बिहार में विद्यालय स्वच्छता प्रबंधन से मुंह चुरा रहा है शिक्षा विभाग: रंजन
इन दिनों विद्यालय के वर्ग कक्ष, परिसर और टॉयलेट- यूरिनल आदि की साफ-सफाई को लेकर शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के.के. पाठक के निर्देश पर विद्यालयों के निरीक्षण के लिए आनेवाले अधिकारी प्रधानाध्यापक को जमकर हड़का रहे हैं। शिक्षकों और प्रधानाध्यापकों को खूब खरी-खोटी सुनाई जा रही है।
उनसे शौचालय साफ करवाया जा रहा है, शौचालय की सफाई के खर्चों की राशि प्रधानाध्यापकों के वेतन से वसूले जा रहे हैं। जबकि वस्तु स्थिति यह है कि शिक्षा विभाग द्वारा विद्यालयों के वर्ग कक्ष और सम्पूर्ण परिसर सहित शौचालयों की साफ-सफाई के लिए अब तक ना तो कोई ठोस कार्यनीति बनाई गई है, ना ही प्रक्रियात्मक रूप से जिम्मेवारियों का निर्धारण किया गया है और ना ही अलग से वित्तीय प्रावधान किए गए हैं।
प्राथमिक शिक्षक साझा मंच से जुड़े मध्य विद्यालय बीहट के प्रधानाध्यापक रंजन कुमार कहते हैं कि समग्र शिक्षा अभियान एवं अन्य योजनाओं के तहत स्कूलों में जैसे-तैसे बिना किसी आदर्श मानक के शौचालयों के लिए संरचना तो बना दिए गए हैं। लेकिन इनमें से अधिकांशतः सहज व्यवहार योग्य नहीं होने के कारण यही संरचना विद्यालयों के लिए अभिशाप बने हुए हैं। 75 प्रतिशत से अधिक शौचालयों में फ्लशिंग के लिए प्रवाहित जल की व्यवस्था नहीं है।
विद्यालय की दैनिक जल संबंधी सभी प्रकार की जरूरतों सहित शौचालयों तक रनिंग वाटर की व्यवस्था बहाल करने के लिए समर्सिबल और नल आदि के अधिष्ठापन के लिए प्रति विद्यालय शुरुआती जरूरत के रूप में औसतन डेढ़ लाख रुपए की आपूर्ति अविलंब किए जाने की जरूरत है। इसके बाद सलाना मेंटेनेंस के लिए प्रतिवर्ष कम से कम दस हजार रूपये प्रति विद्यालय के लिए अलग से प्रावधान किए जाने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि पूरे बिहार के विद्यालयों में स्वच्छता कर्मियों की तैनाती शून्य है और सफाई के लिए सहायक उपकरणों एवम सामग्रियों के लिए कोई बजट अलग से नहीं दिया जाता है। सब-कुछ कामचलाऊ व्यवस्था के तहत विद्यालय समग्र विकास और आकस्मिकता निधि के रूप में मिलनेवाले उस कम्पोजिट ग्रांट के भरोसे छोड़ दिया गया है। जिस कंपोजिट ग्रांट पर पूरे साल के लिए स्कूल के कार्यालय व्यय, चॉक, डस्टर आदि सहित फर्नीचर, भवन इत्यादि के वार्षिक मेंटेनेंस तथा अन्य मिसलेनियस खर्चों का भारी दबाव पहले से है।
विगत दो वर्ष पहले तक विद्यालयों को मिलने वाले कम्पोजिट ग्रांट की राशि का मात्र दस प्रतिशत स्वच्छता मद में व्यय की अनुमति थी। विद्यालय प्रधानों द्वारा काफी हील हुज्जत करने और इसे अपर्याप्त बताए जाने पर ये लिमिट बढ़ाकर 25 प्रतिशत तो कर दिया गया, लेकिन अलग से बजट नहीं दिया गया। कंपोजिट ग्रांट की राशि पर विद्यालयी स्वच्छता की निर्भरता का परिणाम यह होता है कि एक तरफ विद्यालय की अन्य आवश्यक जरूरतों में कटौती हो जाती है और दूसरी तरफ विद्यालय की साफ-सफाई भी आदर्श स्थिति को प्राप्त नहीं कर पाती है।
कंपोजिट ग्रांट से अधिकांश स्कूलों को औसतन मिलनेवाले 75 हजार रूपये में मात्र 18 हजार 750 रूपये पूरे साल स्वच्छता के मद में खर्च के लिए अमूमन आधा साल बीतने के बाद मिलते हैं। प्रति दिन के ब्रेक अप में साल भर के 240 शिक्षण दिवस के आधार पर यह राशि तकरीबन 999 बच्चों के स्कूल के लिए तकरीबन 78 रूपए प्रतिदिन की होती है। जबकि केवल टॉयलेट एवम यूरिनल की (आदर्श मानक दो बार के विरुद्ध) कम से कम एक बार सफाई के लिए प्रतिदिन आउटसोर्सिंग से स्वीपर की सेवा लेने पर औसतन तीन सौ रूपये से अधिक व्यय होता है।
