अयोध्या में धर्म परिवर्तन: दो युवकों की नई शुरुआत
अयोध्या, उत्तर प्रदेश, 5 अक्टूबर 2025: उत्तर प्रदेश के अयोध्या में एक ऐसा कदम उठा है, जो धार्मिक आस्थाओं की गहराई को छू रहा है। दो युवकों ने अपनी जड़ों से किनारा काटते हुए एक नया रास्ता चुना, नाम बदले और नई पहचान अपनाई। यह फैसला किसी दबाव या विवाद से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक खोज से उपजा बताया जा रहा है। प्रसिद्ध संत प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचनों ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि उन्होंने पुरानी जिंदगी को पीछे छोड़ दिया। परिवार से दूरी, नई जिम्मेदारियां और आधिकारिक आवेदन—ये सब इस यात्रा का हिस्सा हैं। क्या यह व्यक्तिगत शांति की तलाश है या कुछ बड़ा संदेश? अयोध्या जैसे पवित्र स्थल पर यह घटना चर्चा का विषय बन गई है। आगे जानिए इसकी पूरी परतें, जो आस्था और निर्णय की जटिलताओं को उजागर करती हैं।
परिवर्तन का फैसला
अयोध्या के सोहावल क्षेत्र में रहने वाले दो युवक—अरशद सिद्दीकी और मोनू—ने हाल ही में सनातन धर्म अपनाने का ऐतिहासिक कदम उठाया। अरशद ने अपना नाम राकेश मौर्य रख लिया, जबकि मोनू अब मनीष के नाम से जाना जाएगा। दोनों ने स्पष्ट कहा कि यह निर्णय उनकी अपनी मर्जी से लिया गया है, बिना किसी बाहरी दबाव या लालच के। संत प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचनों ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया, जहां उन्होंने सनातन धर्म की शिक्षाओं में मानसिक शांति पाई। राकेश ने बताया कि 2014 से उनके अधिकांश मित्र गैर-मुस्लिम हैं, और उनका उठना-बैठना, दर्शन-भ्रमण सब उसी मित्रमंडली के साथ रहा। इससे हिंदू परंपराओं की ओर उनका झुकाव बढ़ा। मोनू ने कहा कि पुरानी बिरादरी में उन्हें असहज महसूस होता था, जबकि सनातन धर्म में उन्हें सुकून मिला। दोनों ने परिवार से संबंध तोड़ने का फैसला किया, क्योंकि पिछले आठ वर्षों से कोई भावनात्मक या सामाजिक जुड़ाव नहीं बचा। राकेश, जो विप्रो कंपनी में आईटी प्रोफेशनल हैं, ने 10 साल की नौकरी के दौरान भी यही अलगाव महसूस किया। यह परिवर्तन अयोध्या की आध्यात्मिक ऊर्जा से प्रेरित लगता है, जहां राम जन्मभूमि का महत्व सदैव चर्चा में रहता है।
आधिकारिक कदम
मान मिलन मंदिर के महंत परमात्मा दास और बजरंग दल मंत्री लालजी शर्मा ने प्रस्तुत किया। मंदिर ने इनकी ‘घर वापसी’ की पूरी जिम्मेदारी ली, जिसमें धार्मिक रीति-रिवाजों के साथ दीक्षा और आगे की देखभाल शामिल है। युवकों ने कहा कि अब वे पूर्ण श्रद्धा से हिंदू परंपराओं का पालन करेंगे—आरती, पूजा-पाठ और त्योहारों में भागीदारी। राकेश ने जोर देकर कहा कि परिवार को कोई आपत्ति नहीं, क्योंकि संबंध पहले से टूट चुके हैं। मोनू ने महाराज जी की कृपा का जिक्र करते हुए खुशी जताई। यह कदम अयोध्या प्रशासन के लिए भी महत्वपूर्ण है, जहां धार्मिक सद्भाव बनाए रखना प्राथमिकता है। स्थानीय मीडिया में वीडियो वायरल हो गया, जिसमें युवक अपनी बात रखते दिखे। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामले व्यक्तिगत होते हैं, लेकिन सामाजिक संदेश देते हैं। फिलहाल, डीएम कार्यालय ने आवेदन पर विचार शुरू कर दिया है।
नई जिंदगी की शुरुआत
अब राकेश और मनीष नई पहचान के साथ जीवन जीने को तैयार हैं। राकेश ने कहा, ‘हमने यह कदम आस्था से उठाया, और अब सनातन धर्म की परंपराओं से बंधे रहेंगे।’ मनीष ने जोड़ा, ‘हमें हिंदू धर्म अच्छा लगता है, यहां शांति है।’ मंदिर की जिम्मेदारी से उन्हें धार्मिक शिक्षा और सामाजिक समर्थन मिलेगा। अयोध्या में यह घटना सकारात्मक चर्चा पैदा कर रही है, जहां लोग आस्था की स्वतंत्रता पर बात कर रहे। हालांकि, कुछ सवाल भी उठे हैं—क्या यह व्यक्तिगत है या व्यापक ट्रेंड? युवकों ने स्पष्ट किया कि कोई राजनीतिक या सामुदायिक दबाव नहीं। आने वाले दिनों में वे मंदिर गतिविधियों में सक्रिय होंगे। यह कहानी आध्यात्मिक खोज की मिसाल है, जो दिखाती है कि धर्म व्यक्तिगत शांति का माध्यम हो सकता है। अयोध्या की मिट्टी में ऐसी कहानियां हमेशा फलती-फूलती रही हैं।
