नेपाल की राजनीति में बड़ा उलटफेर: बालेन शाह बने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार, RSP के साथ किया ऐतिहासिक समझौता
काठमांडू: नेपाल के राजनीतिक परिदृश्य में रविवार को एक ऐसा घटनाक्रम हुआ जिसने देश की पारंपरिक राजनीति की नींव हिला दी है। काठमांडू महानगरपालिका के बेहद लोकप्रिय मेयर बालेंद्र शाह, जिन्हें जनता प्यार से ‘बालेन’ कहती है, अब देश के अगले प्रधानमंत्री पद के आधिकारिक चेहरा बन गए हैं। एक नाटकीय मोड़ में, बालेन शाह और रवि लामिछाने के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी (RSP) के बीच एक ऐतिहासिक सात सूत्रीय समझौता हुआ है। इस समझौते के तहत, आगामी 5 मार्च को होने वाले आम चुनावों में बालेन शाह न केवल संसदीय दल के नेता होंगे, बल्कि गठबंधन की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में जनता के बीच जाएंगे।
यह घटनाक्रम शनिवार रात भर चली लंबी और गहन चर्चाओं का परिणाम है। राजधानी काठमांडू में हुई इस बैठक में दोनों पक्षों ने नेपाल के राजनीतिक भविष्य को एक नई दिशा देने पर सहमति व्यक्त की। समझौते के सबसे महत्वपूर्ण बिंदु के अनुसार, बालेन शाह और उनका पूरा समूह अब चुनाव आयोग द्वारा RSP को आवंटित चुनाव चिन्ह ‘घंटी’ पर चुनाव लड़ेगा। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह विलय और गठबंधन नेपाल के इतिहास में एक युवा क्रांति की शुरुआत है, क्योंकि इसमें दो ऐसे नेता साथ आए हैं जिन्होंने पिछले कुछ वर्षों में स्थापित दलों को कड़ी चुनौती दी है।
व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं से ऊपर देश की जरूरत
इस ऐतिहासिक समझौते के बाद, RSP के अध्यक्ष रवि लामिछाने ने अपनी प्रतिक्रिया साझा करते हुए इसे राष्ट्रहित में लिया गया फैसला बताया। लामिछाने ने रविवार सुबह एक फेसबुक पोस्ट के माध्यम से देश को संबोधित करते हुए कहा कि वर्तमान समय में व्यक्तिगत नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से कहीं अधिक महत्वपूर्ण देश की जरूरतें हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि बालेन शाह को प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाना किसी राजनीतिक सौदेबाजी का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह नेपाल की उस युवा पीढ़ी की आवाज है जो व्यवस्था परिवर्तन चाहती है।
समझौते के तहत यह भी तय किया गया है कि पार्टी का नाम ‘राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी’ ही रहेगा और इसका झंडा व चुनाव चिन्ह भी अपरिवर्तित रहेगा। रवि लामिछाने भंग हो चुकी प्रतिनिधि सभा में चौथी सबसे बड़ी पार्टी के अध्यक्ष के रूप में अपनी भूमिका निभाते रहेंगे, जबकि बालेन शाह विधायी और कार्यकारी नेतृत्व का मोर्चा संभालेंगे। यह तालमेल इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि बालेन शाह की लोकप्रियता काठमांडू के शहरी युवाओं के बीच चरम पर है, जबकि लामिछाने के पास एक मजबूत सांगठनिक ढांचा और ग्रामीण क्षेत्रों में पकड़ है।
जेनरेशन जेड (Gen Z) के आंदोलन को मिली राजनीतिक पहचान
नेपाल में पिछले कुछ महीनों से भ्रष्टाचार और कुशासन के खिलाफ ‘जेनरेशन जेड’ यानी युवाओं का एक अभूतपूर्व आंदोलन चल रहा है। बालेन शाह इस आंदोलन के सबसे बड़े समर्थक रहे हैं। हालांकि उन्होंने हमेशा प्रदर्शनकारियों से हिंसा से दूर रहने की अपील की, लेकिन उन्होंने उनकी मांगों को नैतिक और वैचारिक समर्थन देना कभी बंद नहीं किया। रविवार को हुए समझौते में इस आंदोलन का स्पष्ट प्रभाव दिखाई दिया। समझौते के आधिकारिक दस्तावेजों में कहा गया है कि दोनों पक्षों (बालेन और RSP) ने भ्रष्टाचार के खिलाफ युवाओं द्वारा शुरू किए गए इस आंदोलन की पूरी जिम्मेदारी ली है।
