प्राथमिक शिक्षा वर्ग में मिलता है संस्कार निर्माण का प्रशिक्षण
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा संस्कार निर्माण की अभिनव पद्धति है। कार्यकर्ताओं को बौद्धिक, मानसिक और शारीरिक रूप से दक्ष बनाने के लिए यह प्रशिक्षण वर्ग लगाए जाते हैं। इस प्रशिक्षण वर्ग में युद्ध, दंड, सूर्य नमस्कार आदि के माध्यम से युवाओं को विषम परिस्थितियों में सामना करने की शिक्षा दी जाती है। वहीं शाखा में नियमित आने वाले प्रत्येक स्वयंसेवक का जीवन अपने आप अनुशासित हो जाता है। उपरोक्त बातें जनपद के बड़राव ब्लाक अंतर्गत एचएमपीजी कॉलेज में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्राथमिक प्रशिक्षण वर्ग में बुधवार को स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए गोरक्ष प्रांत के सह प्रांत प्रचारक सुरजीत ने कहा।
सुरजीत ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रमों में भाग लेने से स्वयंसेवकों के भीतर कार्यकर्ता का गुण विकसित होता है। वह अपने से अधिक राष्ट्र को महत्व देने लगता है। हम जो विचारधारा लेकर चलें वह इस देश की विचारधारा थी। हम विचार का प्रचार कर रहे थे। हमारा प्रमुख उद्देश्य है कि समाज को राष्ट्रीय विचारधारा पर खड़ा करना है। इस विचारधारा के अभाव में यह देश 800 वर्षों तक पराधीन रहा। आज भले ही जहां संघ की शाखा न इससे जुड़े लोग ना हों। वहां भी हमारी विचारधारा चल रही है। वर्तमान समय में प्रखर हिंदूवादी लोगों की संख्या समाज में बहुत अधिक है। भले ही वह संघ से न जुड़े हो। ऐसे लोगों को हम सज्जन शक्ति कहते हैं। समाज का हर वह व्यक्ति जो राष्ट्र के लिए समर्पित है। राष्ट्र की विचारधारा से जुड़ा है। समाज में हिंदुत्ववादी विचारधारा का तेजी से प्रचार-प्रसार बड़ा है। भले वह संघ के कार्यकर्ता ना हों लेकिन प्रखर हिंदूवादी हमसे ज्यादा हिंदुत्व का एजेंडा चलाते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 में हुई थी। तब से संघ लगातार समाज के निर्माण में अपनी महती भूमिका निभा रहा है।
उन्होने कहाकि 1925 में जब संघ प्रारम्भ हुआ, तो संघ के संस्थापक डा. हेडगेवार स्वयंसेवकों को सैन्य प्रशिक्षण देना चाहते थे। उनकी सोच थी कि अनुशासन तथा समूह भावना के निर्माण में यह सहायक हो सकता है; पर वे स्वयं इस बारे में कुछ नहीं जानते थे। इसलिए वे अपने सम्पर्क के कुछ पूर्व सैनिकों को बुलाकर रविवार की परेड में यह प्रशिक्षण दिलवाते थे। इसीलिए प्रारम्भ के कुछ वर्ष तक संघ में सेना की तरह अंग्रेजी आज्ञाएं, क्राॅस बैल्ट, कंधे पर आर.एस.एस का बैज आदि प्रचलित थे। ऐसी ही वेशभूषा पहने डा. हेडगेवार का एक चित्र भी बहुप्रचलित हैं। संघ के विकास और विस्तार के साथ क्रमशः अंग्रेजी के बदले संस्कृत आज्ञाओं का प्रचलन हुआ।
इस अवसर पर विभाग प्रचारक तुलसीराम , जिला प्रचारक राममोहन , जिला कार्यवाह विनोद ,सह जिला कार्यवाह वीरेंद्र , सहित बड़ी संख्या में स्वयंसेवक उपस्थित रहे।