• October 13, 2025

5 साल मुस्लिम होने की शर्त खारिज, वक्फ कानून की कुछ धाराओं पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

15 सितम्बर 2025, लखनऊ : देश की सबसे ऊंची अदालत सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 के खिलाफ दायर याचिकाओं पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कानून की उन धाराओं पर फिलहाल रोक लगा दी है, जिसमें वक्फ बोर्ड का सदस्य बनने या वक्फ संपत्ति दान करने के लिए कम से कम 5 साल तक मुस्लिम होने की शर्त रखी गई थी। जस्टिसों ने कहा कि यह शर्त संविधान के समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14 और 15) का उल्लंघन करती है और धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25-26) में हस्तक्षेप है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि उचित नियम बनने तक ये प्रावधान लागू न हों।यह फैसला मुस्लिम समुदाय के लिए बड़ी राहत है, क्योंकि नया वक्फ कानून कई विवादों का कारण बन चुका था। विपक्षी दलों और मुस्लिम संगठनों ने इसे मुसलमानों के खिलाफ भेदभावपूर्ण बताया था। अब कोर्ट की यह रोक से कानून के कई हिस्से ठप हो गए हैं, जिससे वक्फ बोर्डों की नियुक्तियां और संपत्ति प्रबंधन प्रभावित होंगे। आइए, इस फैसले की पूरी कहानी को सरल भाषा में समझते हैं।वक्फ कानून क्या है और क्यों आया संशोधन?वक्फ का मतलब होता है किसी संपत्ति को अल्लाह के नाम पर दान कर देना, जो हमेशा के लिए धार्मिक या सामाजिक कामों के लिए इस्तेमाल होती है। भारत में वक्फ संपत्तियां बहुत पुरानी हैं, जैसे मस्जिदें, कब्रिस्तान, स्कूल और गरीबों के लिए जमीनें। 1995 का वक्फ कानून इन संपत्तियों को संभालने के लिए था, लेकिन सरकार का कहना था कि इसमें पारदर्शिता की कमी है। बहुत सी जमीनें अवैध तरीके से कब्जे में हैं या गलत तरीके से वक्फ घोषित की गई हैं।इसलिए, 2025 में केंद्र सरकार ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम लाया। इसमें कई बदलाव थे,

जैसे:वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना।
वक्फ संपत्ति दान करने वाले व्यक्ति को कम से कम 5 साल मुस्लिम होना जरूरी।
वक्फ काउंसिल में बहुमत गैर-मुस्लिमों का।
संपत्ति को ‘वक्फ बाय यूजर’ (लंबे समय से इस्तेमाल से वक्फ) मानने की प्रक्रिया बदलना।
जिलाधिकारी को वक्फ दावों की जांच का अधिकार।

सरकार का दावा था कि ये बदलाव वक्फ संपत्तियों को पारदर्शी बनाएंगे, भ्रष्टाचार रोकेगा और महिलाओं व गरीबों के हितों की रक्षा करेगा। लेकिन मुस्लिम संगठनों जैसे ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) और AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इसे चुनौती दी। उनका कहना था कि यह कानून मुसलमानों की धार्मिक आजादी छीनता है और केवल एक समुदाय को निशाना बनाता है।सुप्रीम कोर्ट में कैसे पहुंचा मामला?कानून पार्लियामेंट से पास होते ही सुप्रीम कोर्ट में 70 से ज्यादा याचिकाएं दायर हो गईं। कोर्ट ने सिर्फ 5 मुख्य याचिकाओं को चुना, जिनमें ओवैसी, AIMPLB और अन्य संगठनों की शामिल थीं। सुनवाई अप्रैल 2025 से शुरू हुई। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने मामला सुना।पहले सुनवाई में याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि 5 साल की शर्त अवैध है। उन्होंने कहा, “क्या किसी हिंदू को मंदिर ट्रस्ट में शामिल होने के लिए 5 साल हिंदू होने की शर्त लगाई जा सकती है? यह भेदभाव है।” सिब्बल ने यह भी कहा कि पहले वक्फ बोर्ड में सभी सदस्य मुस्लिम होते थे, लेकिन अब गैर-मुस्लिमों को बहुमत मिलेगा, जो धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप है।केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बचाव किया। उन्होंने कहा कि कानून पारदर्शिता के लिए है। “गांव-गांव में वक्फ के नाम पर जमीनें हड़पी जा रही हैं। 5 साल की शर्त धोखाधड़ी रोकने के लिए है। गैर-मुस्लिम दान दे सकते हैं, लेकिन बोर्ड में संतुलन जरूरी है।” मेहता ने मुस्लिम महिलाओं के हितों का हवाला दिया, कहा कि कानून अनुच्छेद 15 के तहत विशेष प्रावधान करता है।कोर्ट ने कई सवाल उठाए। जस्टिस गवई ने पूछा, “अगर कोई संपत्ति 300 साल से मस्जिद के रूप में इस्तेमाल हो रही है, तो उसे रजिस्टर कैसे करेंगे?” कोर्ट ने 2019 के अयोध्या फैसले का जिक्र किया, जहां ‘वक्फ बाय यूजर’ को मान्यता दी गई थी। सुनवाई मई तक चली, जहां कोर्ट ने अंतरिम आदेश दिए। केंद्र को 7 दिन में जवाब देने को कहा और नियुक्तियां रोक दीं।कोर्ट का फैसला: क्या खारिज हुआ, क्या रुका?14 सितंबर 2025 को अंतिम सुनवाई हुई। कोर्ट ने कहा कि वक्फ कानून की वैधता पर अंतिम फैसला बाद में होगा, लेकिन कुछ प्रावधानों पर तुरंत रोक लगाई जा रही है। मुख्य बिंदु:5 साल मुस्लिम शर्त खारिज: कोर्ट ने इसे असंवैधानिक माना। कहा कि धार्मिक पहचान पर समय की शर्त लगाना समानता के खिलाफ है। उचित नियम न बनने तक यह लागू न हो।

