ईरान से पुराने संबंध, इजरायल के साथ कारोबारी रिश्ते… मिडिल ईस्ट की जंग को लेकर भारत का स्टैंड क्या है?
ईरान के साथ लंबे समय से भारत के रिश्ते बने हुए हैं और उसके साथ गहरे सांस्कृतिक और सभ्यतागत संबंध हैं. इसी तरह पिछले दशक में इजरायल के साथ भारत के संबंध, खासतौर पर डिफेंस और टेक्नोलॉजी सेक्टर में काफी मजबूत हुए हैं.
इजरायल के साथ संघर्ष के दौरान ईरान ने पिछले हफ्ते एक विशेष इशारे में नागरिकों को निकालने के लिए भारत के लिए अपना एयर स्पेस खोल दिया था. कुछ दिनों बाद जब अमेरिका ने ईरान की अहम परमाणु ठिकानों पर बमबारी की, तो भारत उन पहले देशों में से था, जिसने तेहरान को फोन किया. ये घटनाक्रम दोनों देशों के बीच गहरे संबंधों को दिखाते हैं, लेकिन ईरान और इजरायल के साथ संतुलन बनाने की नीति भारत को मुश्किल हालात में डाल देती है.
भारत रिश्तों में बना रहा संतुलन
ईरान, भारत का पुराना दोस्त है और उसके साथ गहरे सांस्कृतिक और सभ्यतागत संबंध हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2014 में सत्ता में आने के बाद से इजरायल के साथ संबंध, खासतौर पर डिफेंस और टेक्नोलॉजी सेक्टर में काफी मजबूत हुए हैं. ऐसे समय में जब ईरान खुद को अलग-थलग पाता है, भारत ने किसी पक्ष को चुनने से परहेज किया है और ‘वार्ता और कूटनीति’ के अपने मंत्र पर कायम रहा है.
यह तब है, जब ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई कश्मीर मुद्दे और ‘अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार’ को लेकर भारत की कभी-कभार आलोचना करते रहे हैं. हालांकि, ईरान ने कभी भी भारतीय हितों के खिलाफ़ काम नहीं किया. ईरान में भारत की अहम हिस्सेदारी है, खास तौर पर चाबहार बंदरगाह परियोजना में. भारत इस देश को, जो अफगानिस्तान और पाकिस्तान के साथ सीमा साझा करता है, क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में देखता है. यहां तक कि ईरान पर अमेरिका के प्रतिबंध भी दोनों देशों के बीच संबंधों को पटरी से उतारने में विफल रहे हैं.
चाबहार में ईरान का साझेदार
अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद से भारत ने ईरान से कच्चे तेल का आयात बंद कर दिया है और अपनी ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति के लिए रूस की ओर रुख कर रहा है. ऐसे में भारत और ईरान के बीच कनेक्टिविटी उनके संबंधों का आधार बनती है. चाबहार बंदरगाह भारत की कनेक्टिविटी योजनाओं के साथ-साथ आक्रामक चीन के सामने मध्य एशिया में अपने भू-राजनीतिक प्रभाव का विस्तार करने के लिए भी अहम है.
पाकिस्तान को दरकिनार कर अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक एक वैकल्पिक रूट देने के अलावा, चाबहार चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) और पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के जवाब की तरह है. इसके अलावा बंदरगाह, जिसके विकास के लिए भारत ने 10 साल का करार किया है, के इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (NSTC) से जुड़ने की उम्मीद है. इससे भारत यूरोप के और करीब आ जाएगा. होर्मुज की खाड़ी के पास बंदरगाह की स्थिति, जो वैश्विक तेल व्यापार का 20% हिस्सा है, इसके सामरिक महत्व को बढ़ाती है.
संयुक्त राष्ट्र में एक-दूसरे का समर्थन
भारत ने शंघाई सहयोग संगठन और ब्रिक्स जैसे प्रमुख समूहों में ईरान की सदस्यता को सुगम बनाने में भी अहम भूमिका निभाई है. सांस्कृतिक संबंधों को गहरा करने के लिए भारत ने नई शिक्षा नीति के तहत नौ शास्त्रीय भाषाओं में से एक के रूप में फ़ारसी को भी शामिल किया है. महत्वपूर्ण मोड़ पर ईरान की ओर से लगातार समर्थन का इतिहास भी रहा है. 1994 में ईरान ने कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (UNCHR) में भारत की आलोचना करने वाले प्रस्ताव को रोकने में मदद की थी.
इस प्रस्ताव को इस्लामिक देशों के संगठन (OIC) की तरफ से आगे बढ़ाया जा रहा था, जिसे प्रभावशाली पश्चिमी देशों का समर्थन हासिल था. अगर यह प्रस्ताव पारित हो जाता, तो भारत के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगाने के लिए यह प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जाता. हालांकि, ईरान की मदद को अनदेखा नहीं किया गया. 2023 में भारत उन 30 देशों में शामिल था, जिन्होंने ईरान में मानवाधिकार की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया था.
पिछले साल भी, भारत ने 22 वर्षीय महसा अमिनी की हिरासत में हुई मौत के विरोध में ईरान में आंदोलन कर रहे प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कथित मानवाधिकार उल्लंघन की जांच के लिए एक फैक्ट फाइंडिंग मिशन स्थापित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के प्रस्ताव पर मतदान से खुद को दूर रखा था.
साल 2011 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र की ओर से वॉशिंगटन में सऊदी राजदूत की हत्या की कथित साजिश की निंदा करने वाले प्रस्ताव से भी खुद को दूर रखा था, जिसके लिए अमेरिका ने ईरानी प्रतिष्ठान के तत्वों को जिम्मेदार ठहराया था.
ईरान से सदियों पुराने रिश्ते
विदेश मंत्रालय ने ईरान पर अपने ताजा बयान में इस संबंध का सटीक जिक्र किया है. नोट में कहा गया है, ‘भारत और ईरान के बीच सदियों से चली आ रही इंटरेक्टिव एक्टिविटीज का इतिहास है. समकालीन संबंध इन ऐतिहासिक और सभ्यतागत संबंधों की ताकत पर आधारित हैं, और उच्च स्तरीय आदान-प्रदान, वाणिज्यिक और संपर्क सहयोग, सांस्कृतिक और लोगों के बीच मजबूत संबंधों के साथ आगे भी बढ़ रहे हैं.’
इसके अलावा, भारत और ईरान तालिबान के सुन्नी उग्रवाद और अफगानिस्तान में पाकिस्तान की भूमिका के बारे में एक जैसी चिंताएं साझा करते हैं. वैसे तो भारत और ईरान के बीच राजनयिक संबंध 1950 में ही स्थापित हो गए थे, लेकिन इन संबंधों में तेजी तब आई जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अप्रैल 2001 में ईरान का दौरा किया और द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए तेहरान डिक्लेरेशन पर साइन किए.
हालांकि, प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में संबंधों में मजबूती आई, जो 2016 में पिछले 15 साल में ईरान की यात्रा करने वाले पहले प्रधानमंत्री बने. अपनी यात्रा के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी ने भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच ट्रेड, ट्रांसपोर्ट और ट्रांजिट पर त्रिपक्षीय समझौते पर साइन किए थे.
