• December 25, 2025

ट्रंप के ‘टैरिफ युद्ध’ पर भारी पड़ा ‘मेड इन इंडिया’: 50% आयात शुल्क के बावजूद अमेरिका को निर्यात में 22.6% का उछाल, टूट गए पिछले 10 साल के रिकॉर्ड

नई दिल्ली/वाशिंगटन | 18 दिसंबर, 2025

दुनिया की दो सबसे बड़ी लोकतांत्रिक अर्थव्यवस्थाओं—भारत और अमेरिका—के बीच व्यापारिक संबंध इन दिनों एक अग्निपरीक्षा से गुजर रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए 50 फीसदी तक के भारी आयात शुल्क (Import Duty) के कारण आशंका जताई जा रही थी कि भारतीय निर्यात धराशायी हो जाएगा। लेकिन, नवंबर 2025 के व्यापारिक आंकड़ों ने पूरी दुनिया के अर्थशास्त्रियों को चौंका दिया है।

तमाम बाधाओं और टैरिफ की ऊंची दीवारों के बावजूद, भारत का अमेरिका को निर्यात न केवल संभला है, बल्कि इसमें 22.6 फीसदी की ऐतिहासिक वृद्धि दर्ज की गई है। नवंबर महीने में भारत का कुल मर्चेंडाइज निर्यात 38.13 अरब डॉलर रहा, जिसने पिछले एक दशक के सभी रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए हैं।

टैरिफ का गणित: ट्रंप की सख्ती और भारत की चुनौती

डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनते ही ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति के तहत भारत पर व्यापारिक हमला तेज कर दिया था। इसके पीछे मुख्य रूप से दो कारण दिए गए:

  1. व्यापार घाटा: अमेरिका को हो रहे व्यापार घाटे को कम करने के लिए पहले 25% टैरिफ लगाया गया।

  2. रूस-तेल दंड: भारत द्वारा रूस से कच्चे तेल की खरीद जारी रखने पर दंड स्वरूप 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाया गया।

27 अगस्त 2025 से प्रभावी हुए इस कुल 50% शुल्क के कारण सितंबर और अक्टूबर में भारतीय निर्यात में भारी गिरावट (लगभग 12%) देखी गई। लेकिन नवंबर के आंकड़ों ने कहानी पूरी तरह पलट दी है।

नवंबर 2025: एक निर्णायक मोड़

नवंबर माह के आंकड़े भारतीय अर्थव्यवस्था की ‘लचीली शक्ति’ (Resilience) का प्रमाण हैं:

  • निर्यात में उछाल: नवंबर 2024 में जो निर्यात 31.94 अरब डॉलर था, वह नवंबर 2025 में बढ़कर 38.13 अरब डॉलर पहुंच गया।

  • व्यापार घाटे में रिकॉर्ड कमी: भारत का व्यापार घाटा (Trade Deficit) 17.06 अरब डॉलर से गिरकर महज 6.6 अरब डॉलर पर आ गया। यह 61% की भारी गिरावट है, जो पिछले कई वर्षों का सबसे निचला स्तर है।

आखिर कैसे मुमकिन हुआ यह करिश्मा? (रणनीतिक विश्लेषण)

ट्रंप के टैरिफ के बावजूद निर्यात बढ़ने के पीछे तीन मुख्य रणनीतिक कारण रहे हैं:

क. लाभ के मार्जिन की कुर्बानी (Profit Margin Absorption)

भारतीय निर्यातक वर्तमान में “बाजार बचाने” की रणनीति पर काम कर रहे हैं। यदि किसी वस्तु की कीमत 10 डॉलर है और उस पर 5 डॉलर का टैक्स लग रहा है, तो अमेरिकी बाजार में वह 15 डॉलर की हो जाएगी। ऐसे में थाईलैंड या वियतनाम जैसे कम टैक्स वाले देश भारत को पछाड़ सकते हैं।

  • समाधान: भारतीय निर्यातकों ने अपनी लागत और मुनाफे को घटाकर उत्पाद को 6-7 डॉलर में ही बेचना शुरू किया, ताकि टैक्स लगने के बाद भी वह अमेरिकी उपभोक्ता को 10-11 डॉलर में ही मिले। वाणिज्य सचिव के अनुसार, भारतीय आपूर्तिकर्ता टैरिफ का अधिकांश बोझ खुद उठा रहे हैं ताकि चीन या बांग्लादेश जैसे प्रतिद्वंद्वी उनकी जगह न ले सकें।

