संसद सत्र का समापन: चाय की चुस्कियों के साथ पिघली सियासी बर्फ, पीएम मोदी और प्रियंका गांधी की अनौपचारिक मुलाकात ने खींचा सबका ध्यान
नई दिल्ली: संसद के शीतकालीन सत्र का आज अनिश्चितकाल के लिए समापन हो गया। सत्र के दौरान सदन के भीतर पक्ष-विपक्ष के बीच जो तीखापन और हंगामे की स्थिति बनी हुई थी, समापन के बाद की तस्वीरों ने एक अलग ही कहानी बयां की। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के कक्ष में आयोजित पारंपरिक ‘टी-मीटिंग’ (चाय बैठक) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वायनाड से नवनिर्वाचित सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा के बीच की अनौपचारिक उपस्थिति ने सोशल मीडिया और राजनीतिक हलकों में चर्चाओं का बाजार गर्म कर दिया है। यह बैठक केवल शिष्टाचार का हिस्सा नहीं थी, बल्कि इसे भारतीय लोकतंत्र की उस खूबसूरती के रूप में देखा जा रहा है जहां सदन के भीतर के मतभेद सदन के बाहर व्यक्तिगत सौहार्द में बदल जाते हैं।
हंगामे के बीच सत्र का समापन और सदन की कार्यवाही
संसद के शीतकालीन सत्र का अंतिम दिन भी हंगामे की भेंट चढ़ गया। लोकसभा की कार्यवाही शुरू होते ही विपक्षी दलों ने विभिन्न मुद्दों पर नारेबाजी शुरू कर दी, जिसके चलते कोई भी विधायी कार्य संपन्न नहीं हो सका। हालात को देखते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सदन की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने की घोषणा कर दी। कुछ ही समय बाद, राज्यसभा में भी सभापति सीपी राधाकृष्णन ने उच्च सदन की कार्यवाही को स्थगित कर दिया। विधायी कार्यों के लिहाज से अंतिम दिन भले ही निराशाजनक रहा हो, लेकिन सत्र के बाद की औपचारिकताओं ने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया।
लोकसभा अध्यक्ष की चाय बैठक: पीएम मोदी और विपक्षी नेताओं का जमावड़ा
परंपरानुसार, सत्र के समापन पर लोकसभा अध्यक्ष सदन के प्रमुख नेताओं को अपने कक्ष में चाय पर आमंत्रित करते हैं। इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विशेष रूप से शामिल हुए। उनके साथ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, संसदीय कार्य मंत्री और अन्य वरिष्ठ मंत्री मौजूद थे। विपक्ष की ओर से पहली बार लोकसभा का हिस्सा बनीं प्रियंका गांधी वाड्रा, समाजवादी पार्टी के सांसद धर्मेंद्र यादव और अन्य क्षेत्रीय दलों के दिग्गज नेता भी इस अनौपचारिक चर्चा का हिस्सा बने।

यह बैठक इसलिए भी महत्वपूर्ण थी क्योंकि पिछले मानसून सत्र के समापन पर विपक्ष ने इस पारंपरिक बैठक का बहिष्कार किया था, लेकिन इस बार प्रियंका गांधी की उपस्थिति ने एक सकारात्मक संकेत दिया।
सीटिंग अरेंजमेंट और प्रियंका गांधी की राजनाथ सिंह के साथ चर्चा
इस अनौपचारिक बैठक की सबसे चर्चित तस्वीर वह थी जिसमें प्रियंका गांधी को केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बगल वाली सीट दी गई थी। उसी सोफे पर रक्षा मंत्री के ठीक बगल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बैठे थे। देश के शीर्ष नेताओं के बीच बैठी प्रियंका गांधी की यह तस्वीर सत्ता और विपक्ष के बीच संवाद की संभावनाओं को दर्शाती है। चश्मदीदों के अनुसार, बैठक के दौरान माहौल काफी खुशनुमा था और नेताओं के बीच हंसी-मजाक भी हुआ। प्रधानमंत्री मोदी और अन्य वरिष्ठ मंत्रियों ने प्रियंका गांधी का स्वागत किया, जो वायनाड उपचुनाव जीतकर पहली बार निचले सदन में पहुंची हैं।
नितिन गडकरी का आतिथ्य: जब सदन की शिकायत भोजन की मेज तक पहुंची
सत्र के समापन से एक दिन पहले भी संसद परिसर में एक दिलचस्प वाकया देखने को मिला था। लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान प्रियंका गांधी ने सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी से शिकायत की थी कि उन्हें अपनी समस्याओं के लिए समय नहीं मिल पा रहा है। इस पर गडकरी ने सदन में बड़ी ही शालीनता से जवाब दिया था कि उनके कार्यालय के दरवाजे सभी सांसदों के लिए हमेशा खुले रहते हैं। उन्होंने प्रियंका गांधी को प्रश्नकाल के बाद अपने कार्यालय आने का न्योता दिया।
जब प्रियंका गांधी गडकरी के कार्यालय पहुंचीं, तो वहां का नजारा बेहद सौहार्दपूर्ण था। नितिन गडकरी ने न केवल प्रियंका गांधी की समस्याओं को सुना, बल्कि उन्हें एक ‘स्वादिष्ट डिश’ भी खिलाई। इस मुलाकात की चर्चा राजनीतिक गलियारों में खूब हुई, क्योंकि गडकरी को उनकी कार्यशैली और विपक्षी सांसदों के प्रति सम्मानजनक व्यवहार के लिए जाना जाता है।
लोकतंत्र की खूबसूरती: मतभेदों के बीच व्यक्तिगत सम्मान
शीतकालीन सत्र के दौरान संसद में वक्फ संशोधन विधेयक, मणिपुर हिंसा और आर्थिक मुद्दों पर जमकर टकराव देखने को मिला। कई मौकों पर विपक्ष वेल में जाकर नारेबाजी करता दिखा। लेकिन सत्र खत्म होने के बाद जो तस्वीरें सामने आईं, उनमें राहुल गांधी के साथ प्रियंका गांधी, राजनाथ सिंह के साथ पीएम मोदी और धर्मेंद्र यादव जैसे नेता मुस्कुराते हुए बातचीत करते नजर आए। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सदन में वैचारिक मतभेद होना लोकतंत्र की जीवंतता का प्रमाण है, लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर संवाद बने रहना स्वस्थ लोकतंत्र की पहचान है।
अध्यक्ष ओम बिरला के कक्ष में हुई यह मुलाकात इस संदेश के साथ समाप्त हुई कि राष्ट्रहित के मुद्दों पर भले ही रास्ते अलग हों, लेकिन संवैधानिक पदों की गरिमा और आपसी सम्मान सर्वोपरि है। प्रियंका गांधी की इस सक्रिय भागीदारी को कांग्रेस की ओर से एक नए युग की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है, जहां वे केवल आक्रामक नहीं, बल्कि संवाद के लिए भी तत्पर नजर आ रही हैं।