कुछ धाराओं पर रोक: वक्फ बोर्ड और काउंसिल में गैर-मुस्लिम बहुमत और संपत्ति जांच के प्रावधान रुके। कोर्ट ने कहा कि ये धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करते हैं।
यथास्थिति बरकरार: मौजूदा वक्फ संपत्तियों पर कोई बदलाव न हो। जिलाधिकारी की जांच पर भी फिलहाल रोक।
अगली सुनवाई: केंद्र और याचिकाकर्ताओं को और जवाब देने का समय दिया गया। पूर्ण फैसला कुछ हफ्तों में।

कोर्ट ने साफ कहा कि कानून का उद्देश्य अच्छा हो सकता है, लेकिन तरीका संविधान के खिलाफ न हो। जस्टिस मसीह ने टिप्पणी की, “धार्मिक मामलों में सरकार का दखल सीमित होना चाहिए।”इसका असर क्या होगा?यह फैसला वक्फ बोर्डों के कामकाज पर बड़ा प्रभाव डालेगा। देश में 8 लाख से ज्यादा वक्फ संपत्तियां हैं, जिनकी कीमत अरबों में है। अब पुरानी व्यवस्था चलेगी, जहां बोर्ड में मुस्लिम सदस्य ही होंगे। मुस्लिम समुदाय ने स्वागत किया। AIMPLB के नेता ने कहा, “यह हमारी धार्मिक आजादी की जीत है। सरकार का हस्तक्षेप रुका।“विपक्ष ने कोर्ट की तारीफ की। कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कहा, “संविधान की रक्षा हुई।” AIMIM के ओवैसी ने ट्वीट किया, “मुसलमानों के अधिकार सुरक्षित।” लेकिन सरकार ने निराशा जताई। मंत्री ने कहा, “पारदर्शिता के प्रयास पर रोक दुखद है, लेकिन कोर्ट का सम्मान करेंगे।”कई राज्यों में वक्फ विवाद चल रहे हैं, जैसे दिल्ली में शाहदरा की जमीन पर गुरुद्वारा vs वक्फ बोर्ड। कोर्ट ने पहले ही दिल्ली वक्फ बोर्ड की याचिका खारिज की थी। अब नया कानून रुकने से पुराने दावे मजबूत होंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग कम हो सकता है, लेकिन पारदर्शिता पर सवाल बाकी हैं।पृष्ठभूमि: वक्फ विवादों की लंबी कहानीवक्फ कानून पुराना विवाद है। 2013 में भी संशोधन आया था, लेकिन असर कम रहा। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, 58 हजार एकड़ जमीन वक्फ के नाम पर अतिक्रमणग्रस्त है। AIMPLB ने इन आंकड़ों को गलत बताया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि झूठे हलफनामे पर कार्रवाई हो।असम, यूपी जैसे राज्यों में प्रदर्शन हुए। अप्रैल 2025 में सिलचर में हिंसा हुई, जहां पुलिस पर पथराव हुआ। कोर्ट ने इन घटनाओं का संज्ञान लिया। अब फैसले से शांति की उम्मीद है।निष्कर्ष: संविधान की जीतसुप्रीम कोर्ट का यह फैसला दिखाता है कि कानून कितना भी अच्छा हो, लेकिन संविधान के दायरे में रहना जरूरी है। 5 साल की शर्त खारिज होना मुसलमानों के लिए बड़ी राहत है, लेकिन पूर्ण सुनवाई बाकी है। उम्मीद है कि इससे वक्फ संपत्तियां बेहतर प्रबंधन में आएंगी, बिना भेदभाव के। देश की एकता और धार्मिक सद्भाव के लिए यह कदम सकारात्मक है।

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Rama Niwash Pandey

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