गठबंधन ने यह प्रतिबद्धता जताई है कि वे उन सभी मांगों को पूरा करेंगे जो जेनरेशन जेड के प्रदर्शनकारियों ने सड़क पर उतरकर उठाई थीं। इसमें आंदोलन के दौरान घायल हुए युवाओं के प्रति सहानुभूति और उनके लिए न्याय सुनिश्चित करना भी शामिल है। पर्यवेक्षकों का मानना है कि सितंबर के उस आंदोलन ने, जिसने केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार को गिराने में मुख्य भूमिका निभाई थी, अब एक औपचारिक राजनीतिक मंच पा लिया है। यह गठबंधन अब उन सभी उभरती हुई शक्तियों का केंद्र बन गया है जो नेपाल की पारंपरिक सत्ता संरचना को चुनौती दे रही हैं।
कुलमान घिसिंग की संभावित एंट्री और भविष्य की रणनीति
जैसे ही बालेन और लामिछाने के बीच समझौते की खबर फैली, नेपाल की राजनीति में एक और नाम की चर्चा तेज हो गई है—कुलमान घिसिंग। वर्तमान ऊर्जा और जल संसाधन मंत्री और नेपाल में ‘लोडशेडिंग खत्म करने वाले नायक’ के रूप में जाने जाने वाले कुलमान घिसिंग ने हाल ही में ‘उज्यालो नेपाल पार्टी’ (UNP) का गठन किया है। सूत्रों के अनुसार, घिसिंग और बालेन के बीच एकता और सहयोग को लेकर कई दौर की बातचीत हो चुकी है। हालांकि UNP ने अभी तक इस गठबंधन में आधिकारिक रूप से शामिल होने का फैसला नहीं सुनाया है, लेकिन राजनीतिक हलकों में इसकी संभावना बहुत अधिक मानी जा रही है।
यदि कुलमान घिसिंग भी इस मोर्चे में शामिल होते हैं, तो यह नेपाल के चुनावी इतिहास का सबसे शक्तिशाली ‘तीसरा मोर्चा’ बन सकता है। इससे न केवल युवाओं का समर्थन इस गठबंधन को मिलेगा, बल्कि मध्यम वर्ग और विकास की चाह रखने वाले मतदाताओं का झुकाव भी इसी ओर होगा। बालेन शाह की टीम का RSP में विलय होने के बाद, अब यह उम्मीद की जा रही है कि बड़ी संख्या में वे स्वतंत्र उम्मीदवार और युवा कार्यकर्ता भी इस ‘घंटी’ चुनाव चिन्ह के नीचे आएंगे जो अब तक बिखरे हुए थे।
चुनावी समीकरण और पारंपरिक दलों की चिंता
5 मार्च को होने वाले चुनाव अब नेपाल के लिए महज एक संवैधानिक प्रक्रिया नहीं रह गए हैं, बल्कि यह पुरानी पीढ़ी बनाम नई पीढ़ी का मुकाबला बन गया है। बालेन शाह की 35 वर्ष की आयु में प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी ने नेपाली कांग्रेस और CPN-UML जैसे पारंपरिक दलों के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। बालेन ने मेयर के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान जिस तरह से काठमांडू में प्रशासनिक सुधार किए और अतिक्रमण के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया, उसने उन्हें एक ‘डूअर’ (काम करने वाला नेता) की छवि दी है।
विपक्षी दलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि बालेन और रवि लामिछाने का यह गठबंधन सोशल मीडिया और जमीनी स्तर पर युवाओं के साथ सीधा संवाद कर रहा है। सितंबर आंदोलन के बाद देश में जो सरकार विरोधी लहर है, उसका फायदा सीधे तौर पर इस नए गठबंधन को मिलने की संभावना है। विशेषज्ञों का कहना है कि नेपाल का मतदाता अब पुराने चेहरों और बार-बार टूटने-बनने वाली सरकारों से थक चुका है। ऐसे में बालेन शाह का ‘विजन’ और RSP का ‘आधार’ एक मजबूत विकल्प पेश कर रहा है।
निष्कर्ष: एक नए युग की दहलीज पर नेपाल
नेपाल के राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बालेन शाह और रवि लामिछाने का एक साथ आना केवल एक चुनावी गठबंधन नहीं है, बल्कि यह एक वैचारिक मिलन है। यह समझौता उस नाराजगी का परिणाम है जो नेपाली जनता में भ्रष्टाचार और राजनीतिक अस्थिरता को लेकर है। बालेन शाह ने मेयर रहते हुए जिस निर्भीकता का परिचय दिया, अब वे उसे राष्ट्रीय स्तर पर आजमाने की तैयारी में हैं।
जैसे-जैसे 5 मार्च की तारीख नजदीक आएगी, नेपाल की राजनीति में और भी बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं। क्या कुलमान घिसिंग इस गठबंधन का हिस्सा बनेंगे? क्या युवा पीढ़ी वास्तव में मतदान केंद्रों तक पहुंचकर इस गठबंधन को सत्ता तक पहुंचाएगी? ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब आने वाले कुछ महीनों में मिलेगा। फिलहाल, काठमांडू की सड़कों से लेकर हिमालय की वादियों तक, केवल एक ही चर्चा है—बालेन शाह का प्रधानमंत्री पद की ओर बढ़ता कदम। यह नेपाल के लोकतंत्र के लिए एक नया अध्याय साबित हो सकता है, जहाँ युवा नेतृत्व अब देश की कमान संभालने के लिए पूरी तरह तैयार है।