चुनाव आयोग और टीएमसी के बीच तल्खी बढ़ी: अभिषेक बनर्जी ने बैठक के बाद उठाए गंभीर सवाल, आयोग पर लगाया जानकारी लीक करने का आरोप
पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) और भारत निर्वाचन आयोग के बीच खींचतान एक बार फिर खुलकर सामने आ गई है। टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव और डायमंड हार्बर से सांसद अभिषेक बनर्जी ने मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ हुई एक महत्वपूर्ण बैठक के बाद आयोग की कार्यप्रणाली पर कड़े प्रहार किए हैं। अभिषेक बनर्जी का आरोप है कि चुनाव आयोग विपक्षी दलों के वाजिब सवालों का जवाब देने के बजाय मुद्दों को भटकाने की कोशिश कर रहा है। दिल्ली में हुई इस उच्च स्तरीय बैठक के बाद मीडिया से बात करते हुए बनर्जी ने स्पष्ट किया कि पार्टी चुनाव आयोग की निष्पक्षता और उसके द्वारा दिए गए स्पष्टीकरणों से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं है। यह विवाद ऐसे समय में गहराया है जब बंगाल में चुनावी सुगबुगाहट तेज है और मतदाता सूची से लेकर प्रशासनिक नियुक्तियों तक पर राजनीतिक दलों की पैनी नजर है।
ढाई घंटे की मैराथन बैठक और असंतोष का स्वर
अभिषेक बनर्जी और चुनाव आयोग के अधिकारियों के बीच यह बैठक दोपहर 12 बजे शुरू हुई और लगभग ढाई घंटे तक चली। लंबी चर्चा के बावजूद, बैठक से बाहर आते ही बनर्जी के तेवर बेहद तल्ख नजर आए। उन्होंने बताया कि तृणमूल कांग्रेस ने बैठक के दौरान 8 से 10 अत्यंत महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे उठाए थे। इन मुद्दों में मतदाता सूची में गड़बड़ी, चुनाव के दौरान केंद्रीय बलों की भूमिका और प्रशासनिक निष्पक्षता जैसे विषय शामिल थे। बनर्जी ने दावा किया कि चर्चा लंबी जरूर हुई, लेकिन आयोग के पास अधिकांश सवालों के कोई ठोस या स्पष्ट जवाब नहीं थे। उनके अनुसार, केवल दो या तीन गौण बिंदुओं पर ही आयोग ने कुछ स्पष्टता दिखाई, जबकि मुख्य चिंताओं को अनसुना कर दिया गया या उन्हें तकनीकी उलझनों में फंसा दिया गया।
पुरानी बैठकों का हवाला और डेटा लीक के गंभीर आरोप
अभिषेक बनर्जी ने केवल वर्तमान बैठक ही नहीं, बल्कि पिछली मुलाकातों का जिक्र करते हुए भी आयोग की मंशा पर सवाल उठाए। उन्होंने याद दिलाया कि इससे पहले 28 नवंबर को टीएमसी के 10 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने आयोग से मुलाकात कर पांच विशिष्ट प्रश्न पूछे थे। बनर्जी का आरोप है कि उस समय भी आयोग ने कोई सटीक जवाब नहीं दिया, लेकिन पर्दे के पीछे से एक अलग खेल खेला गया। उन्होंने दावा किया कि बैठक खत्म होने के कुछ ही घंटों बाद चुनाव आयोग ने चुनिंदा पत्रकारों को “ऑफ द रिकॉर्ड” जानकारी साझा की और यह भ्रम फैलाने की कोशिश की कि टीएमसी के सभी सवालों का समाधान कर दिया गया है। बनर्जी ने इसे लोकतांत्रिक संस्था की गरिमा के खिलाफ बताते हुए कहा कि उनके पास इस बात के डिजिटल सबूत मौजूद हैं कि आयोग ने उन सवालों का उत्तर नहीं दिया था। उन्होंने इसी संदर्भ में पूर्व में किए गए अपने ट्वीट का भी हवाला दिया, जिसमें उन्होंने आयोग की पारदर्शिता को चुनौती दी थी।
एसआईआर (SIR) और नागरिकता के मुद्दे पर टकराव
बैठक का एक सबसे विवादास्पद बिंदु ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ (SIR) यानी मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण रहा। अभिषेक बनर्जी ने आरोप लगाया कि जब भी वह या उनकी पार्टी मतदाता सूची में सुधार और एसआईआर की प्रक्रिया में हो रही विसंगतियों पर सवाल उठाते हैं, तो चुनाव आयोग के अधिकारी चर्चा का रुख मोड़ देते हैं। बनर्जी के अनुसार, आयोग जानबूझकर मतदाता सूची के तकनीकी सवालों को नागरिकता (Citizenship) के जटिल और राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दे से जोड़ देता है। उन्होंने इसे एक सोची-समझी रणनीति करार दिया, ताकि मूल समस्या पर जवाबदेही से बचा जा सके। टीएमसी नेता का कहना है कि मतदाता सूची में नाम जोड़ने या हटाने की प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए और इसे किसी अन्य राजनीतिक विमर्श के साथ नहीं मिलाया जाना चाहिए।
संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता पर सवाल
अभिषेक बनर्जी के इन बयानों ने एक बार फिर संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता और उनकी कार्यशैली पर बहस छेड़ दी है। टीएमसी महासचिव ने स्पष्ट रूप से कहा कि एक निष्पक्ष अंपायर की भूमिका निभाने के बजाय चुनाव आयोग का रवैया पक्षपातपूर्ण प्रतीत होता है। उन्होंने आरोप लगाया कि आयोग विपक्षी दलों की शिकायतों को गंभीरता से लेने के बजाय उन्हें खारिज करने या टालने की मुद्रा में रहता है। बनर्जी ने इस बात पर जोर दिया कि यदि देश की सबसे बड़ी चुनावी संस्था ही सवालों के घेरे में होगी, तो लोकतंत्र की नींव कमजोर होगी। उन्होंने चेतावनी दी कि तृणमूल कांग्रेस इन मुद्दों को केवल आयोग की फाइलों तक सीमित नहीं रखेगी, बल्कि जनता की अदालत में ले जाएगी और जरूरत पड़ी तो कानूनी विकल्पों पर भी विचार करेगी।
आगे की राह और टीएमसी का रुख
बैठक के बाद अभिषेक बनर्जी के कड़े रुख से यह साफ हो गया है कि आने वाले दिनों में टीएमसी और चुनाव आयोग के बीच टकराव और बढ़ सकता है। पार्टी अब इस मामले को संसद से लेकर सड़क तक उठाने की तैयारी में है। बनर्जी ने मीडिया से कहा कि किसी भी सवाल पर ठोस और संतोषजनक जवाब न मिलना यह दर्शाता है कि कहीं न कहीं कुछ छिपाया जा रहा है। तृणमूल कांग्रेस ने संकेत दिए हैं कि वे मतदाता सूची में सुधार की प्रक्रिया पर अपनी स्वतंत्र निगरानी जारी रखेंगे और आयोग पर दबाव बनाएंगे कि वह हर सवाल का सार्वजनिक और बिंदुवार जवाब दे। बंगाल की राजनीति के लिहाज से यह घटनाक्रम बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि चुनाव आयोग की हर कार्रवाई का सीधा असर राज्य के राजनीतिक भविष्य पर पड़ता है।