरिए घर बैठे हजारों रुपये कमाने का लालच दिया जाता है। संदेश में काम बहुत आसान बताया जाता है, जैसे कि किसी खास कंपनी के यूट्यूब वीडियो को लाइक करना, गूगल मैप्स पर किसी रेस्टोरेंट या होटल को रेटिंग देना या किसी सोशल मीडिया पेज को फॉलो करना। शुरुआत में यह काम इतना सरल और फायदेमंद लगता है कि कोई भी आसानी से इनके झांसे में आ जाता है। अपराधी जानते हैं कि एक बार जब व्यक्ति के मन में अतिरिक्त कमाई का लालच घर कर जाता है, तो उसे बड़े निवेश के लिए उकसाना आसान हो जाता है।

अमर उजाला की पड़ताल: ठगी के पूरे तंत्र का लाइव अनुभव

साइबर ठगी के इस भयावह मकड़जाल को समझने के लिए अमर उजाला की टीम ने खुद एक प्रयोग किया। हमारी टीम ने एक निवेशक के रूप में खुद को पेश किया और उन संदिग्ध ग्रुप्स से जुड़ी जो निवेश के बदले मोटे मुनाफे का दावा कर रहे थे। जैसे ही हमने अपनी रुचि दिखाई, हमें एक साइबर ठग का मैसेज मिला। उसने बड़े ही पेशेवर तरीके से बात शुरू की और रोजाना 5,000 से 10,000 रुपये कमाने का सुनहरा सपना दिखाया। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान हमें यह समझ आया कि ठगों का यह गिरोह किसी कॉर्पोरेट कंपनी की तरह काम करता है, जहां हर सदस्य की भूमिका पहले से तय होती है—कोई आपको लिंक भेजेगा, कोई आपको ट्रेनिंग देगा और कोई आपके निवेश का हिसाब रखेगा।

झांसे में फंसाने का पहला और दूसरा चरण: विश्वास की नींव

ठगी की शुरुआत बहुत छोटे स्तर से होती है। पहले चरण में हमें तीन लिंक दिए गए और कहा गया कि इन पेजों को गूगल पर रेटिंग देनी है। प्रत्येक रेटिंग के बदले 50 रुपये का भुगतान तय किया गया। जैसे ही हमने स्क्रीनशॉट लेकर दिए गए टेलीग्राम लिंक पर भेजे, हमें तुरंत पैसे ट्रांसफर कर दिए गए। यह इस खेल का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है—शिकार का भरोसा जीतना। दूसरे चरण में हमें टेलीग्राम पर एक ‘टीचर’ या ‘मेंटोर’ से संपर्क करने को कहा गया। वहां हमसे बैंक खाते की जानकारी मांगी गई और हमें बताया गया कि यदि हम दिए गए निर्देशों का पालन करेंगे, तो हम अपनी कमाई को दस गुना तक बढ़ा सकते हैं। शुरुआती भुगतान मिलने के बाद एक साधारण व्यक्ति को लगने लगता है कि यह कोई वैध कंपनी है और यहीं से वह उनके जाल में गहराई तक धंसना शुरू कर देता है।

तीसरा और चौथा चरण: निवेश का लालच और मनोवैज्ञानिक दबाव

तीसरे चरण में खेल बदल जाता है। अब केवल टास्क पूरा करने से काम नहीं चलता, बल्कि ‘प्रीमियम टास्क’ के नाम पर निवेश की मांग की जाती है। हमसे कहा गया कि अगर हम 1,000 रुपये का निवेश करते हैं, तो हमें 1,300 रुपये वापस मिलेंगे। हमने निवेश किया और एक डिजिटल डैशबोर्ड पर हमारा मुनाफा दिखने लगा। इसने हमारे भीतर की निर्भयता और लालच को और बढ़ा दिया। चौथे चरण में निवेश की राशि को बढ़ाकर 5,000 रुपये कर दिया गया। टास्क संख्या 7 से 12 तक पहुंचते-पहुंचते अपराधी आपकी वित्तीय क्षमता का आकलन कर लेते हैं। वे आपको ऐसे काल्पनिक मुनाफे दिखाते हैं जो केवल स्क्रीन पर दिखते हैं, लेकिन हकीकत में वे पैसे उनके पास जमा हो रहे होते हैं।