ख. सप्लाई चेन की मजबूती और चीन-बांग्लादेश फैक्टर

अमेरिकी खुदरा विक्रेताओं (Retailers) के पास भारत का कोई मजबूत विकल्प नहीं है।

  • चीन पर प्रतिबंध: ट्रंप ने चीन पर भारत से भी ज्यादा कड़े टैरिफ लगाए हैं।

  • बांग्लादेश का संकट: पड़ोसी देश बांग्लादेश में जारी राजनीतिक अस्थिरता और श्रम मुद्दों के कारण अमेरिकी कंपनियां वहां बड़ा ऑर्डर देने से कतरा रही हैं।

  • भारत की क्षमता: चीन के बाद भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जिसके पास ‘स्केल’ (बड़े पैमाने पर उत्पादन) की क्षमता है।

ग. त्योहारी सीजन (Thanksgiving & Christmas)

नवंबर का महीना अमेरिका में खरीदारी का सबसे बड़ा सीजन होता है। सितंबर-अक्टूबर में टैरिफ के डर से जिन अमेरिकी कंपनियों ने ऑर्डर कम किए थे, उन्हें स्टॉक खत्म होने पर नवंबर में मजबूरी में भारत से आयात करना ही पड़ा।

वे सेक्टर्स जिन्होंने संभाला मोर्चा

निर्यात के इन आंकड़ों को चार प्रमुख स्तंभों ने मजबूती दी:

1. इलेक्ट्रॉनिक्स (38.96% की वृद्धि)

भारत के निर्यात ढांचे में सबसे बड़ा बदलाव इलेक्ट्रॉनिक्स में आया है। 4.81 अरब डॉलर के निर्यात के साथ इस सेक्टर ने सबको पीछे छोड़ दिया। ‘एपल’ के आईफोन का भारत में निर्माण और अमेरिका को निर्यात होना इसका सबसे बड़ा कारण है।

2. इंजीनियरिंग गुड्स (23.76% की वृद्धि)

मशीनरी और ऑटो कंपोनेंट्स का निर्यात 11.01 अरब डॉलर रहा। फोर्ड और जीएम जैसी अमेरिकी कार कंपनियों के लिए भारतीय पुर्जे इतने महत्वपूर्ण हैं कि वे रातों-रात अपनी सप्लाई चेन किसी अन्य देश में शिफ्ट नहीं कर सकतीं।

3. रत्न और आभूषण (27.8% की वृद्धि)

शादी और छुट्टियों के सीजन ने हीरे और गहनों की मांग को बढ़ा दिया, जिससे भारत को 2.64 अरब डॉलर का विदेशी राजस्व मिला।

4. टेक्सटाइल: आंकड़ों के पीछे का दर्द

हालांकि टेक्सटाइल निर्यात बढ़ा है, लेकिन यह क्षेत्र ‘सर्वाइवल मोड’ में है। तिरुपुर के छोटे निर्यातक 50% टैरिफ के कारण भारी घाटे में काम कर रहे हैं। यहां आंकड़े जरूर बढ़ रहे हैं, लेकिन मुनाफा (Profit) शून्य या नकारात्मक है, जिससे रोजगार संकट गहरा रहा है।

विश्लेषण: क्या ट्रंप के टैरिफ असफल साबित हुए?

इस प्रश्न के दो पहलू हैं:

  • सफलता का तर्क: अगर ट्रंप का उद्देश्य अमेरिकी खजाने में पैसा भरना और भारत के निर्यातकों पर दबाव बनाना था, तो वे सफल रहे। भारतीय MSME इकाइयां दबाव में हैं और उनके लाभ का हिस्सा अमेरिकी सरकार के पास टैक्स के रूप में जा रहा है।

  • विफलता का तर्क: यदि उनका उद्देश्य ‘मेड इन इंडिया’ उत्पादों को अमेरिकी बाजार से बाहर करना था, तो वे पूरी तरह विफल रहे। 22.6% की वृद्धि दर्शाती है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था की भारत पर निर्भरता टैरिफ की दीवारों से कहीं अधिक मजबूत है।

भविष्य की राह: भारत के लिए सबक

नवंबर के आंकड़ों ने साबित कर दिया है कि भारत की वैश्विक मांग कम नहीं हुई है, लेकिन लंबे समय तक मुनाफे की बलि देकर निर्यात जारी रखना संभव नहीं होगा।

  • अगला कदम: भारत सरकार को अब डब्ल्यूटीओ (WTO) के मंच पर या द्विपक्षीय वार्ताओं के जरिए इन टैरिफ को कम कराने का दबाव बनाना होगा। साथ ही, घरेलू लागत (Logistics Cost) को कम करना होगा ताकि निर्यातकों का बोझ हल्का हो सके।

ट्रंप का टैरिफ ‘ब्रेक’ लगाने की कोशिश जरूर थी, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था के ‘इंजन’ ने अपनी रफ्तार से उसे पार कर लिया है।

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