कर्नाटक में भाजपा या कांग्रेस किसे चुने जनता ? बना हुआ है असमंजस

कर्नाटक की जनता कई ज्वलंत समस्याओं से जूझ रही है, लेकिन कोई भी चुनाव लड़ने वाली पार्टी या उनके प्रतिनिधि इस चिंताजनक स्थिति से चिंतित दिखाई नहीं दे रहे हैं। फिलहाल की सरकार अखबारी, इलेक्ट्रानिक और वेब विज्ञापन के माध्यम से यही बताने का प्रयास करने में जुटी दिखाई देती है कि सब कुछ ठीक है। हालांकि, ज़मीनी स्तर पर स्थिति काफी विरोधाभासी और चिंताजनक है।
इससे अधिक स्थिति क्या खराब होगी कि भारत में नहीं दुनिया में आईटी हब हौर सिलिकॉन वैली कहलाने वाला बेंगलुरु इस वक्त बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहा है। भारत की दूसरी और तीसरी सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर कम्पनियों का मुख्यालय इलेक्ट्रॉनिक सिटी में बेंगलुरु है। यह भारत के सूचना प्रौद्योगिकी निर्यातों का अग्रणी स्रोत है। इस कारण से जबसे अधिक राजस्व कहीं से सरकार को प्राप्त होता है तो वह महानगर भी यही बेंगलुरु है, लेकिन राज्य में कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार अपने को जनता के लिए यहां पीने का पानी मुहैया करा देने में भी कमजोर साबित हो रही है
विचार करेंगे तो ध्यान में आएगा कि राज्य में यह स्थिति इसलिए बनी, क्योंकि तेजी से शहरीकरण, अनियोजित और अवैध विकास, जलस्रोतों पर अतिक्रमण और रेत खनन के रूप में जल संसाधनों की कमी और गिरावट के कारण पानी की खपत की मांग लगातार बढ़ रही है। भूजल की कमी और नदियों के सूखने के कारण, आबादी अब अपनी पीने के पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रही है। मानसून और गैर-मानसून सीजन के दौरान राज्य की कुल जल पूर्ति योग्य भूजल क्षमता 17.03 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) होने का अनुमान है। लेकिन, राज्य ने पहले ही भूजल का 64 प्रतिशत से अधिक दोहन कर लिया है और भविष्य में उपयोग के लिए केवल 6.53 बीसीएम ही उपलब्ध है। परन्तु कोई भी सरकार का मंत्री या प्रशासनिक व्यवस्था इस जल संकट के प्रति गंभीर नजर नहीं आ रहा है।
यह जल संकट राज्य में समय के साथ कितना गहरा होता जा रहा है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि किसानों का विरोध प्रदर्शन होना शुरू हो गया है। कई किसान संगठनों के प्रतिनिधियों का कहना है कि वे सूखा राहत, पीने के पानी और मवेशियों के लिए चारे की आपूर्ति की मांग कर रहे हैं । कुल मिलाकर, स्थिति पूरे राज्य में एक जैसी है। ऐसे में कहा जा सकता है कि कर्नाटक के चुनावी इतिहास में शायद पहली बार राज्य का मतदाता अनेक मुद्दों से घिरा हुआ है, आप जिस भी नजरिए से देखने की कोशिश करें। मई 2023 के विधानसभा चुनावों की पूर्व संध्या पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) द्वारा पांच गारंटियों की घोषणा और उसके बाद के कार्यान्वयन ने सार्वजनिक प्लेटफार्मों पर इस पर चर्चा को जन्म दिया है।
एक ऑनलाइन कन्नड़ पोर्टल Eedina.com द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, पिछले आम चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में पांच गारंटी पर जनता ने खूब स्नेह बरसाया । दिलचस्प बात यह है कि अब यही पांच गारंटी मौजूदा संसदीय चुनाव में मतदान के अहम फैसले में जनता के बीच सबसे अधिक चर्चा में हैं। गृह ज्योति जैसी लोकलुभावन कल्याणकारी योजनाएं, हर घर में 200 यूनिट मुफ्त बिजली, गृह लक्ष्मी द्वारा बीपीएल परिवार की महिला मुखिया को 2,000 रुपये देना, अन्न भाग्य द्वारा बीपीएल के प्रत्येक व्यक्ति को 10 किलोग्राम मुफ्त चावल वितरित करना। परिवार, युवा निधि बेरोजगार स्नातकों और डिप्लोमा धारकों को क्रमशः 3,000 रुपये और 1,500 रुपये मासिक की पेशकश कर रहा है। नारी शक्ति राज्य की सभी महिलाओं को राज्य सरकार के स्वामित्व वाली सार्वजनिक क्षेत्र की बसों में मुफ्त यात्रा करने का अधिकार देती है। किंतु इसके बाद भी जिस तरह की अव्यवस्था पूरे कर्नाटक में दिखाई देती है, उसे देखते हुए वे पिछली सत्ताधारी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के खिलाफ अपना गुस्सा दर्ज कराने की जल्दबाजी में कांग्रेस को चुनने के लिए खुद को कोस रहे हैं।
यहां आज स्थिति यह है कि एक बार जब सार्वजनिक क्षेत्र की बसों में मुफ्त यात्रा की नारी शक्ति योजना शुरू की गई तो उसके बाद कई यात्रियों के लिए विकट स्थिति एक दुःस्वप्न बन गई है । अचानक बसें खचाखच भर जाती हैं और आधे से ज्यादा सीटों पर महिलाएं बैठी हुई दिखाई देती हैं। जिन पुरुषों को भुगतान करके यात्रा करने की आवश्यकता होती है, उन्हें ठीक से खड़े होने के लिए जगह नहीं मिलने और बैठने के लिए सीटें मिलना भूल जाने जैसे भयानक अनुभव से गुजरना पड़ रहा है!
आज राज्य भर में महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा योजना ने धार्मिक स्थानों को लोकप्रिय पिकनिक स्थलों में बदल दिया। परिणामस्वरूप, अधिकांश तीर्थस्थलों में मुफ्त भोजन वितरण प्रणाली एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन गई और अंततः दिन और रात के दौरान एक निश्चित समय के बाद इसे बंद करना पड़ा। यह अपरिहार्य हो गया क्योंकि आने वाले भक्तों की संख्या दिन और रात के दौरान किसी भी समय समाप्त होने जैसी नहीं दिखती थी। इसी तरह से मुफ्त चीजों की बाढ़ ने कृषि अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है, क्योंकि कृषि गतिविधियों के लिए अचानक मजदूरों की कमी हो गई है । पूरी तरह से फसल बोने और काटने पर निर्भर किसानों को कृषि श्रमिकों की मदद के बिना अपना काम पूरा करने में कठिनाई होने लगी है ।
आम तौर पर लोगों और विशेष रूप से मतदाताओं ने मुफ्त सुविधाओं और विकासात्मक गतिविधियों के फायदे और नुकसान पर चर्चा करना शुरू कर दिया है। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, ऐसा लगता है कि मतदाताओं के बीच इस तरह का आत्मनिरीक्षण पहली बार शुरू हुआ है। इससे प्रतिद्वंद्वी दलों के उम्मीदवारों की चुनावी संभावनाओं पर कितना लाभ या प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, इस पर अभी इंतजार करने और देखने की जरूरत है। किंतु इतना तो तय है कि इन सब परिस्थितियों में कांग्रेस को राज्य की सत्ता में होने के बाद भी हानि अधिक उठानी पड़ेगी, जैसा कि अभी जनता के मूड से दिखाई दे रहा है।