असली खेल की शुरुआत: जब निवेश बन जाता है मजबूरी

ठगी का असली चेहरा तब सामने आता है जब निवेश की राशि 10,000 रुपये या उससे अधिक हो जाती है। इस स्तर पर पहुंचने के बाद ठग आपको बताना शुरू करते हैं कि सिस्टम में कुछ ‘एरर’ आ गया है या आपने टास्क पूरा करने में देरी कर दी है। अब अपनी पुरानी जमा राशि और मुनाफे को निकालने के लिए आपको एक और ‘बड़ा निवेश’ करना होगा। यदि आप असहमति जताते हैं, तो वे आपको कानूनी कार्रवाई की धमकी देते हैं या चेतावनी देते हैं कि यदि आपने अगला टास्क पूरा नहीं किया, तो आपकी पूरी पूंजी जब्त हो जाएगी। घबराहट में व्यक्ति अपनी पिछली डूबी हुई रकम को बचाने के चक्कर में और अधिक पैसे डालता जाता है। अंत में, जब ठगों को लगता है कि अब इस व्यक्ति से और पैसा नहीं निकाला जा सकता, तो वे टेलीग्राम ग्रुप से गायब हो जाते हैं और उनका अकाउंट ‘डिलीटेड’ दिखाई देने लगता है।

टेलीग्राम ग्रुप्स का मायाजाल और फर्जी स्क्रीनशॉट का खेल

साइबर ठग अक्सर अपने शिकार को एक बड़े टेलीग्राम ग्रुप में जोड़ते हैं जिसमें पहले से ही 200 से 500 लोग मौजूद होते हैं। इस ग्रुप में लगातार ऐसे मैसेज और स्क्रीनशॉट भेजे जाते हैं जिनमें लोग दावा करते हैं कि उन्होंने लाखों रुपये कमाए हैं। असल में, ये अधिकांश आईडी ठगों की ही होती हैं या फिर ‘बॉट’ होते हैं। यह एक सामूहिक मनोवैज्ञानिक प्रभाव (Social Proof) पैदा करने के लिए किया जाता है ताकि नए व्यक्ति को लगे कि वह अकेला निवेश नहीं कर रहा है और यह पूरी तरह सुरक्षित है। ग्रुप में मौजूद नकली निवेशकों का उत्साह देखकर पीड़ित अपनी सुरक्षा की चिंता छोड़ देता है और अपनी जीवन भर की कमाई दांव पर लगा देता है।

इन्वेस्टमेंट बचाने की जद्दोजहद और पुलिस तक न पहुंचने वाले मामले

इस ठगी की सबसे दुखद बात यह है कि अधिकांश लोग छोटे स्तर की ठगी होने पर लोकलाज या कानूनी प्रक्रिया के डर से शिकायत दर्ज नहीं कराते। ठग इसी बात का फायदा उठाते हैं। वे जानते हैं कि अगर उन्होंने किसी से 5,000 या 10,000 रुपये ठगे हैं, तो वह पुलिस के पास जाने के बजाय इसे अपनी गलती मानकर भूल जाएगा। केवल वही मामले पुलिस की साइबर सेल तक पहुंच पाते हैं जहां ठगी की रकम लाखों या करोड़ों में होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक ‘स्लो पॉइजन’ की तरह है, जहां धीरे-धीरे शिकार को आर्थिक रूप से खोखला कर दिया जाता है।

विशेषज्ञों की चेतावनी और बचाव के उपाय

साइबर अपराध विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रकार की ठगी से बचने का एकमात्र तरीका ‘सतर्कता’ है। कोई भी वैध कंपनी व्हाट्सएप पर संदेश भेजकर केवल लाइक या रेटिंग के बदले पैसे नहीं देती। डिजिटल अरेस्ट और नकली निवेश के झांसे से बचने के लिए लोगों को यह समझना होगा कि यदि कोई ऑफर “सच होने के लिए बहुत अच्छा” (Too good to be true) लग रहा है, तो वह निश्चित रूप से एक स्कैम है। विशेषज्ञों की राय है कि किसी भी अनजान लिंक पर क्लिक न करें, अपनी बैंकिंग जानकारी साझा न करें और यदि आपके साथ ठगी होती है, तो तुरंत ‘1930’ नंबर पर कॉल करें या साइबर क्राइम पोर्टल पर शिकायत दर्ज करें। याद रखें, आपका एक गलत क्लिक आपकी बरसों की मेहनत की कमाई को पल भर में गायब कर सकता है।

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