सफाई के लिए सहायक उपकरणों एवं सामग्रियों (क्लीनर, फिनाइल, एसिड आदि) की व्यवस्था में दो सौ रूपये प्रतिदिन अलग से खर्च होते हैं। टॉयलेट एवं यूरिनल की मरम्मती और रखरखाव तथा वर्ग कक्ष सहित पूरे परिसर की स्वच्छता आदि का खर्च भी जोड़ा जाए तो प्रतिदिन के ब्रेक अप का औसतन खर्च एक हजार रूपये आकलित होने पर पूरे साल एक स्कूल के लिए करीब ढाई लाख रुपए खर्च की आवश्यकता केवल स्वच्छता मद में पड़ेगी।
बिहार सरकार के शिक्षा विभाग से सूचना अधिकार के तहत विद्यालयों की स्वच्छता से संबंधित आधिकारिक जिम्मेवारियों के साथ की गई तैनाती और नियामक प्रावधानों के संबंध में जानकारी मांगे जाने पर शिक्षा विभाग के संयुक्त निदेशक ने जो सूचना दी है वह हैरतअंगेज है। संयुक्त निदेशक ने साफ तौर पर स्कूलों की स्वच्छता के सवाल पर विभागीय जिम्मेदारियों से एक तरह से पल्ला झाड़ते हुए ये कहा है कि विभाग द्वारा आद्यावधि विद्यालयों की सफाई एवं स्वच्छता की व्यवस्था हेतु नियोजन के संबंध में पूर्व से कोई आदेश निर्गत नहीं है।
बेगूसराय से फाइव स्टार रैंकिंग के साथ बिहार स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार विजेता मध्य विद्यालय बीहट की वरिष्ठ अध्यापक और प्राथमिक शिक्षक साझा मंच की समन्वय समिति सदस्य अनुपमा सिंह, उत्कृष्ट मध्य विद्यालय मोहनपुर के प्रधानाध्यापक एवं साझा मंच के समन्वय समिति सदस्य विनय कुमार तथा आदर्श मध्य विद्यालय रतौली के प्रधानाध्यापक एवं साझा मंच के समन्वय समिति सदस्य धनंजय कुमार ने कहा कि स्कूलों की स्वच्छता के लिए सरकार के स्तर से पर्याप्त बजटीय प्रावधानों के साथ ठोस कार्यनीति बनाए जाने की जरूरत है।
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अनुकूल विद्यालयी वातावरण के लिए स्वच्छता के अनिवार्य जरूरतों की अनदेखी करनेवाले अधिकारी, बिना किसी ठोस नीति एवं निर्णय के प्रधानाध्यापकों पर जिम्मेवारी थोपकर उन्हें अकारण ही प्रताड़ित कर रहे हैं। शिक्षा विभाग में केवल स्वच्छता और सुरक्षा को छोड़कर बाकी सभी कार्य एमडीएम, समग्र शिक्षा, असैनिक कार्य, समावेशी शिक्षा, कौशल उन्नयन, प्रशिक्षण, योजना लेखा आदि के लिए अलग संभाग हैं।
इन सबों के लिए कमोबेश राज्य से लेकर जिला, प्रखंड एवं विद्यालय स्तर तक आधिकारिक जिम्मेवारियों के साथ मानव बलों की तैनाती है, अलग से बजट है। तो फिर पर्याप्त कार्य नीति, वित्तीय आबंटन और सहायक बलों की तैनाती संबंधी प्रावधानों के उपबंध किए बिना किसी स्कूल की स्वच्छता के लिए सिर्फ प्रधानाध्यापक को जबरन जिम्मेवार मानते हुए उन्हें जलील करना, उनसे शौचालय साफ करवाना, वेतन की कटौती या स्थगित करने का आदेश निर्गत करते हुए प्रधानाध्यापकों को दंडित करना कहां तक उचित है।
व्यक्तिगत पहल और प्रयासों के दम पर काफी मशक्कत के साथ विद्यालयों को आदर्श स्थिति में बनाए रखनेवाले राज्य के सैकड़ों प्रधानाध्यापकों का कहना है कि विद्यालयी स्वच्छता को लेकर कारगर पॉलिसी बनाने की मांग करते हैं। इसके साथ सरकारी विद्यालयों में स्वच्छता और सुरक्षा के आदर्श मानकों की एक समान उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए विभाग के स्तर से अविलंब जिम्मेवारी लेने, पर्याप्त बजटीय प्रावधान करने और विद्यालय स्तर पर यथेष्ठ संख्या में स्वच्छता कर्मियों की तैनाती के प्रावधान करते हुए उसे अमल में लाये जाने की सख्त जरूरत है।