नीतीश सरकार को सुप्रीम कोर्ट से झटका: तांती-तंतवा जाति को अनुसूचित जाति से हटाया, रिव्यू पिटीशन दाखिल
बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने पान-तांती जाति को अनुसूचित जाति (एससी) में शामिल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के जुलाई 2024 के फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटीशन दाखिल की है। सामान्य प्रशासन विभाग के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुपालन में तांती-तंतवा जाति को अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की सूची में क्रमांक 33 पर पुनः शामिल किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
जुलाई 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार के 1 जुलाई 2015 के उस संकल्प को रद्द कर दिया था, जिसमें तांती-तंतवा जाति को अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) से हटाकर अनुसूचित जाति (एससी) में शामिल किया गया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत राज्यों को अनुसूचित जाति की सूची में बदलाव करने का अधिकार नहीं है, और यह कार्य केवल संसद के पास है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा कि किसी अन्य जाति को एससी सूची में जोड़ने से अनुसूचित जातियों के अधिकारों का हनन होता है।
कोर्ट के आदेश का असर
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि पिछले नौ वर्षों में तांती-तंतवा जाति के जिन लोगों ने एससी कोटे के तहत लाभ प्राप्त किया, उन्हें अब ईबीसी कोटे में समायोजित किया जाए। इससे खाली होने वाली सीटें और पद अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों से भरे जाएंगे। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस अवधि में नौकरी पाने वाले तांती-तंतवा समुदाय के लोगों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।
पटना हाईकोर्ट में शुरू हुई थी लड़ाई
2015 में बिहार सरकार ने मुंगेरी लाल आयोग की सिफारिश के आधार पर तांती-तंतवा को पान-स्वासी जाति के साथ अनुसूचित जाति की सूची में शामिल किया था। इसके खिलाफ डॉ. भीमराव आंबेडकर विचार मंच और आशीष रजक सहित अन्य ने पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट ने 3 अप्रैल 2017 को सरकार के फैसले में हस्तक्षेप से इनकार करते हुए याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जहां सरकार को झटका लगा।
नीतीश सरकार की रिव्यू पिटीशन
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बिहार सरकार ने तांती-तंतवा को ईबीसी सूची में शामिल करने की अधिसूचना जारी कर दी, लेकिन अब इस फैसले को चुनौती देते हुए रिव्यू पिटीशन दाखिल की है। सरकार का तर्क है कि तांती-तंतवा को अनुसूचित जाति में शामिल करने का निर्णय सामाजिक-आर्थिक आधार पर लिया गया था।
सियासी और सामाजिक असर
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने नीतीश कुमार की सामाजिक इंजीनियरिंग को झटका दिया है। तांती-तंतवा समुदाय, जो बिहार में अति पिछड़ा वर्ग का हिस्सा रहा है, अब पुनः ईबीसी श्रेणी में शामिल हो गया है। इस फैसले से बिहार में आरक्षण नीति और सामाजिक न्याय की राजनीति पर नए सवाल उठ रहे हैं।
