• December 27, 2025

प्रभु श्रीराम का बुन्देलखंड की जमी से रहा है गहरा नाता

 प्रभु श्रीराम का बुन्देलखंड की जमी से रहा है गहरा नाता

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का उत्तर प्रदेश के बुन्देलखंड की वीरभूमि महोबा से गहरा नाता रहा है। वनवास के दौरान प्रभु श्रीराम, जानकी और लक्ष्मण के साथ महोबा में गोरखगिरि पर्वत पर काफी समय तक रुके थे। गोरखगिरि पर्वत के पास ही जानकी रसोई और रामकुंड आज भी बने हैं। रामकुंड का पवित्र जल पीने से जटिल बीमारी भी छूमंतर हो जाती है। राममंदिर बनकर तैयार हो जाने और प्राण प्रतिष्ठा की शुभ घड़ी आने पर यहां प्रभु श्रीराम के वनवास काल की इन धरोहरों को रंग-बिरंगी लाइटों से चमकाया गया है। अयोध्या में राममंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को लेकर यहां सुन्दरकांड पाठ का आयोजन किया गया। अभी भी राम नाम का जप करने की धूम मची हुई है।

त्रेता युग में किशोर अवस्था में भगवान श्री राम को वनवास का दंश झेलना पड़ा। अयोध्या से सरयू पार कर भगवान श्री राम चित्रकूट पहुंचे। उस समय चित्रकूट एक अज्ञात और साधारण स्थान हुआ करता था। विंध्यपर्वत श्रृंखलाओं की गोद में चित्रकूट स्थित है। विंध्यक्षेत्र यानी बुंदेलखंड कहलाता है। चित्रकूट में 12 वर्ष तक प्रभु श्री राम ने प्रवास किया। वनवास काल के दौरान चित्रकूट से प्रभु श्रीराम वीरभूमि महोबा पहुंचे जहां उन्होंने गोरखगिरी पर्वत पर गुफा में निवास किया और वही गुफा सिद्ध गुफा कहलाती है। पास में ही कुछ दूरी पर माता भगवती की रसोई थी जिसे हम सीता रसोई के नाम से जानते हैं।

जहां माता जानकी अपने हाथों से भोजन तैयार करती थी। गोरखगिरी पर्वत के पास कुछ दूरी पर एक आश्रम है जहां पर नागा संन्यासी अनादि काल से तपस्या कर रहे थे जहां श्रीराम ने पहुंच कर तपस्या कर रहे साधुओं को अपने दर्शन देकर उनका जीवन कृतार्थ कर दिया और यहीं पर श्रीराम ने पूजन कर यज्ञ किया। यह यज्ञ कुंड आज भी मौजूद है जिसे हम रामकुंड के नाम से जानते हैं। जिसके पावन जल से स्नान करने से जटिल से जटिल बीमारियों से छुटकारा मिल जाता है।

अनादि काल से तपस्या कर रहे नागा साधुओं को प्रभु ने दिए दर्शन

उमंगेश्वर महादेव द्वादश ज्योतिर्लिंग शिवालय के पुजारी शिवकिशोर पांडेय ने बताया कि पहले यह एक आश्रम था जहां पर नागा संन्यासी तप करते थे जिनकी मढ़िया आज भी यहां पर बनी है जहां पर नागा साधुओं ने समाधि ली हुई है। 2 वर्ष पूर्व अंतिम नागा साधु तुलागिरी समाधि में लीन हुए थे। 1995 में सीडीओ रामलाल वर्मा ने मंदिर का जीर्णोंद्वार कराया था। नगर पालिका ने भी 32 लाख रुपये से लघु वाटिका एवं सरोवर का निर्माण कराया है।

12 करोड़ रुपए से हो रहा गोरखगिरी पर्वत का विकास

आजादी के बाद भी सरकारों ने इतने बड़े तीर्थ स्थल को पर्यटन के रूप में विकसित करने की कोई कोशिश नहीं की है। अयोध्या धाम में भगवान श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा के बाद राम कुंड को भी धार्मिक क्षेत्र में विकसित करने की कोशिश की जा सकती है। यह संतोष की बात है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री जो कि गुरु गोरखनाथ के शिष्य भी हैं। उन्होंने गोरखगिरी पर्वत के विकास के लिए 12 करोड़ रुपये दिए हैं, जिससे यहां विकास कार्य हो रहे हैं।

श्रीराम के निवास स्थान को गुरु गोरखनाथ ने बनाया था अपनी तपस्थली

गोरखगिरी पर्वत पर स्थित गुफा जहां पर प्रभु श्रीराम ने निवास किया वहीं पर उनके अनन्य भक्त महादेव के अवतार गुरु गोरखनाथ ने गुफा में पहुंचकर तपस्या की जिसे हम गुरु गोरखनाथ की तपस्थली के रूप में जानते हैं। प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त होने के कारण महादेव के अवतार गुरु गोरखनाथ ने गोरखगिरी पर्वत स्थित पहुंचकर श्रीराम की निवास स्थली रही सिद्ध गुफा को अपनी तपस्थली बनाया था।

शबरी के जूठे बेर खाकर प्रभु श्रीराम ने दिया समरसता का संदेश

शबरी जिसे नीच कुल का कहा जाता था,उसी शबरी के जूठे बेर खाकर प्रभु श्रीराम ने सामाजिक समरसता की मिसाल पेश करते हुए अपने दर्शन दिए और शबरी का जीवन धन्य कर दिया। शबरी के कर्म उच्च कोटि के थे जिन्होंने गुरु के आदेश पर बना विवाह किया। प्रभु के इंतजार में जीवन गुजार दिया। वहीं लक्ष्मण द्वारा फेंकी गई गुठली जो कि संजीवनी बनी और लक्ष्मण की जीवन रक्षा के काम आई। यह सब शबरी की तपस्या का ही फल है।

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